आप रांची, जमशेदपुर बोकारो और धनबाद शहर के अलावा झारखण्ड में कहीं भी चले जाएं, वहां के नौजवानों से बात करें…वहां सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी है । आप सोशल मीडिया पर देख लें, महीने में एक-दो बार ‘झारखण्ड मांगे रोजगार’ ट्विटर पर ट्रेंड करता ही है। वैसे भी झारखण्ड में बोरेजगारी दर आज भी देश में तीसरे नंबर पर है। मतलब की हम जनसंख्या के अनुपात में बेरोजगारी के मामले में टॉप तीन में हैं। यह एक ऐसा रिकॉर्ड है, जिसे किसी भी राज्य के लोग गर्व महसूस नहीं करेंगे ।
नियुक्ति वर्ष के 12 में से 8 महीने में क्या हुआ ?
इसका एक लाइन में जवाब है “जीरो….कुछ नहीं हुआ”…सिर्फ नियुक्ति वर्ष की घोषणा कर देने से झारखण्ड में बेरोजगारी कम हो जाती तो फिर रघुवर दास ही क्या बुरे थे । वे तो ताबड़तोड़ घोषणायें करते थे, और उनमें से कुछ पूरा भी । लेकिन हेमंत बाबू तो एक बार में ही इतना हैवी दे देते हैं कि बाद में उसे समेटने में बहुत दिक्कत होती है। हर साल पांच लाख नौकरियों की बात अभी पूरी तरह समेटा भी नहीं गया था कि नियुक्ति वर्ष वाला बाउंसर मार दिया । हालात ये है कि इस साल लाखों में क्या हजारों में भी नौकरियां नहीं मिली हैं…या सैंकड़ों में भी नहीं। मतलब सीएम की घोषणा को पहले आठ माह में जीरो अंक मिलते हैं।
न नियुक्ति हुई है, न होने की संभावना है
मैं नेता नहीं, इसलिए आपको झूठी उम्मीद नहीं दूंगा । इस साल न नियुक्ति हुुई है, न होने की कोई उम्मीद है। इसकी वजह बिल्कुल साफ है। अभी तो सरकार की डोमेसाइल नीति ही नहीं बनी, इसके बाद इस सरकार की नियुक्ति नियमावली पर ही विवाद है। जेपीएससी का मामला भी कोर्ट में चला गया है। कुल मिलाकर मह कर मट्ठा बना दिया है . एक भी नौकरी न देने का पूरा इंतजाम करीब-करीब पूरा है।
फिर सरकार कर क्या रही है ?
जवाब है……”विशुद्ध राजनीति”…
सरकार को पता है कि उसकी नियुक्ति नियमावली कानून के कटघरें में कहीं नहीं टिकेगी । जेपीएससी का मामला सुप्रीम कोर्ट तक चला गया है…1932 का खतियान यहां लागू हो ही नहीं सकता…अगर किसी से लागू करने की कोशिश भी की तो सामाजिक तनाव जितना पैदा हो, लेकिन कोर्ट में ये टिक नहीं पाएगा…
लेकिन झामुमो-कांग्रेस की सरकार ने अपने वोटरों को मैसेज दे दिया । देखो, हमने तो आदिवासी-मूलवासी के लिए क्या- क्या नहीं किया। अब दीकू पार्टियां विरोध कर रही हैं तो हम क्या करें ? इसलिए इन दलों के खिलाफ आदिवासी-ईसाई और मुसलमानों एक हो….यहां तर्क और फैक्ट्स से ज्यादा भावनात्मक दोहन का सवाल है । बाकी अगले तीन साल इंतजार कीजिए, शायद कुछ बेरोजगारी कम हो जाय….