नई दिल्ली: हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने सोमवार को ट्रंप प्रशासन को जवाब देते हुए कहा कि वह “अपनी स्वतंत्रता नहीं छोड़ेगा और न ही अपने संवैधानिक अधिकारों का परित्याग करेगा”।
शुक्रवार को विश्वविद्यालय को भेजे गए पत्र में ट्रंप प्रशासन ने विश्वविद्यालय में व्यापक प्रशासनिक और नेतृत्व सुधारों की मांग की। इसमें “मेधा-आधारित” प्रवेश और नियुक्ति नीतियां अपनाने तथा छात्रों, संकाय और प्रशासन के विचारों का ऑडिट करने की बात कही गई।
हार्वर्ड के इस जवाब के बाद प्रशासन ने विश्वविद्यालय के साथ 2.2 अरब डॉलर से अधिक के अनुदान और 60 मिलियन डॉलर के अनुबंधों को फ्रीज़ करने की घोषणा कर दी।
पत्र में विश्वविद्यालय से मांग की गई थी कि वह 7 अक्टूबर, 2023 के बाद से कथित रूप से “यहूदी विरोधी गतिविधियों में शामिल छात्र समूहों” को समर्थन देना बंद करे और उनके पदाधिकारियों तथा सदस्यों को दंडित करे।
इन समूहों में Harvard Palestine Solidarity Committee, Harvard Graduate Students 4 Palestine, Law Students 4 Palestine, Students for Justice in Palestine, और National Lawyers Guild शामिल हैं।
प्रशासन ने यह भी मांग की कि हार्वर्ड सभी प्रकार के DEI (विविधता, समावेशन और समानता) कार्यक्रमों को तत्काल बंद करे और “अमेरिकी मूल्यों और संविधान के प्रति शत्रुतापूर्ण” अंतरराष्ट्रीय छात्रों को प्रवेश से रोके।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय का जवाब
हार्वर्ड ने अपने जवाब में कहा कि वह “ऐसी किसी भी मांग को मानने के लिए तैयार नहीं है जो इस या किसी भी प्रशासन की वैधानिक सीमाओं से बाहर हो”।
विश्वविद्यालय ने यह भी कहा कि वह “यहूदी-विरोध और किसी भी प्रकार के भेदभाव का विरोध करता है, और समुदाय में वैचारिक विविधता व सिविल संवाद को बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रमों को बढ़ा रहा है”।
“न तो हार्वर्ड और न ही कोई अन्य निजी विश्वविद्यालय संघीय सरकार द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। हम संवाद के लिए खुले हैं, लेकिन अपनी स्वतंत्रता पर कोई समझौता नहीं करेंगे,” विश्वविद्यालय ने अपने जवाब में कहा।