नयी दिल्ली। हमने पिछले सात वर्षों में 5 लाख से अधिक पट्टे वनवासियों और आदिवासियों को दिए गए। पहले जनजातिय कार्य मंत्रालय का बजट 3800/- करोड़ होता था आज ये 7200 करोड़ है। जहाँ पहले 10 वनोपज को ही MSP मिलता था, वहीँ आज मोदी सरकार ने ये संख्या बढ़ा कर 86 कर दी है। ये बातें केन्द्रीय जनजाति मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने दिल्ली के पर्यावरण भवन में आयोजित मुख्य सचिवों की बैठक में कही ।
आदिवासियों पर मोदी सरकार का संयुक्त घोषणापत्र एतिहासिक कदम
अर्जुन मुंडा ने कहा कि आज जनजातीय कार्य मंत्रालय एवं वन,पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का संयुक्त घोषणा पत्र एक ऐतिहासिक कदम है। वनाधिकार को लेकर जनजाति समुदाय औपनिवेशिक काल से संघर्ष करता आया है। अंग्रेजों ने वनों से जुड़े वैसे कानून बनाये,जो कि सिर्फ व्यवसाय हित से जुड़े थे। वहां रहनेवाले जनजातियों के हित मे कुछ नहीं सोचा। आज के इस संयुक्त घोषणा पत्र से देश के विभिन्न हिस्सों के जंगल में रहनेवाले जनजाति भाई बहनों को व्यक्तिगत या सामुहिक वनाधिकार के माध्यम से उन्हें नैसर्गिक जीवन जीने की सुविधा मिलेगी।
आदिवासी वनों में नौसर्गिक तरीके से जीवनयापन कर सकेंगे
केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि आदिवासी हमेशा प्रकृति के साथ तारतम्य स्थापित कर जीते हैं। उन्हें इससे अलग नहीं किया जा सकता है।वह कभी भी वनों की अवैध कटाई नहीं करते।परंपरा तो ये है कि खेती किसानी के लिए लकड़ी की आवश्यकता होने पर वह सबसे पहले वनदेवता की पूजा करते हैं, तब सूखी लकड़ी पर हाथ लगाते हैं। उनका भोजन, आजीविका और संस्कृति वनों पर निर्भर है, इसलिए उन्हें इससे अलग नहीं किया जा सकता है।पर्यावरण के असली संरक्षक वनवासी ही हैं। वनवासी ही अधिक से अधिक वनों का आच्छादन कर सकते हैं।
ट्रायफेड से आदिवासियों की आजीविका बढ़ेगी
गत सात वर्षों में 5 लाख से अधिक पट्टे वनवासियों और आदिवासियों को दिये गये हैं। पहले सिर्फ 10 लघु वनोपज को एमएसपी मिलता था, वहीं आज मोदी सरकार ने यह संख्या बढ़ा कर 86 कर दी है। ट्रायफेड वन धन केंद्रों के माध्यम से सरकार जनजातीय समुदाय के लोगों की आजीविका में योगदान कर रही है।