68 साल बाद एयर इंडिया सरकारी बोझ से आजाद हो गई। कर्ज के बोझ से दबी एयर इंडिया को एक्वायर करने के लिए टाटा संस की 18,000 करोड़ रुपये की बिड को सरकार ने स्वीकार कर लिया है। एयर इंडिया की शुरुआत टाटा ग्रुप ने ही की थी और 68 वर्ष पहले इसे सरकार को सौंप दिया गया था।
स्पाइसजेट ने लगाई थी 15,100 करोड़ की बोली
एयर इंडिया को एक्वायर करने की दौड़ में स्पाइसजेट के चेयरमैन अजय सिंह भी शामिल थे। उन्होंने इसके लिए व्यक्तिगत हैसियत से लगभग 15,100 करोड़ रुपये की बिड दी थी। एयर इंडिया के लिए सरकार ने रिजर्व प्राइस 12,906 करोड़ रुपये रखा था। डिपार्टमेंट ऑफ इनवेस्टमेंट एंड पब्लिक एसेट मैनेजमेंट (DIPAM) के सेक्रेटरी तुहित कांत पांडे ने बताया की इस डील को दिसंबर तक पूरा कर लिया जाएगा।
उन्होंने कहा कि एयर इंडिया पर कुल कर्ज 61,560 करोड़ रुपये है। इसमें से 15,300 करोड़ रुपये टाटा संस के पास जाएगा जबकि 46,262 करोड़ रुपये नॉन-कोर एसेट्स को रखने के लिए बनाए गए स्पेशल पर्पज व्हीकल एयर इंडिया एसेट होल्डिंग्स के साथ रहेगा। इसका मतलब है कि इस डील में कैश का हिस्सा केवल 2,700 करोड़ रुपये होगा।
एक साल तक नौकरी से नहीं निकाले जा सकेंगे एयर इंडिया के कर्मचारी
एयर इंडिया के लगभग 12,000 एंप्लॉयीज को टाटा ग्रुप कम से कम एक वर्ष के लिए बरकरार रखेगा। इसके बाद इन एंप्लॉयीज को वॉलंटरी रिटायरमेंट स्कीम की पेशकश करने का विकल्प टाटा ग्रुप के पास होगा। टाटा ग्रुप के चेयरमैन एमेरिट्स रतन टाटा ने एक स्टेटमेंट में कहा कि एयर इंडिया को दोबारा मजबूत स्थिति में लाने के लिए काफी कोशिश करनी होगी। टाटा ग्रुप के लिए यह एविएशन सेक्टर में मौजूदगी बढ़ाने का एक अच्छा मौका होगा।
डील की शर्तों के तहत टाटा ग्रुप पांच वर्षों तक एयर इंडिया का लोगो और ब्रांड नेम नहीं बेच सकेगा। इसके बाद भी इन एसेट्स को किसी विदेशी कंपनी को नहीं बेचा जा सकेगा।
केंद्र सरकार की प्राइवेटाइजेशन की योजनाओं में एयर इंडिया की बिक्री का महत्वपूर्ण हिस्सा था। इसके लिए बायर खोजना मुश्किल था क्योंकि एयरलाइन कई वर्षों से घाटे में है और कड़े कॉम्पिटिशन के कारण इसकी मुश्किलें बढ़ रही थी। एयर इंडिया की शुरुआत 1932 में हुई थी। सरकार ने एयर इंडिया का कंट्रोल 68 वर्ष पहले टाटा ग्रुप से लिया था। हालांकि, अब सरकार के लिए एयर इंडिया एक बड़ा बोझ बन गई थी और इसे टाटा ग्रुप को बेचकर उसे बड़ी राहत मिलेगी।