कांग्रेस के टिकट पर झारखंड में 16 विधायक चुनाव जीत कर आए हैं । इसके अलावा बंधु तिर्की और प्रदीप यादव के रुप में पार्टी को दो और विधायक अलग से मिल गये । यानि कुल मिलाकर 18 विधायक….झारखंड जैसे छोटे से राज्य में 18 विधायकों की संख्या वाली पार्टी और ऊपर से सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल दल हर मायने में संतुष्ट रहनी चाहिए थी. लेकिन झारखण्ड कांग्रेस में ऐसा नहीं है। यहां सत्ता की मलाई सिर्फ चंद लोगों को नसीब है और बाकि को सिर्फ आश्वासन पीकर जिंदा रहना पड़ रहा है।
तबादलों में विधायकों की राय तक नहीं ली गई
अभी-अभी सरकार ने बड़े पैमाने पर अधिकारियों का तबादला किया है। कांग्रेस विधायकों का कहना है कि हमारे क्षेत्र के अधिकारियों को ताश के पत्तों की तरह फेंटा जा रहा है, लेकिन हमसे राय तक नहीं ली जा रही । कांग्रेस के सिमडेगा विधायक भूषण बाड़ा ने ट्वीट कर अपना दर्द कुछ इस तरह रखा
सिमडेगा में पहले से ही डाॅक्टरों की कमी है। ऐसे में 11 डाॅक्टरों को बाहर भेजकर महज चार को सिमडेगा भेजा गया है। उन्होंने मुख्यमंत्री से जिले में पर्याप्त संख्या में डाॅक्टरों को पदस्थापित और प्रतिनियुक्त करने की मांग की है।
इसी तरह कृषि और ग्रामीण विकास विभाग में तबादलों पर भी कांग्रेस विधायकों में भारी नाराजगी है। इरफान अंसारी, उमाशंकर अकेला और दीपिका पांडे सिंह पर तो पार्टी के अंदर से ही इतने तीखे हमले हुए कि विपक्ष भी पानी मांगता नजर आया ।
महिला विधायकों का सिर्फ मुंह से सम्मान, पद देने में कोताही
कांग्रेस के अंदर नेताओं का एक गुट ऐसा है जो महिला विधायकों को किसी भी प्रकार का पद देने के मानो खिलाफ है। रांची में बैठा यह ग्रुप मीडिया तक ऐसी खबरें पहुंचाता है, जिससे कि इन महिला विधायकों की बदनामी हो । अंबा प्रसाद के नजदीकी का अवैध बालू लदा ट्रक पकड़ाना, अंबा प्रसाद का थाने में जाकर जब्त किए गये ट्रैक्टरों को छुड़ाना, रामगढ़ विधायक ममता देवी को सरकार के खिलाफ षड़यंत्र करते हुए बताना, दीपिका पांडे सिंह के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस….ये सब खबरें इसी रांची में बैठे पुरुषवादी मानसिकता वाले नेताओं की ओर से या तो प्लांट की घई या फिर प्रत्यक्ष तौर पर कहा गया । सिर्फ पूर्णिमा नीरज सिंह के बारे में ये ग्रुप इतना मुखर नहीं है, पर उसकी वजह सिंह मेंशन, राजपूत बिरादरी और कोयलांचल की राजनीति है, वरना अब तक शायद वो भी शिकार हो चुकी होतीं ।
बंधु तिर्की, राजेश कच्छप, भूषण बाड़ा, नमन विक्सल कोंगाड़ी को सुबोधकांत और ईसाई लॉबी का समर्थन
कांग्रेस के विधायकों का यह ग्रुप मिशनरीयों का लाडला है और राजधानी सहित आसपास के जिलों में काफी प्रभावी है। लेकिन हेमन्त सोरेन की सरकार को “क्रिसमस गिफ्ट” बताने वाले ईसाई समुदाय को इस सरकार में एक भी मंत्रीपद न मिलना अपने आप में चर्चा का विषय है। ये ईसाई लॉबी हमेशा से कांग्रेस के साथ रही है, लेकिन जब सत्ता में हिस्सेदारी की बात आती है तो इन्हें मायूसी ही हाथ लगती है। और मंत्री पद तो बन्ना गुप्ता और बादल पत्रलेख के हिस्से आ गई।
पलामू और कोयलांचल से कांग्रेस का सरकार में प्रतिनिधित्व नहीं
वर्तमान सरकार में प्रतिनिधित्व के मामले में कांग्रेस ने शायद कोयलांचल और पलामू पारमंडल को भुला ही दिया है। ऐसा लगता है मानों समूचे पलामू प्रमंडल के विकास की जिम्मेदारी झामुमो कोटे के मंत्री मिथिलेश ठाकुर ने ही संभाल रखा है। इसी तरह बेरमो से जयमंगल सिंह और झरिया से पूर्णिमा नीरज सिंह इस जुगाड़ में हैं कि कोयलांचल से कांग्रेस को प्रतिनिधित्व देने कीबारी आएगी तब शायद इनका नंबर भी आ जाय ?
पूर्णिमा नीरज सिंह को पद मिलने की उम्मीद ज्यादा
अगर कांग्रेस ने झरिया विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह को बोर्ड निगम या फिर 12वां मंत्री पद दिया तो वे महिला, कोयलांचल और राजपूत कोटा, तीनों एक साथ भर देंगी । मतलब एक पद देने से तीन तबकों को खुश किया जा सकता है। लेकिन उनके साथ बड़ी समस्या ये है कि वे पहली बार जीत कर आई हैं और दूसरी अबतक वे कम बोलने वाली, थोड़ी शर्मिली किस्म की विधायक रही हैं ।
रामचंद्र सिंह और बैजनाथ राम बियाबान में भटक रहे
लातेहार जिले की दो सीटें मनिका और लातेहार से इस बार कांग्रेस के रामचंद्र सिंह और बैजनाथ राम जीत कर आए हैं। लेकिन पिछले डेढ़ सालों में शायद ही ये दोनों कभी खबरों में रहे हों । कांग्रेस के सूत्र बताते हैं कि जिन 11 विधायकों के पालाबदल की बात आ रही थी, उनमें से इन दोनों से भी संपर्क किया गया था । खैर, आरोप तो जांच का विषय हैं लेकिन ये दोनों भटकते हुए कहां जाएंगे, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है ।
सुबोधकांत, डॉ. अजय कुमार, धीरज साहू, प्रदीप बलमुचू और सुखदेव भगत जैसे पर्दे के पीछे के खिलाड़ी
ये झारखंड कांग्रेस के वे दिग्गज हैं जिन्हें रामेश्वर उरावं के कार्यकाल में लगभग हाशिए पर रखा गया। सुखदेव भगत और प्रदीप बलमुचू की कांग्रेसमें वापसी के सावल पर रामेश्वर उरावं ने पहले ही कह दिया है कि जो चुनाव के वक्त गद्दारी कर पार्टी का साथ छोड़ गये, उनकी वापसी मुश्किल है। लिहाजा सुखदेव भगत और प्रदीप बलमुचू की दिली तमन्ना ये होगी कि किसी तरह रामेश्वर उरांव हटे, ताकि इनकी कांग्रेस में घर वापसी की राह आसान हो सके। कभी सुबोधकांत सहाय की झारखंड कांग्रेस में तूती बोलती थी। लेकिन लगातार दो लोकसभा चुनाव हारने के बाद इनके आभामंडल की चमक कहीं खो सी गई है. सुबोधकांत सहाय की जबरदस्त इच्छा है कि वे एक बार फिर झारखंड कांग्रेस की राजनीति के केन्द्र में आ जाएं, लेकिन ये तब संभव है जब वर्तमान सत्ता के केन्द्र को पलट दिया जाय । इसके लिए सुबोधकांत सहाय अपने कुछ खास विधायकों को अपने विश्वास में रखे हुए हैं . तलाश है तो एक अच्छे मौके की ।
डॉ. अजय कुमार और दीरज साहू, ये दो ऐसे दिग्गज हैं जिनकी दिल्ली में खूब चलती है। इन दोनों की पहुंच सीधे कांग्रेस आलाकमान तक है, और ये दोनों किसी भी वक्त कांग्रेस के अंदर का समीकरण बदलने का माद्दा रखते हैं। जो स्थिति बन रही है उसमें ये भी आसंका है कि कांग्रेस के ये पांचों दिग्गज सुबोधकांत, डॉ. अजय कुमार, धीरज साहू, प्रदीप बलमुचू और सुखदेव भगत आपस में हाथ मिला लें कि हमें प्रदेश नेतृत्व को बदलना है । कांग्रेस के लिहाज से अगले कुछ महीने बेहद अहम होने वाले हैं।