उज्ज्वल दुनिया /रांची । झारखंड सरकार के विभिन्न विभाग पूर्व की रघुवर सरकार के दौरान हुए 53 हजार 379 करोड़ रुपए का हिसाब नहीं दे रहे हैं। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। सीएजी ने इस राशि की धोखाधड़ी की आशंका जताई है। इसलिए समय-सीमा निर्धारित कर इसके तहत उपयोगिता प्रमाण-पत्र जमा नहीं करने वाले विभागों और निकायों का अनुदान रोकने की अनुशंसा की गई है।
वित्तीय वर्ष 2019 के लिए जारी सीएजी के लेखा परीक्षा प्रतिवेदन में 12 महीने में सभी बकाया उपयोगिता प्रमाण-पत्रों को उपलब्ध कराने की ताकीद की गई है। बकाया उपय़ोगिता प्रमाण-पत्रों का बड़ा हिस्सा पांच विभागों का है। इसके तहत शहरी विकास विभाग के पास 12 हजार 232 करोड़ 71 लाख, मानव संसाधन विकास विभाग के पास 11 हजार 781 करोड़ 58 लाख, कल्याण विभाग के पास कुल चार हजार 772 करोड़ 79 लाख, कल्याण विभाग के पास दो हजार 71 करोड़ 84 लाख, कृषि, पशुपालन और सहकारिता विभाग के पास एक हजार 250 करोड़ 65 लाख का उपयोगिता प्रमाण-पत्र बकाया है। केवल वर्ष 2018-19 में कुल 19 हजार 545 करोड़ 33 लाख रुपए का उपयोगिता प्रमाण-पत्र बकाया हो गया है।
मजदूरों के कल्याण में नहीं दिए 473 करोड़
मजदूरों के कल्याण के नाम पर ठेकेदारों से वसूले गए सेस के 473 करोड़ 48 लाख रुपए खर्च नहीं किए गए। श्रम विभाग ने मजदूरों के कल्याण की 22 योजनाएं ही बंद कर दी। इस कारण धन का उपयोग नहीं हो सका। इस कारण मजदूरों के कल्याण के नाम पर वसूली गई यह राशि झारखंड भवन और अन्य निर्माण कल्याण बोर्ड को नहीं दी जा सकी।
विकास का 20 हजार करोड़ नहीं खर्च कर पाए विभाग
सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018-19 में राज्य सरकार के सभी विभाग मिलकर विकास के लिए मिले अनुदानों में 20 हजार 223 करोड़ रुपया नहीं खर्च कर पाए। इस कारण कल्याणकारी योजनाओं और विकास परियोजना में संरचनागत प्रबंधन का महत्वपूर्ण लक्ष्य नहीं पूरा किया जा सका। पशुपालन य़ोजनाओं में अनुदान की 56 फीसदी और सहकारिता य़ोजनाओं की 62.5 फीसदी राशि खर्च नहीं की जा सकी। नागरिक उड्डयन के विस्तार के लिए मिली राशि में से 89.10 फीसदी नहीं खर्च की जा सकी।