शिवसेना की राजनीतिक विरासत की जंग राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे में तो खूब हुई, लेकिन इसमें जीत हुई उद्धव ठाकरे की । इसी तरह मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक विरासत की जंग में भतीजे अखिलेश जीत गये और चाचा शिवपाल की हार हो गई। लेकिन ऐसा नहीं है कि जीत हमेशा बेटे की ही होती है । दक्षिण भारत में एनटी रामाराव के बेटे के रहते उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू उनके राजनीतिक वारिस बनें। जयललिला एम. जी. रामचंद्रन की राजनीतिक वारिस बनीं। तो सवाल है कि रामविलास पासवान की राजनीति का वारिस कौन हैं, भाई पशुपतिनाथ पारस या बेटे चिराग पासवान?
क्या पशुपति सचमुच “पारस” हैं?
बिहार के पासवान समाज के अधिकतर लोग पशुपति कुमार पारस सहित पांच सांसदों के पाला बदल को “गद्दारी” मानते हैं। दक्षिण बिहार के गया, जहानाबाद, औरंगाबाद और नवादा के पासवान समाज के जिन लोगों से बात की, उनमें से अधिकांश का मानना था कि ये सभी सांसद पद और सत्ता के लोभ में नीतीश कुमार के साथ गए हैं। दुसाध समाज के कुछ लोग तो इतने नाराज़ थे कि उन्होंने बागियों द्वारा “राजनीतिक डेथ वारंट” पर साइन करना बता दिया।
लोक जनशक्ति पार्टी के कार्यकर्ता और समाज किसके साथ हैं उसकी एक झलक पटना में गुरुवार को दिखी । संसदीय दल का नेता चुने जाने के बाद पशुपति कुमार पारस पटना लौटे तो उनके स्वागत में दलित सेना के दो-चार पदाधिकारियों के अलावा और कोई नहीं था । पार्टी कार्यकर्ताओं की बेरुखी से आहत पशुपति कुमार पारस प्रेस कान्फ्रेंस के दौरान बार-बार अपा खोते दिखाई दिए । उनको देखकर ऐसा लग रहा था कि इतने लंबे समय तक राजनीति में गुजारने के बावजूद उनमें मीडिया से बात करने की बेसिक जानकारी का अभाव है।
मीडिया को हैंडल करने में अक्षम दिखे “पारस”
पशुपतिनाथ पारस ने अध्यक्ष बनने की औपचारिकता के बाद अपने भाई स्वर्गीय रामविलास पासवान को याद किया । उन्होंने कहा कि उनके स्वर्गीय भाई रामविलास पासवान ने उन्हें अमीर गरीब की लड़ाई में गरीब का और महिला और पुरुष की लड़ाई में महिला का साथ देने की बात सिखाई है । पशुपतिनाथ पारस कहना चाह रहे थे कि वो कमजोर लोगों के लिए संघर्ष करते रहेंगे । इतनी सी बात पर जब उनसे पूछा गया कि चाचा भतीजे की लड़ाई में वो किसके साथ रहेंगे इस पर वो आपा खो बैठे और पत्रकार के साथ तू तड़ाक करने लगे ।
दूसरा सवाल उनमें और भी बौखलाहट पैदा कर गया, जब उनकी ही बातों को पत्रकारों ने याद दिलाया और पूछा कि आपने एक व्यक्ति एक पद की बात कही थी । लेकिन आप संसदीय दल के नेता के अलावा राष्ट्रीय अध्यक्ष और दलित सेना के मुखिया भी हैं । पशुपतिनाथ पारस आपा खो बैठे थे और जवाब नहीं सूझने पर यह कहकर निकल गए कि मंत्री बनते ही वो संसदीय दल के नेता का पद त्याग देंगे । सबको पता है कि वे ऐसा नहीं करेंगे।
फिलहाल ऐसा लग रहा है कि पशुपति कुमार पारस ने रामविलास पासवान की विरासत की जंग जीत ली है। लेकिन लोग इसे चिराग पासवान के ऊपर नीतीश कुमार की जीत मान रहे हैं, जिसमें बागी सांसदों की हैसियत एक प्यादे से ज्यादा नहीं …अगले चुनाव तक आते-आते इन पांच सासंद में से कुछ का सचमुच कहीं “पॉलिटिकल डेथ” न हो जाए ?