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विधानसभा परिसर में अटलजी की प्रतिमा के नीचे धरने पर बैठे रघुवर दास
विधानसभा परिसर में अटलजी की प्रतिमा के नीचे धरने पर बैठे रघुवर दास

झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास विधानसभा भवन में धरने पर बैठ गये हैं। उनकी मांग है कि हेमंत सरकार ने विधानसभा भवन के एक कमरे को नमाज पढ़ने के लिए आरक्षित किया है, उस आदेश को वापस ले। धरने पर बैठे रघुवर दास ने कहा कि आदिवासी-आदिवासी का जाप कर सोरेन परिवार करोड़ों अरबों का मालिक बन बैठा। अब अपनी सत्ता बचाने के लिए तुष्टीकरण का नंगा नाच कर रहा है। लेकिन हेमंत सोरेन और उसका परिवार कान खोलकर सुन ले, झारखण्ड उनकी जागीर नहीं है। हम इस राज्य को कलंकित नहीं होने देंगे।

तुष्टीकरण से समाज में फैल रहा विद्वेष

रघुवर दास ने कहा कि दास ने कहा कि विधानसभा लोकतंत्र का मंदिर है। इसे धार्मिक अखाड़ा नहीं बनाना चाहिए। मौजूदा सरकार तुष्टीकरण की नीति अपना रही। इससे समाज में विद्वेष फैल रहा है। उन्होने कहा कि 1947 में बाबा साहेब ने संविधान के प्रस्तावना में कहा था कि विधानसभा लोकतंत्र का मंदिर है, जहां राज्य की जनता की आवाज उठानी चाहिए, न कि धर्म का अखाड़ा बने। कहीं भी ऐसा प्रावधान नही है जहां किसी समुदाय विशेष के लिए जगह आवंटित किया गया हो। हेमंत सोरेन वोट बैंक की राजनीति कर रहे है।

लाठी-गोली और दमन से नहीं डरने वाले भाजपा कार्यकर्ता

रघुवर दास ने कहा कि उनको चुनावी जीत का घमंड हो गया है। वे पुलिस को भाजपा कार्यकर्ताओं पर लाठी-डंडे बरसाने का इशारा कर रहे हैं, लेकिन हेमंत सोरेन को शायद अंदाजा भी नहीं कि इसका परिणाम कितना भयंकर होगा। रघुवर दास ने कहा कि भाजपा कार्यकर्ता के हर पसीने, खून की हर बूं का जवाब देना होगा। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को बचाने के लिए गोली लाठी खाएंगे। यहां परिवार तंत्र नही होने देंगे। हमारी पार्टी लाठी डंडे से डरने वाली नही है।

बाबूलाल मरांडी, दीपक प्रकाश सहित भाजपा के तमाम बड़े नेता धरने में थे शामिल
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मैट्रिक पास करने से कोई झारखण्डी हो जाता है क्या ?

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि इन्होने जो नई नियुक्ति नियमावली बनाई है, उसमें सिर्फ झारखण्ड से मैट्रिक पास करने वाला नौकरी पाने का हकदार हो जाता है। और जो झारखण्ड के आदिवासी बाहर दूसरे प्रदेशों में नौकरी कर रहे हैं, नके बाल-बच्चों का क्या ? मैं झामुमो के कई नेताओं को जानता हूं जिनके बच्चे दिल्ली और देश के बड़े स्कूलों में पढ़ते हैं। क्या वे सब झारखण्डी नहीं हैं ?

हिंदी को हटाना और उर्दू को शामिल करना तुष्टीकरण नहीं तो क्या है ?

रघुवर दास ने कहा कि नई नियुक्ति नियमावली में हिंदी, संस्कृत, मगही, मैथिली, अंगिका आदि भाषाओं को झारखण्डी भाषाओं की सूची से हटा दिया गया है। पलामू, गढ़वा, लातेहार के बड़े हिस्से में मगही बोली जाती है। साहिबगंज, गोड्डा, देवघर में मैतिली, अंगिका आदि भाषाओं का चलन है। और तो और राज्य के सबसे बड़े हिस्से में बोली जाने वाली हिंदी को भी इन्होने सूची से बाहर कर दिया।

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