Friday 22nd of November 2024 03:22:49 AM
HomeBreaking Newsमोदी और योगी का 'राम

मोदी और योगी का ‘राम

मोदी-योगी के बीच "राम-राम"
मोदी-योगी के बीच “राम-राम” या “जयश्री राम” ?

1977 में इस देश में ‘वोट क्रांति‘ का एहसास हुआ था। लोकसभा के चुनाव में राजनैतिक सर्वशक्तिमान की पर्याय इंदिराजी की पार्टी कांग्रेस ने लोकसभा में न सिर्फ अपना बहुमत खोया,स्वयं इंदिराजी अपनी रायबरेली सीट गंवा बैठी। लेकिन,ढाई साल बीतते- बीतते चौधरी चरण सिंह मोरारजी देसाई की सरकार से अलग हुए, जनता पार्टी छोड़ी और इंदिराजी की कांग्रेस के सहयोग से प्रधानमंत्री बन बैठे।

लेकिन,इसके पहले कि वह लोकसभा में अपना बहुमत सिद्ध कर पाते, इंदिराजी की कांग्रेस ने चौधरी चरण सिंह की सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। कोई भी पार्टी, कोई भी नेता सरकार बना पाने की स्थिति में नहीं था, सो मध्यावधि चुनाव हुए।जनता पार्टी के दोनों गुटों की आपसी लड़ाई का फायदा इंदिरा जी को मिला और महज ढाई तीन वर्षों में इंदिरा जी दुबारा प्रधानमंत्री बन पाने में सफल हुई।

जब-जब किसी की उपेक्षा की गई,  सत्ता पलटी है 

….. उत्तरप्रदेश में मुलायम सिंह यादव ने 2012 में ही अखिलेश यादव को अपना राजनैतिक वारिस भी घोषित कर दिया था।2012 का विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी ने अखिलेश के नेतृत्व में लड़ा, स्पष्ट बहुमत हासिल किया और अखिलेश मुख्यमंत्री बने। 2017 का विधानसभा चुनाव आते-आते मुलायम सिंह यादव के भाई शिवपाल सिंह यादव ने खुद को उपेक्षित महसूस किया, समाजवादी पार्टी के भीतर वर्चस्व की लड़ाई हुई, पार्टी के भीतर,परिवार के भीतर की लड़ाई में भतीजे ने चाचा को हरा दिया, लेकिन विधानसभा के लिए चुनावी जंग हार गए।

मोदी-शाह की पहली पसंद नहीं थे योगी 

….. उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव,2022 सर पर हैं। लगभग साढ़े चार साल से योगी आदित्यनाथ भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री हैं । प्रदेश भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह बार-बार घोषणा कर रहे हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव योगीजी के चेहरे पर ही लड़ा जाएगा… लेकिन, इसे कोई गंभीरता से नहीं ले रहा ।  क्योंकि पिछले 8 वर्षों से भाजपा के चुनावी चेहरा नरेन्द्र मोदी-अमित शाह योगी आदित्यनाथ से आहत बताए जा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर,योगी आदित्यनाथ मोदी-शाह की जोड़ी से आहत हैं।

योगी ने खुद को अगले प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया ? 

मोदी-शाह की शिकायत है कि 2017के विधानसभा चुनाव में जो तीन-चौथाई सीटें मिली थीं,वह मोदीजी के चेहरे पर मिली थी। चुनावी परिदृश्य में योगीजी कहीं थे नहीं। अगर,आरएसएस ने अपना वीटो नहीं लगाया होता,तो योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री नहीं हुए होते। लेकिन, मुख्यमंत्री बननेके बाद योगीजी ने मोदीजी के वर्चस्व को तोड़ने की कोशिश की है । मोदीजी के समानान्तर खुदको स्थापित करने की कोशिश की है, ‘मोदी के बाद योगी’के नारे लगवाए हैं । सोशल मीडिया पर, प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, डिजिटल मीडिया ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में भी प्रायोजित विज्ञापन- खबरों से चुनौती पेश करने की कोशिश की है और मोदी-शाह की जोड़ी यह बर्दाश्त कर पाने की स्थिति में नहीं है।

राम मंदिर आंदोलन का श्रेय देने में गोरखनाथ पीठ की उपेक्षा की गई 

दूसरी तरफ योगी आदित्यनाथ की शिकायत है कि राम जन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन और श्रीराम मंदिर निर्माण आन्दोलन के आरंभिक दौर 1949से ही गोरखपुर के महंत दिग्विजय नाथ और महंत अवैद्यनाथ की महती भूमिका रही है। इन दोनों महंतों के सार्वजनिक योगदान के वह वारिस रहे हैं, लेकिन 5अगस्त,2020को मंदिर का शिलान्यास समारोह में उनको उचित तवज्जो नहीं दी गई। शिलान्यास नरेन्द्र मोदी ने किया,जबकि आन्दोलनमें उनका व्यक्तिगत योगदान नगण्य रहा है। योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री जरूर हैं, लेकिन उप-मुख्यमंत्री, मंत्री,विधायक,नौकरशाही पर मोदी-शाह ने अपना वर्चस्व बनाए रखा है और वह उन्मुक्त होकर अपनी भूमिका नहीं निभा पा रहे हैं।

जारी है शह और मात का खेल

केशव प्रसाद मौर्य का ये कहना कि मुख्यमंत्री पर फैसला चुनाव बाद होगा या मोदी के भरोसेमंद ए. के. शर्मा का पार्टी उपाध्यक्ष बनाना यूँ ही नहीं है ।  आपसी वर्चस्व की इस लड़ाईमें मोदी-शाह योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद से हटाकर चुनावी जंग में जाना चाहते थे। लेकिन, यहां पर आरएसएस ने अपना वीटो लगा रखा है। योगी आदित्यनाथ को हटाने का मतलब होगा-मुस्लिम विरोधी कट्टर हिन्दू वोटों का बिदकना। नफरत-विद्वेष,उन्माद फैलाने के अतिरिक्त कुछ भी सकारात्मक रचनात्मक और सृजनात्मक बताने- कहने के लिए भाजपा के पास है नहीं।

भाजपा से इतर गोरखनाथ धाम में अपने समर्थकों के साथ योगी की गुप्त मीटिंग

एक तरफ मोदी-शाह और दूसरी तरफ योगी आदित्यनाथ की जंग उस मुकाम पर पहुंच गई है कि योगी आदित्यनाथ भाजपा से बाहर जाकर अपने मृतप्राय संगठन पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं। 18जून को दैनिक जागरण में छपी खबर इसी बात की तस्दीक कर रही है। योगी आदित्यनाथ अपने गढ़ गोरखपुर में अपने समर्थकों के साथ विचार-विमर्श तो कर रहे हैं, लेकिन भाजपा का झंडा-पताका गायब है। इस जंग में लाभ किसी का भी हो,हानि सिर्फ और सिर्फ मोदीजी की होनी है।

जीते तो वाह-वाह योगी, हार गये तो हाय-हाय मोदी

उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव,2022अगर भाजपा जीतती है,तो श्रेय योगीजी को मिलेगा और वह पार्टी के भीतर मजबूत प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभरेंगे और 2024 लोकसभा का चुनाव में भाजपा का चेहरा मोदी नहीं योगी होंगे। अगर, उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव,2022 में भाजपा हारती है,तो उसका एक बड़ा कारण कोरोना की दूसरी कहर के दौरान कुप्रबंधन और कुव्यवस्था को जाएगा।इसका खामियाजा मोदीजी को ही भुगतना होगा क्योंकि कुप्रबंध और कुव्यवस्था राष्ट्रीय स्तर पर रही है,सिर्फ उत्तरप्रदेश में नहीं।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments