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योगी आदित्यनाथ से क्यों नाराज़ हैं बीजेपी के विधायक और कार्यकर्ता?

उत्‍तर प्रदेश में ज्‍यादातर विधायक योगी आदित्‍यनाथ की सरकार से नाराज हैं। नाराजगी में पत्र लिखकर सोशल मीडिया पर भी डाल रहे हैं और उस पत्र को आधार बनाकर मीडिया का एक वर्ग मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ की कुर्सी हर दिन छीनता रहता है।

योगी-मोदी को हिंदुत्व की बजाय जाति में बांधने की कोशिश
योगी-मोदी को हिंदुत्व की बजाय जाति में बांधने की कोशिश

ज्‍यादातर विधायक इसलिये भी नाराज हैं कि टिकट पाने और चुनाव जीतने के लिये जितनी बड़ी धनराशि खर्च की उतना भी कमाना मुश्किल हो गया। इन विधायकों को एक ऐसे अदद मुख्‍यमंत्री की दरकार थी, जो खुद भी कमाये और इन्‍हें भी कमाई करने में अपना सहयोग दे। योगी इस मानक पर तो बिल्‍कुल खरे नहीं उतरे और वह इस काम के लिये घृणा के पात्र भी हैं।

भाजपा कार्यकर्ता भी नाराज है कि वह सपाइयों-बसपाइयों की तरह थानेदारों को गाली नहीं दे सका, कहीं जमीन कब्‍जा नहीं करा सका, अपराधियों की पैरवी नहीं कर सका! इसी का परिणाम है कि सरकार के अच्‍छे कामों को संगठन जनता तक पहुंचाने में पूरी तरह असफल रहा है, क्‍योंकि तमाम लोग नाराज हैं।

संगठित अपराध को तहस-नहस कर दिया 

दरअसल, योगी आदित्‍यनाथ पूरी तरह पॉलिटिकल व्‍यक्ति नहीं हैं। पॉलिटिकल होते तो पिछले मुख्‍यमंत्रियों की तरह अपराधियों के खिलाफ बयानबाजी करके चुपचाप सरकार चलाते, और अपराधियों को जेलों से खुलकर अपराध करने की छूट देते, लेकिन उन्‍होंने बयानबाजी करने की बजाय अपराध और अपराधियों को नेस्‍तनाबूद करने की गैरराजनीतिक सोच अख्तियार किया। राजनीतिक व्‍यक्तियों की तरह कथनी-करनी में भेद नहीं होने के चलते ही अपराधियों की गोली का जवाब गोली से देने तथा अपराध की बदौलत खड़े आर्थिक साम्राज्‍य को तहस-नहस करने की रणनीति पर काम किया। आज उनके इस एप्रोच का असर है कि यूपी में संगठित अपराध की कमर टूट चुकी है।

इतनी बड़ी उपलब्धि संगठन और कार्यकर्ता जनता तक नहीं पहुंचा सके, क्‍योंकि वह सरकार से नाराज हैं। नाराजगी का कारण जनहित के मुद्दे नहीं बल्कि खुद की आर्थिक मजबूती देने की वह आदिम मानसिकता है, जो योगी आदित्‍यनाथ के बागडोर संभालने से पहले सभी सत्‍ताधारी राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं में पाई जाती रही है।

मीडिया का एक वर्ग योगी आदित्यनाथ के खिलाफ 

मीडिया का एक वर्ग भले ही पिछले डेढ़ साल से हर रोज योगी की कुर्सी छीन ले रहा हो, लेकिन यूपी भाजपा को भी यह स्‍पष्‍ट संकेत दे दिया गया है कि उन्‍हें 2022 का विधानसभा चुनाव मोदी-योगी के चेहरे पर ही लड़ना होगा। संघ और भाजपा हाईकमान इस बात से मुत्‍तमईन है कि योगी के दामन पर भ्रष्‍टाचार का एक दाग नहीं लगा है, जबकि उनके ज्‍यादातर मंत्री जनता की सुविधा बढ़ाने से ज्‍यादा ध्‍यान अपनी खुद की और परिवार की निजी हैसियत बढ़ाने में जुटे हुए हैं।

चार साल में योगी खुद को कठोर प्रशासक के साथ हिंदुत्‍व के ब्रांड के रूप में स्‍थापित करने में सफल रहे हैं। उनकी यह छवि भाजपा के लिये भीड़ जुटाऊ लीडर की है।

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