“पाकिस्तान टूरिज़्म बोर्ड” की एक और शानदार पेशकश!
इस बार टारगेट – पहलगाम, कश्मीर।
26 बेगुनाहों की जान लेकर, फिर साबित कर दिया कि अगर कहीं टूरिज़्म फले-फूले नहीं देखा जाता, तो वो पाकिस्तान है।
गुरेज़, जो कभी एक शांत, खूबसूरत ट्रेकिंग डेस्टिनेशन था – आज वीरान पड़ा है। होटल खाली, गेस्ट हाउस बंद, और स्थानीय लोग फिर से बेरोजगारी की तरफ लौटते हुए। कर्ज़ में डूबे होटल मालिक अब शायद सोच रहे होंगे कि “हमें ट्रेकिंग नहीं, आतंक की तैयारी करनी चाहिए थी।”
2021 में जब भारत और पाकिस्तान ने संघर्ष विराम पर सहमति जताई थी, तब लगा था कि शायद पड़ोसी को होश आ गया हो। लेकिन नहीं, पाकिस्तान की पुरानी आदतें और नए आतंकी भेजने की भूख कम कहाँ होती है?
“पर्यटन बढ़ रहा था? तोड़ दो! लोग खुश हो रहे थे? बम फोड़ दो!”
यही है इस ‘शांति-प्रिय’ देश की असली नीति।
गुरेज़, उरी, बंगस, माछिल – इन सब इलाकों को पहली बार लोगों ने शांति में जीते देखा। स्थानीय लोगों ने होटल, होमस्टे, टेंट लगाकर रोज़गार कमाया। 2023 में 1.1 लाख टूरिस्ट आए थे। अब? सब बुकिंग्स रद्द, सड़कें सूनी, और पाकिस्तान फिर से वही पुराना गाना गा रहा है – “हम तो खुद पीड़ित हैं।”
सवाल ये है – जब भी कश्मीर में शांति की हल्की सी किरण दिखती है, तब पाकिस्तान को क्यों मिर्ची लगती है? शायद इसलिए कि शांति से उसका ‘स्टार्टअप मॉडल’ – आतंकवाद – ठप पड़ जाता है?
पाकिस्तान को चाहिए एक नया स्लोगन:
“जहाँ देखो टूरिस्ट, वहाँ भेजो टेररिस्ट!”
भारत ने अब इंदुस वॉटर ट्रीटी रोकी, अटारी-वाघा बंद किया, और पाकिस्तानी नागरिकों को देश छोड़ने को कहा। लेकिन क्या वाकई पाकिस्तान को फर्क पड़ता है? शायद नहीं। क्योंकि उसे फर्क सिर्फ तब पड़ता है जब उसके भेजे गए आतंकियों को वापस “72 हूरों” की एक्सप्रेस डिलीवरी नहीं मिलती।
कश्मीर के लोग अब कह रहे हैं:
“हमें हिमालय की ठंड मंज़ूर है, लेकिन पाक-प्रायोजित आतंक की आग नहीं।”