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मुस्लिम समाज भी चाहता था कि भव्य राम मंदिर बने

उज्ज्वल दुनिया/रांची । रांची के पूर्व सांसद सुबोधकांत सहाय ने एक वीडियो जारी कर दावा किया है कि देश का मुस्लिम समाज और कांग्रेस शुरु से ही अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण के पक्ष में था । उन्होंने अपील की है कि राम मंदिर को राजनीति का क्षेत्र न बनने दें । यह आस्था का मंदिर है । इसे सिर्फ प्रभु श्रीराम का ही मंदिर बनने दें । सुबोधकांत सहाय ने कहा कि सत्ता के लोग जहां शामिल होते है, वहां न चाहते हुए वे भी अपने हद से बाज नहीं आते हैं । भगवान सभी धर्मों में है । सभी अलग-अलग तरीके से इसपर विश्वास रखते हैं । 

बाबरी कांड नहीं होता तो हिंदू-मुस्लिम समाज की सहमति से बनता राम मंदिर 

सुबोधकांत सहाय ने अपने वीडियो संदेश में दावा किया है कि मुस्लिम समाज के कई लोगों भी चाहते थे कि अयोध्या में ही राम का मंदिर बने । अगर बाबरी मस्जिद कांड नहीं होता, तो यह तय था कि समझौते से ही अयोध्या में राम मंदिर आज बनता । 

कोई विवाद होता था, तो वे टेबल पर ही निपटारे की करते थे कोशिश

सुबोधकांत का कहना है कि यह खुशी की बात है कि आज प्रभु श्रीराम के मंदिर निर्माण की प्रक्रिया शुरू होने जा रही है । कोर्ट के निर्णय के आधार पर मंदिर शिलान्यास और इस काम में उनके व्यक्तिगत प्रयासों पर कई लोग उनसे सवाल पूछते है ।  उनका कहना है कि 1990 में जब पूर्व पीएम चंद्रशेखर और कांग्रेस की मिलीजुली सरकार थी । तब गुजरात के तत्कालीन सीएम रहे चिमनभाई पटेल को मंदिर निर्माण के काम के लिए जोड़ा गया था । उस वक्त गृह मंत्री की हैसियत से वे भी पूरी प्रक्रिया पर नजर बनाकर रखे थे ।  इस काम में कई दिग्गज नेता शरद पावर, मुलायम सिंह यादव, भैरो सिंह शेखावत भी शामिल थे । मंदिर निर्माण में दोनों पक्षो के बीच अगर कोई विवाद होता था, तो उसे वे टेबल पर लाकर निपटाने का काम करते थे । मंदिर निर्माण और बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी सहित शिक्षाविद, भूगोलवेत्ता समेत सभी लोगों के साथ वे खुद बातचीत करते थे । 

बाबरी मस्जिद विध्वंस से आहत हुआ मुस्लिम समुदाय

 उन्होंने कहा कि 1992 में कांग्रेस की सरकार बनी. पी वी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने थे. मंदिर की बात जब फिर से उठी, तो पीएम ने उन्हें बुलाकर कहा कि आप ही राम जन्म भूमि और बाबरी मस्जिद से जुड़े सवालों को जानते है, तो कई लोगों से मिली जानकारी के बाद उनकी इच्छा है कि वे ही पूरे मामले में पहल करें ।  फिर से बैठक शुरू हुई. दोनों पक्षों ने जमीन पर अपने-अपने दावे को पेश किया. लेकिन इसी बीच जब धर्म संसद के नाम पर कारसेवकों ने कुछ पहल की, जिसका नतीजा 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद कांड के रूप में सामने आया ।

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