साहिबगंज । राजमहल लोकसभा क्षेत्र की डेमोग्राफी कुछ इस तरह है कि भाजपा के लिए ये सीट हमेशा चुनौती रही है। मुस्लिम और ईसाई मतदाता की बहुलता के कारण झामुमो के लिए ये सीट आसान मानी जाती है।
राजमहल में 37 फीसद आदिवासी और 5 प्रतिशत SC हैं। 29 फीसदी अल्पसंख्यक और 28 फीसदी सनातनी हिंदू रहते हैं।
राजमहल लोकसभा क्षेत्र में महेशपुर, लिïट्टीपाड़ा, बरहेट तथा बोरियो विधान सभा क्षेत्र ST के लिए रिजर्व है, वही राजमहल और पाकुड़ से सामान्य जाति के लोग चुनाव लड़ सकते हैं। राजमहल लोकसभा क्षेत्र के कुछ मतदान केंद्र गोड्डा और दुमका जिला में भी हैं।
इस बार राजमहल लोकसभा क्षेत्र का माहौल 2019 के मुकाबले बदला बदला सा है, उसके निम्नलिखित कारण हैं:
उम्मीदवार
पिछली बार हेमलाल मुर्मू झामुमो से पाला बदलकर बीजेपी में आए थे। उनको टिकट दिए जाने से बीजेपी का कैडर बहुत खुश नहीं था। लेकिन इस बार माहौल थोड़ा अलग है। झामुमो के मौजूदा सांसद विजय हांसदा के खिलाफ़ माहौल ख़राब है। उनके बारे में आम शिकायत ये है कि उन्होंने क्षेत्र के लिए कुछ नहीं किया। सिर्फ़ बीजेपी से विरोधी के नाम पर उन्हें कब तक वोट दिया जाए ? विजय हांसदा अपनी उपलब्धि बताएं।
लॉबिन हेंब्रम
दूसरा फैक्टर हैं लोबिन हेंब्रम। लॉबिन हेंब्रम ने एलान कर दिया है कि अगर मेरे बेटे को झामुमो से टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय खड़े होंगे। हालांकि लॉबिन हेंब्रम अपनी बात पर कायम रहेंगे इसपर शक है। वे पहले भी झामुमो के बारे में अनाप शनाप बोलते रहे हैं, पर ऐन मौके पर गुरुजी और शिबू सोरेन के नाम पर सरेंडर कर जाते हैं।
देवीधन टुडू फैक्टर
तीसरा फैक्टर है देवीधन टुडू, ताला मरांडी और बाबूलाल मरांडी की तिकड़ी। देवीधन टुडू हाल ही में भाजपा में शामिल हुए हैं, उनका अपना खुद का जनाधार है। वे ताला मरांडी के लिए खूब पसीना बहा रहे हैं, क्योंकि उन्हें अगली बार महेशपुर से विधानसभा चुनाव लड़ना है। अपने क्षेत्र में उन्होंने ताला मरांडी को लीड दिला दी तो विधानसभा चुनाव में उनका टिकट पक्का हो जाएगा
ताला मरांडी
भाजपा उम्मीदवार ताला मरांडी ख़ुद ज़मीन से जुड़े नेता हैं। इलाका उनके लिए जाना पहचाना है और वे अंदरूनी इलाके में घुसकर प्रचार कर रहे हैं। ताला मरांडी आदिवासी सेंटीमेंट्स और उनके मुद्दे अच्छी तरह समझते हैं। उनके साथ रांची लॉबी ने राजनीति जरूर की थी, पर वो बीती बात हो गई। इस बार आदिवासी मतदाताओं के बीच ताला मरांडी को लेकर पॉजीटिव चर्चा है।
बाबूलाल मरांडी
बाबूलाल मरांडी के प्रदेश अध्यक्ष बनने का संथाल आदिवासियों के बीच बीजेपी की छवि बदली है। बाबूलाल मरांडी दुमका और राजमहल के हर गांव, हर गली से परिचित हैं। शायद ही कोई ऐसा गांव हो, जहां के दो- चार लोगों को बाबूलाल नाम और चेहरे से नहीं पहचानते हों। इसका असर भी राजमहल लोकसभा चुनाव में दिखेगा
लेकिन इन तमाम फैक्टर्स के बावजूद झामुमो कमज़ोर है, ऐसा मानना बेवकूफी होगी। आलमगीर आलम पाकुड़ में झामुमो को लीड दिलाएंगे तो राजमहल विधानसभा में एमटी राजा को आजसू से तोड़कर दोबारा पार्टी में शामिल कराना JMM का मास्टरस्ट्रोक ही माना जाएगा। हेमन्त सोरेन को जेल भेजने से भी आदिवासी सेंटिमेंट भाजपा के विरुद्ध गया है। इसलिए राजमहल बीजेपी के लिए आज भी मुश्किल सीट की श्रेणी में ही आएगी ।