Friday 22nd of November 2024 05:29:49 AM
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मुस्लिम बच्चों को संस्कृत पढ़ने से रोकना असंवैधानिक और सांप्रदायिक

पिछले दिनों कोल्हान प्रमंडल के एक सरकारी एवं दो असम्बद्ध संस्कृत विद्यालयों द्वारा मुस्लिम छात्रों को एडमीशन न देने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है । इस विषय को लेकर महागामा से कांग्रेस विधायक दीपिका पांडेय सिंह ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखा है । अपनी चिट्ठी में दीपिका पांडे सिंह ने विद्यालयों के इस कदम को सांप्रदायिक और अलोकतांत्रिक बताते हुए सीएम से कार्रवाी की मांग की है ।

जैक अधिकारी कौशल मिश्रा के मौखिक आदेश के बाद मुस्लिम छात्रों का निबंधन रद्द किया गया
जैक अधिकारी कौशल मिश्रा के मौखिक आदेश के बाद मुस्लिम छात्रों का निबंधन रद्द किया गया- दीपिका पांडेय सिंह

जैक के पदाधिकारी कौशल मिश्रा निशाने पर

दीपिका पांडेय सिंह अपनी चिट्ठी में लिखती हैं कि झारखण्ड एकेडमिक कॉउन्सिल के एक पदाधिकारी के कथित मौखिक आदेश के आलोक में विद्यालय प्रवन्धन ने अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों का मध्यमा परीक्षा के लिए निबंधन/नामांकन पर तत्कालीन रोक लगा दिया था जिसके कारण अल्पसंखयक छात्रों को परेशानियों का सामना करना पड़ा। समाचार पत्रों में उक्त तीनों स्कूल के प्रिंसिपल का वयान छपा है की उन्होंने झारखण्ड एकेडमिक कॉउन्सिल के 10 वीं कक्षा सह-कोऑर्डिनेटर कौशल मिश्रा के मौखिक आदेश के आलोक में मुस्लिम छात्रों का निवन्धन रोक दिया था। कौशल मिश्रा ने अपना पक्ष रखते हुए इस अमर्यादित, गैरकानूनी, असंवैधानिक और साम्प्रदायिक कदम को यह कहते हुए सही ठहराया है की चूँकि मुस्लिम बच्चे वेद नहीं पढ़ते इसलिए संस्कृत स्कूल में उनका नामांकन नहीं किया जा सकता है। यहाँ तक की वह पूर्व में हुए नामांकनों पर भी प्रश्न उठाते हैं।

धर्म और भाषा के आधार पर छात्रों से भेदभाव गलत

कांग्रेस विधायक दीपिका पांडेय सिंह का कहना है कि झारखण्ड में ऐसा पहली बार हुआ है जब की धर्म और भाषा के आधार पर संस्कृत विद्यालयों में मुस्लिम छात्रों के नामांकन निषेध कर दिया गया, जो की बेहद आपत्तिजनक है। यह तो संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन तो है ही, यह कृत्य संविधान प्रदत्त ‘शिक्षा एक मौलिक अधिकार’ के विरुद्ध है। अब मामला प्रकाश में आने पर आननफानन में शिक्षा विभाग ने उक्त तीनों स्कूल के प्रिंसिपल के विरुद्ध निलंबन / कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया है। मगर ऐसा प्रतीत होता है की झारखण्ड एकेडमिक कॉउन्सिल के उक्त पदाधिकारी के विरुद्ध कोई भी कार्रवाई नहीं की गयी है। यह झारखण्ड एकेडमिक कॉउन्सिल और उसके पदाधिकारियों के द्वारा शिक्षा के साम्प्रदायिकरण का घृणित प्रयास है जिसे हलके से नहीं लिया जा सकता है। जानकारी के अनुसार 2019 में भी झारखण्ड एकेडमिक कॉउन्सिल ने संस्कृत स्कूलों को ऐसा ही मौखिक निर्देश जारी किया था।

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