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कोडरमा में वर्षों बाद दिखा विलुप्त गिद्दों का झुंड

हजारीबाग से पहुंचे पदाधिकारी ने जताया आश्चर्य

कोडरमा जिले के झुमरीतिलैया नगर परिषद क्षेत्र अंतर्गत गांधी स्कूल रोड स्थित झारखंड राज्य खनिज विकास निगम जमीन पर सैकड़ों गिद्ध के झुंड देखे जाने की सूचना के बाद शुक्रवार को हजारीबाग वन संरक्षक कार्य योजना अंचल के पदाधिकारी अजीत कुमार सिंह हजारीबाग से कोडरमा पहुंचे। जहां कोडरमा के डीएफओ सूरज कुमार सिंह ने उनका स्वागत किया। इसके बाद दोनों अधिकारी समेत वन विभाग के अन्य कर्मी गिद्ध की झुंड देखे जाने वाले स्थान पर पहुंचे। उक्त स्थल पर अलग-अलग झुंडों में करीब 100 से अधिक गिद्ध देखे गए। कोडरमा जिले से लगभग लुप्त हो चुके गिद्ध को वर्षों के बाद काफी संख्या में कोडरमा की धरती पर देखकर हजारीबाग से आए पदाधिकारी एवं डीएफओ आश्चर्यचकित एवं काफी खुश हुए।

इस मौके पर हजारीबाग वन संरक्षक पदाधिकारी अजीत कुमार सिंह ने बताया कि गिद्ध को प्राकृतिक सफाई कर्मी कहा जाता है। उन्होंने कहा कि गिद्ध खुले स्थानों पर फेंके गए मृत मवेशियों को साफ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

यदि हमारे प्राकृतिक में गिद्ध नहीं होते तो खुले स्थानों में फेंके जाने वाले मृत मवेशियों से काफी महामारी फैलती। उन्होंने बताया कि गिद्दों के लुप्त होने का एक प्रमुख कारण मवेशी पालकों के द्वारा मवेशी में जनित विभिन्न प्रकार के रोगों में उपयोग किए जाने वाले डायक्लोफेनिक के प्रयोग से मवेशियों के शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

इन मवेशियों की मौत के बाद जब गिद्ध इन्हें खाते हैं तो गिद्दों के किडनी पर काफी खराब प्रभाव पड़ता है। जिससे गिद्दों की मौत हो जाती है। और गिद्दों के प्रजनन क्षमता पर भी प्रभाव पड़ता।

.इन वजहों से काफी तेजी से गिद्दों की संख्या क्षेत्र से विलुप्त होती जा रही है। उन्होंने कहा कि गिद्ध एक बार में एक अंडा देती है और अंडे से निकले चूजे का जीवित रहने का दर भी काफी कम है। इस वजह से भी गिद्धों का हमारे प्राकृतिक में काफी अधिक महत्व है। उन्होंने कहा कि यदि हम इसे नहीं बचाएंगे तो हम एक अलग महामारी को आमंत्रित करेंगे। वन विभाग एवं कुछ एनजीओ इसके संरक्षण को लेकर पूरे झारखंड में काम कर रही है।

उन्होंने मवेशी पालकों से घातक डाइक्लोफिनेक दवा का इस्तेमाल नही करने एवं इसके जगह पर विकल्प के तौर पर उपलब्ध अन्य दवाओं का प्रयोग करने की अपील की। ताकि प्रकृति के सफाई कर्मी गिद्ध का संरक्षण हो सके। उन्होंने बताया कि इन दवाओं के प्रयोग रुकने के लिए भारत सरकार ने गाइडलाइन भी जारी की है।

वंही समाज में चमगादड़ को अशुभ माने जाने की सोच पर उन्होंने कहा कि चमगादड़ हमारे पूरे पर्यावरण के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण जीव है।

चमगादड़ जो कि एक शाकाहारी पक्षी है। जो मुख्यतः फलों का सेवन करते हैं। वह प्राकृतिक के विस्तार में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने बताया कि कई ऐसे दुर्गम स्थान होते हैं जहां इंसान हमेशा नहीं पहुंच पाते हैं। लेकिन चमगादड़ उन इलाकों में आसानी से पहुंचते हैं और उनके द्वारा मल से निकले बीज से उक्त स्थल पर पेड़ पौधे उगते हैं।

वहीं डीएफओ सूरज कुमार सिंह ने बताया कि कोडरमा जिला एक पक्षी प्रधान जिला है। यहां पर कई विदेशी पक्षियों का भी आगमन होता है।

उन्होंने कहा कि गिद्दों के लिए घातक डाइक्लोफिनेक दवा को लेकर प्रशासन के सहयोग से इसके प्रयोग के रोकथाम को लेकर अभियान चलाया जाएगा और जरूरत पड़ी तो मेडिकल स्टोर पर छापेमारी कर इसकी बिक्री पर रोक लगाया जाएगा। डीएफओ ने बताया कि पर्यावरण में पशु पक्षियों के घटती संख्या का एक कारण औद्योगिक क्षेत्रों का विस्तार एवं शहरी क्षेत्रों का विस्तार भी है। जिसकी वजह से पेड़ पौधे काटे जा रहे हैं। प्राकृतिक को नष्ट किया जा रहा है। इस वजह से भी पर्यावरण जीवों की संख्या घटी है। जिसके संरक्षण को लेकर वन विभाग लगातार कार्य कर रही है।

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