Thursday, March 28, 2024
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जिसका डर था.. हेमंत जी,वही बात हो गई

बर्तनों की बिरादरी में चम्मच का महत्व कुछ ज्यादा ही है
बर्तनों की बिरादरी में चम्मच का कितना महत्व उचित ?
के. कौशलेन्द्र
के. कौशलेन्द्र

मुद्दा देश का हो या व्यक्तिगत जब किसी बात पर तर्क़ होता है तो दोनों पक्षों की अपनी दलीलें भी होती हैं.आजकल सूबे झारखंड में स्थितियां कुछ ऐसी ही हैं, कोई मुद्दा खड़ा हो जाता है और उसके साथ ही उसके लिए दलीलें भी खड़ी कर दी जाती हैं.

बुधवार को झारखंड उच्च न्यायालय के दो फैसलों ने सत्तासीन हेमंत सोरेन सरकार की किरकिरी का पूरा इंतजाम ही लिख डाला. दारोगा रूपा तिर्की संदिग्ध मौत के मामले की जांच सीबीआई को सौंपने का आदेश और विद्वान महाधिवक्ता और अपर महाधिवक्ता के ख़िलाफ़ अपराधिक न्यायिक अवमानना के मुकदमे को मंजूरी.

स्वभाविक है कि प्रतिपक्ष को सरकार पर हमलावर होने की दलीलों का पिटारा हाथ लग गया और सत्तापक्ष के लिये न्यायपालिका से मिले झटके से उबरने की दलीलों की दरकार बढ़ गयी. दोनों मामलों का फलाफल फिलहाल भविष्य के गर्भ में है. अभी आकलन और अटकलों का बाज़ार मात्र उबाल मारेगा.

संपूर्ण प्रकरण पर बेबाक चिंतन करते- करते मुझे संदीप अलबेला की लघुकथा – ‘विधाता का वरदान’ याद आ गया… कथा का सार और सूबे की सरकार की दशा और दिशा का आकलन आप पर छोड़कर कथा सुनाता हूँ…..

एक धातु का टुकड़ा अत्यंत ही परेशान था कि वह किस वस्तु में अपने आप को ढाले. जब उसे कुछ समझ नहीं आया तो वह तपस्या करने लगा. अंततः ब्रह्मा जी प्रकट हुए और बोले वर मांगो. तब उस धातु के टुकड़े ने अपनी समस्या बतायी कि- हे प्रभु मैं अत्यंत भ्रमित हूँ मैं किस वस्तु का रूप धारण करूं?

मनुष्य ने इतने बर्तनों का निर्माण किया है कि मैं तय नहीं कर पा रहा हूं कि, मुझे कौन सा बर्तन बनना चाहिए.तब विधाता ने कहा कि बस इतनी सी बात लो मैं वरदान देता हूं कि तुम अपने जीवन काल में अपनी इच्छानुसार तीन बर्तनों में परिवर्तित हो सकते हो. इतना कह कर विधाता अन्तर्ध्यान हो गये.
तब वह धातु का टुकड़ा सर्वप्रथम थाली बना, पर उसे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. मसलन सबके बीच वह आसानी से मिल जुल नहीं पाता, उसमें एक साथ कई खाद्य सामग्री परोस दी जाती. घर में किसी को गुस्सा आता तो उसी पर शांत करते.

“बलम गइले झरिया फेक देहले थरीया” जैसे गीत लिखे गए. कभी कभी तो घर के चूहे, बिल्ली, कुत्ते तक मुँह लगा देते.

एक दिन तंग आकर उसने अपना रूप बदला और गिलास बन गया.पर कुछ ही दिनों में उसे समझ आ गया कि गिलास की दशा तो थाली से भी खराब है.इसकी तो पूछ बहुत ही कम है.आधुनिक समय में लोग कांच के गिलास या बोतल का प्रयोग करते हैं,और इसका प्रयोग बस पेय पदार्थों के लिए ही होता है. इसके अलावा यह हमेशा एक स्थान पर ही पड़ा रहता है और तो और इस पर कोई गीत, मुहावरा तक नहीं है. वह अपने फैसले पर पछता रहा था.

काफी सोच-विचार के बाद इस बार वह चमचा( चम्मच) बना. चमचा बनते ही उसमें एक ऊर्जा का संचार हुआ, उसे लगने लगा कि इन बर्तनों के समाज में उसका विशेष स्थान है और घर हो या बाहर चमचों की हर जगह पूछ है. घर में वो कभी थाली को बजा देता, कभी कटोरी से लड़ जाता, कभी गिलास में घुस कर अजीब ध्वनियां निकालता. लगभग सभी व्यंजनों में चमचे की जरूरत पड़ती. अपने समाज में चमचे की बड़ी इज्जत और रूतबा था. कोई भी बर्तन जब चुनाव लड़ता तो बिना चमचे के उसका काम नहीं चलता.

आलम ये हो चला था कि दूसरे बर्तन अपनी बात नेता तक पहुंचाने के लिए चमचे की जी हजूरी करने लगे थे बिना चमचे के नेता हो या कोई और किसी का काम नही चल रहा था. औंर तो और इसमें तो भांति भांति की उपाधियां भी थी, सोने का चमचा, चांदी का चमचा और कई मुहावरे आदि भी.

बर्तनों के समाज में चमचे की खूब चल रही थी.

कोई भी आयोजन हो या कार्यक्रम हो चमचा पहली कतार में मौजूद रहता था. कभी-कभी तो नेता के न होने पर चमचा सब कुछ देखता. समाज में चमचा एक विशेष स्थान पर रखा जाने लगा. रसोई में अन्य बर्तनों से इतर उसके लिए विशेष स्थान बना था. चमचे के पास अब नाम था, पैसा था, पकड़ थी, पहुंच थी, धौंस था. अंततः सब मिला जुला कर वह धातु का टुकड़ा अब बेहद खुश था.

धातु तो चमचा योग पाकर इतराने लगा लेकिन बर्तन के मुखिया नेताजी का राजयोग चमचा जनित कर्कश अराजक शोर में अपयश का भागी बनने लगा ।

कमोबेश यही दशा सूबे में सत्तासीन हेमंत सोरेन सरकार की भी मात्र 19 महीने में दिखने लगी है. वैसे हेमंत जी का भी दोष नहीं -आजकल इसी का बोलबाला है, सबको पता है फिर भी आस्तीन में सांप पाला है.

जनता के उम्मीद गठरी अब भी संभाल लीजिये मुख्यमंत्री जी और चले चलिए कि चलना ही दलील-ए-कामरानी है
जो थक कर बैठ जाते हैं वो मंज़िल पा नहीं सकते.
गलतियों से सबक ले आगे बढ़ना होगा और आपकी सरकार को बख्श लाइलपुरी की निम्न पंक्तियों को चरितार्थ करना होगा कि

हर दलील काटेंगे हम दलील-ए-रौशन से
‘बख़्श’ सौ सवालों का इक जवाब लिक्खेंगे

(लेखक झारखंड के जाने-माने स्तंभकार हैं और लेख में प्रकट किए गये विचार उनके अपने हैं)

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