भले ही हम आधुनिक युग में जी रहे हों, लेकिन समाज में भेदभाव और दोहरे मापदंड अब भी कायम हैं। थायरोकेयर के संस्थापक और अरबपति डॉ. अरोकियास्वामी वेलुमनी के साथ हाल ही में ऐसी ही एक घटना घटी।
बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स (BKC) के एक स्टार होटल में जाने के लिए वे ऑटो-रिक्शा से पहुंचे, लेकिन होटल के सुरक्षा गार्डों ने उनके वाहन को प्रवेश देने से मना कर दिया। गार्ड्स ने होटल के नियमों का हवाला देते हुए कहा कि ऑटो-रिक्शा को अंदर जाने की अनुमति नहीं है। वेलुमनी को नीचे उतरकर पैदल ही होटल में प्रवेश करना पड़ा।
इस दौरान उन्होंने ऑटो ड्राइवर से बातचीत की और जाना कि वह अपने बेटे को आईआईटी हैदराबाद में पढ़ा रहा है। ड्राइवर हर दिन 12-14 घंटे मेहनत करता है ताकि वह अपने बेटे की फीस भर सके। यह कहानी उनके लिए प्रेरणादायक थी, लेकिन होटल द्वारा किया गया भेदभाव उन्हें सोचने पर मजबूर कर गया।
इस घटना ने समाज में मौजूद वर्ग विभाजन और बाहरी दिखावे के आधार पर किए जाने वाले भेदभाव की ओर इशारा किया। आखिर क्यों एक मेहनती व्यक्ति, जो अपने बेटे को आईआईटी जैसी प्रतिष्ठित संस्थान में पढ़ा रहा है, केवल एक ऑटो ड्राइवर होने की वजह से सम्मान का हकदार नहीं समझा जाता?
यह घटना बदलाव की जरूरत को दर्शाती है। क्या सिर्फ गाड़ियों की चमक-धमक से ही किसी की सामाजिक स्थिति तय होनी चाहिए? मेहनत और ईमानदारी से जीने वालों को भी वही सम्मान मिलना चाहिए, जो किसी अमीर व्यक्ति को मिलता है।