बीजिंग से एक और बेशर्मी भरा बयान आया है: चीन ने भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव को “शांत” करने के लिए ‘त्वरित और निष्पक्ष’ जांच की मांग की है। जी हां, वही चीन, जो खुद उइगर मुस्लिमों को कैंपों में ठूंसता है, तिब्बत और हांगकांग को रौंदता है, और अपने नागरिकों को ‘सोचने’ तक की आज़ादी नहीं देता — वही अब ‘न्याय’ और ‘शांति’ की बड़ी-बड़ी बातें कर रहा है।
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने कहा कि चीन “सभी उपायों का स्वागत करता है जो हालात को ठंडा करें।” बस पूछिए मत कि आतंकियों को समर्थन देना भी उन्हीं उपायों में आता है या नहीं।
जब उनसे पूछा गया कि क्या चीन जांच में भाग लेगा, तो उन्होंने उतनी ही सफाई से बात घुमा दी जितनी सफाई से चीन दक्षिण चीन सागर के नक्शे बदलता है। और पाकिस्तान के आतंकवाद को लेकर सवाल? सीधा जवाब देने से बेहतर उन्हें मौन रहना लगा।
सच कहें तो, जब चीन निष्पक्षता और शांति की बातें करता है, तो यह वैसा ही है जैसे लोमड़ी मुर्गियों के संरक्षण की शपथ ले रही हो। ‘आयरन ब्रदर’ पाकिस्तान को बचाते-बचाते अब खुद भी हास्यास्पद दिखने लगे हैं।
चीन ने हमेशा की तरह पाकिस्तान के ‘संप्रभुता और सुरक्षा हितों’ की रक्षा का समर्थन किया है — और ये वही पाकिस्तान है जो खुलेआम आतंकवादियों को पालता है और भारत में हमले करवाता है।
भारत द्वारा सिंधु जल संधि (IWT) निलंबित करने और राजनयिक संबंध घटाने के फैसले पर चीन कुछ नहीं बोला, क्योंकि जब अपने प्यारे ‘ब्रदर’ की हालत खराब हो रही हो तो चुप रहना ही रणनीति होती है।
साफ है — जब भी आतंकवाद का मामला आता है, चीन का फार्मूला यही रहता है:
“आंख बंद करो, पाकिस्तान की पीठ थपथपाओ, और दुनिया को नैतिकता पर भाषण दो।”
हमें भी चीन के इस ‘फेयर’ रवैये से वही प्रेरणा मिलती है जो किसी बकरी को भेड़िए के भरोसे छोड़ने से मिलती है।