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अलविदा एसपी बालासुब्रमण्यम…

देवांशु झा की कलम से…..

तब वह आवाज़ नयी थी मेरे लिए। परंतु वह अंदाज़ नया नहीं था। मैं मानता था कि गायक के ऊपर मुहम्मद रफ़ी की शैली का बहुत प्रभाव है। यह बात अस्सी के उत्तरार्द्ध और नब्बे के पूर्वार्द्ध की है। मेरा आकलन सही था। एसपीबी एक बार सारेगामा में जज बनकर आए। करीब बाईस-तेईस साल पुरानी घटना है। तब उन्होंने सोनू के यह पूछे जाने पर कि वह अपना आदर्श किसे मानते हैं या किसका गायन उन्हें सबसे अधिक प्रभावित करता है? एसपीबी ने तत्क्षण कहा था; नन अदर देन रफ़ी! मैं घर बैठे वह शो देखकर मंद-मंद मुस्कुरा रहा था।(वह वीडियो अब भी मौजूद है) फिर उन्होंने दीवाना हुआ बादल को सुने जाने का एक दिलचस्प किस्सा सुनाया और गाकर भी बताया कि वह क्यों रफ़ी के बड़े प्रशंसक थे।

एसपीबी एक जटिल गायक हैं। उनकी आवाज़ अधिकतर मौकों पर बहुत तीखी सुनाई देती है। वह अपने पिच से स्वाभाविक रूप से ऊपर गाते हैं और बहुत ऊपर ले जाते हैं परंतु नीचे के स्वरों को गाते हुए आश्चर्यजनक रूप से मधुर भी हो जाते हैं। वह एक खिलाड़ी गायक रहे जिन्हें शब्दों से खेलना, उसे कतिपय नाटकीयता से मंडित करना मोहता था। वह इस कला के महारथी थे। निस्संदेह रफ़ी के बाद इस कला के सबसे बड़े महारथी। ध्यान रहे मैं पुरुष गायकों की बात कर रहा हूं।

एसपीबी ने हिन्दी में कम ही गाने गाए। लेकिन जो कुछ भी गाकर वह गए, सब स्मृति में रह गया। हिन्दी पट्टी में वह सागर और एक दूजे के लिए.. से जाने गए। एक दूजे के लिए फिल्म में उन्होंने तेरे मेरे बीच में..बहुत बढ़िया गाया। जिसे स्वयं लता विलक्षण गा चुकी हैं। फिर सागर फिल्म के गाने यादगार हैं। इसके बाद वह बहुत सुनाई नहीं पड़ते। तब हिन्दी में रफ़ी और किशोर की कमी ऐतिहासिक रूप असह्य आवाज़ के स्वामियों शब्बीर और अज़ीज़ से पूरी की गई थी। यह एक पहेली ही है मेरे लिए कि उन घटिया गायकों को क्यों उतने गाने मिले? एसपीबी  हिन्दी में फिर सलमान की फिल्मों के साथ लौटे। और वहां भी कुछ कर्णप्रिय गाने उनके नाम दर्ज हैं। गर्दिश आदि में भी उनका गाया हुआ बहुत अच्छा है।

एक किस्सा है कि पंचम ने उन्हें एक कठिन गाना दिया। एसपीबी ने कहा कि अरे यह तो बहुत मुश्किल है, मैं कैसे गाऊंगा? पंचम ने अपने अंदाज़ में मीठी गाली देते हुए कहा; इसीलिए तो तुम्हें इतनी दूर मद्रास से यहां बुलवाया क्योंकि तुम ही गा सकते हो! निश्चय ही एसपीबीएस ऊपर नीचे को बहुत सफलता से बांधते थे।

वह दक्षिण के सिने संसार के अधिपति गायक रहे। उन्होंने सबसे बड़े सितारों के लिए गाने गाए। तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम सभी भाषाओं को स्वर दिया। सबसे जटिल, सबसे नाटकीय और सबसे लोकप्रिय गाने उनके ही हिस्से में आए। एसपीबी का जादू कुछ ऐसा चला कि हर दौर का बड़ा और प्रतिभाशाली गायक अपना श्रेष्ठ देने से रह गया। उसके हिस्से का कुछ अच्छा गायन भी एसपीबी के हिस्से में चला गया। जो कि अच्छा नहीं हुआ! 

दक्षिण के लोक की आवाज़ है एसपीबीएस। वह आवाज़ येसुदास की नहीं है। येसुदास की आवाज़ पवित्र है। एसपीबीएस की आवाज़ दक्षिण के अत्यंत भावप्रधान सिनेमाई दृश्यों, क्षण-प्रतिक्षण बदलते बिम्बों और संवेदनाओं के अनुरूप है। उस आवाज़ को मैं येसुदास के शुद्ध स्वर के समकक्ष तो नहीं रख सकूंगा लेकिन यथेष्ट आदर के साथ याद रखूंगा। जहां तक मैं समझता हूं वह एक भद्र मनुष्य भी थे। उनके चेहरे पर बिखरी पीली हंसी इसका सबूत देती है। 

मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि उनके गायन का सबसे अच्छा समय जा चुका था। अब वह कोई विशिष्ट गायन करते ऐसा नहीं! वह एक पार्श्वगायक के रूप में निचोड़े जा चुके थे। उस बुढ़ाते कंठ से अब कुछ नया टपकना तो संभव नहीं था किन्तु उन्हें कुछ वर्ष और रहना था। उनका होना नए गायकों और संगीत की संस्कृति के लिए प्रेरणादायी होता। वह एक ईमानदार गुरु और शिक्षक भी थे। उन्होंने भरा-पूरा, समृद्ध जीवन जिया। सम्मान और प्रेम के शिखर पर रहे। ईश्वर उन्हें अपनी शरण में लें!

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