मिडिल-ईस्ट की वर्तमान स्थिति अत्यंत अस्थिर हो गई है, विशेषकर इस्लामी चरमपंथी संगठन हमास के नेता इस्माइल हनियेह की हत्या के बाद। इस घटना ने पहले से ही वहां व्याप्त तनाव को और भी बढ़ा दिया है। तेहरान में हुई इस हत्या का सीधा शक इजरायली खुफिया संगठन मोसाद पर है, जिससे इस क्षेत्र में और भी अधिक अशांति फैल गई है।
ईरान ने इस हत्या के लिए इजरायल को जिम्मेदार ठहराया है, जो दो देशों के बीच की प्रतिद्वंद्विता को और अधिक भयंकर बना देता है। हमास के नेता की हत्या की जिम्मेदारी अब तक किसी ने नहीं ली है, लेकिन इस घटना ने मिडिल-ईस्ट में बढ़ते तनाव की गंभीर स्थिति को स्पष्ट कर दिया है। इस हत्याकांड से न केवल इलाके की राजनीतिक अस्थिरता में इजाफा हुआ है, बल्कि यह अन्य विदेशी शक्तियों को भी प्रभावित कर सकता है जो इस क्षेत्र में अपने प्रभाव का विस्तार करने के प्रयास में हैं।
मिडिल-ईस्ट में वर्तमान में जो अस्थिरता है, वह विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक कारणों का परिणाम है। हमास और इजरायल के बीच का तनाव भी अब अपने चरम पर है। इस हत्या ने हमास समर्थकों और इजरायल के बीच की खाई को और भी गहरा कर दिया है, जिससे आगे संभावित हिंसा और संघर्ष की स्थितियां उत्पन्न हो रही हैं।
इस शायद प्रायोजित हत्या ने मिडिल-ईस्ट की संवेदनशील स्थियों को और भी आकांक्षी बना दिया है। विभिन्न देशों के अंदरूनी और बाहरी राजनीतिक समीकरण अब और भी जटिल हो गए हैं। हमास से जुड़े अन्य संगठनों और उनके समर्थकों ने इस हत्या का विरोध जताना शुरू कर दिया है, जो धीरे-धीरे एक बड़े संकट की ओर इशारा करता है। मिडिल-ईस्ट में इस समय जो हालात हैं, वे निश्चित रूप से वैश्विक राजनीति पर गहरा प्रभाव डाल सकते हैं, विशेष रूप से उन देशों पर जो इस विस्फोटक क्षेत्र के साथ सीधे या परोक्ष रूप से जुड़े हुए हैं।
ईरान और इजरायल के बीच युद्ध की संभावनाएँ
हालिया घटनाओं ने ईरान और इजरायल के बीच युद्ध की संभावनाओं को और बढ़ा दिया है। ईरान, हनियेह की हत्या का प्रतिशोध लेने के लिए इजरायल पर हमला कर सकता है। इस मामले में, दोनों देशों के बीच तनाव अप्रत्याशित रूप से बढ़ सकता है। ईरान की सैन्य शक्ति और उसकी रणनीतिक स्थिति को देखते हुए, यह युद्ध केवल एक क्षेत्रीय संघर्ष तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका वैश्विक प्रभाव भी देखने को मिल सकता है।
ईरान एक लंबे समय से इजरायल के खिलाफ मुखर रहा है, और उसका परमाणु कार्यक्रम इजरायल के लिए गंभीर सुरक्षा चिंताओं का विषय बना हुआ है। ईरान की सैन्य शक्ति और उसके कई प्रॉक्सी गुटों द्वारा समर्थन प्राप्त करने की क्षमता युद्ध की विभीषिका को और भयावह बना सकती है।
यों तो इजरायल की सैन्य ताकत भी कम नहीं है, लेकिन ईरान का जवाबी हमला गंभीर स्थिति पैदा कर सकता है। यह संघर्ष न केवल दोनों देशों के लिए विनाशकारी हो सकता है, बल्कि इसका प्रभाव दुनिया की तत्कालीन राजनीति और भू-राजनीति पर भी पड़ेगा। वैश्विक महाशक्तियां अपनी-अपनी समर्थन दिशाओं में विभाजित हो सकती हैं, जिससे यह मामला और पेचीदा हो जाएगा।
संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठन इस बढ़ते तनाव को रोकने की दिशा में प्रयास कर सकते हैं, लेकिन वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए, यह आसान नहीं होगा। अगर यह युद्ध छिड़ता है, तो यह केवल दोनों देशों के नागरिकों के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण मध्य-पूर्व और शायद पूरे विश्व के लिए नुकसानदेह साबित होगा। इस क्षेत्र में आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता बढ़ सकती है, जिससे वैश्विक बाजार, कच्चे तेल की कीमतें और अंतरराष्ट्रीय संबंध प्रभावित होंगे।
दोनों देशों की सैन्य ताकत
ईरान और इजरायल दोनों ही अपने-अपने क्षेत्र में मजबूत सैन्य ताकत माने जाते हैं, और यह उनकी भूमिकाओं और रणनीतियों में स्पष्ट देखा जा सकता है। इजरायल के पास आधुनिकतम तकनीक और अत्याधुनिक हथियारों की एक विस्तृत श्रृंखला है। उसकी वायुसेना और साइबर क्षमता विश्व में सबसे उन्नत मानी जाती हैं। आधुनिकतम ड्रोन, मिसाइल डिफेंस सिस्टम, और अन्य उच्च तकनीकी सैन्य उपकरणों से लैस इजरायली सेना क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण शक्ति रखती है। इजरायल की सैन्य अंतरराष्ट्रीय ख्फििमजोबंदी और त्वरित प्रतिक्रिया क्षमताएँ भी उल्लेखनीय है।
दूसरी ओर, ईरान की सैन्य ताकत विशाल जनशक्ति और क्षेत्रीय प्रभाव में केंद्रित है। ईरान के पास मजबूत मिसाइल क्षमताएं हैं, जिसकी वजह से वह पूरे क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी बना हुआ है। इसके अलावा, ईरान का परमाणु कार्यक्रम और परोक्ष युद्ध संचालन में उसकी क्षमता उसे एक गंभीर प्रतिद्वंद्वी बनाती है। ईरान की सेना भी अनेक क्षेत्रों में सक्रिय है, जैसे कि होर्मुज़ की समुद्री जलडमरूमध्य, जहाँ से वह वैश्विक तेल सप्लाई को प्रभावित करने की क्षमता रखती है।
दोनों देशों की ताकतों में मुख्यतः अंतर उनकी विविध क्षमताओं और भागीदारियों में है। जहां इजरायल की रक्षा बलें छोटी और अत्यधिक विशेषज्ञतापूर्ण हैं, वहीँ ईरान की सेना बड़ी और व्यापक है। इज़रायल की आक्रामक क्षमता उसकी तत्काल प्रतिक्रिया और भविष्यवाणी पर आधारित है, जब कि ईरान की रणनीति दीर्घकालिक और परिपाटी चलाई जाती है। दोनों देशों के बीच सैन्य ताकत का तुलनात्मक अध्ययन बहुत से मुद्दों पर रौशनी डालता है और उनकी आगामी नीतियों का एक स्पष्ट चित्र प्रस्तुत करता है।
मिडिल-ईस्ट में शांति स्थापित करने के प्रयास अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के विभिन्न संगठनों और देशों द्वारा लगातार जारी हैं। संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और अन्य प्रमुख देश इस क्षेत्र में स्थिरता और शांति की स्थापना के लिए अहम भूमिका निभा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र ने कई बार मिडिल-ईस्ट में शांति प्रचलन के लिए प्रस्ताव पारित किए हैं, जिनमें संघर्षरत पक्षों को वार्ता के माध्यम से समाधान निकालने पर जोर दिया गया है। इसी क्रम में, अमेरिका ने भी मध्यस्थता की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
हाल के वर्षों में अमेरिका ने इजरायल और कुछ अरब देशों के बीच संबंधों को सामान्य बनाने के लिए ‘अब्राहम समझौते’ को प्रोत्साहन दिया। हालांकि, इस क्षेत्र में शांति स्थापित करने की प्रक्रिया सरल नहीं रही है। हमास जैसे संगठनों की मौजूदगी और उनके उद्देश्यों संकट को और भी जटिल बना देते हैं। यह संगठन इजरायल के साथ किसी भी प्रकार की वार्ता और समझौते का विरोध करता है और इससे मिडिल-ईस्ट में स्थिरता स्थापित करने के प्रयासों को बाधा पहुंचती है।
मध्यस्थता की संभावना जहां कई देशों और संगठनों के प्रयासों के कारण उभरती है, वहीं हमास की भूमिका इसे चुनौतीपूर्ण बना देती है। शांति वार्ता की प्रस्तावित योजनाएँ मिडिल-ईस्ट में केवल तभी सफल हो सकती हैं जब सभी प्रमुख पक्ष इसे सशक्त और स्थायी समाधान के रूप में स्वीकार करें। प्रमुख देशों की मध्यस्थता के बावजूद, जब तक क्षेत्रों की भूमि और सुरक्षा के मुद्दे पर एक स्थायी हल नहीं मिलता, तब तक मिडिल-ईस्ट में शांति स्थापना एक दूर की कौड़ी से ज्यादा नहीं होगी।