नई दिल्ली: भारत ने पाकिस्तान के साथ किसी भी प्रकार की राजनीतिक बातचीत को पूरी तरह खारिज कर दिया है। सरकार से जुड़े उच्च पदस्थ सूत्रों ने स्पष्ट किया कि भारत-पाकिस्तान के बीच वार्ता का एकमात्र माध्यम सैन्य संचालन महानिदेशक (DGMO) स्तर की बातचीत है।
सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तान की ओर से यदि किसी समझौते का उल्लंघन हुआ तो भारत की प्रतिक्रिया और भी सख्त होगी। भारत ने यह भी दोहराया कि सिंधु जल संधि, जो वर्तमान में निलंबित है, तब तक बहाल नहीं होगी जब तक पाकिस्तान आतंकवाद पर लगाम नहीं लगाता।
एक अधिकारी ने बताया कि पहलगाम में हुए नरसंहार के बाद भारत ने स्पष्ट कर दिया था कि इसका जवाब ज़रूर मिलेगा। इसी के तहत 7 मई को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत नौ लक्षित हमले किए गए। यह कार्रवाई पूरी तरह सटीक, परंतु गैर-उत्तेजक थी।
उन्होंने बताया कि अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वांस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बात की थी, जिसमें मोदी ने दो टूक कहा कि यदि पाकिस्तान ने कोई हमला किया, तो भारत पहले से भी ज़्यादा कड़ी कार्रवाई करेगा।
सूत्रों ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत ने स्पष्ट कर दिया कि किसी तीसरे देश की मध्यस्थता की कोई ज़रूरत नहीं है और वार्ता केवल DGMO स्तर पर ही होगी।
8 मई से 10 मई तक पाकिस्तान की ओर से हमले जारी रहे, जिनमें 26 स्थानों को भारी हथियारों से निशाना बनाया गया। इसके जवाब में भारत ने रफ़ीक़ी, मुरिद, चकलाला, रहीम यार खान, सुक्कुर, चूनियां, पस्सरूर और सियालकोट एयरबेस पर सटीक हमले किए।
10 मई को दोपहर 1 बजे पाकिस्तान की ओर से DGMO को संदेश भेजा गया: “क्या आप बातचीत के लिए तैयार हैं?” भारत की ओर से शाम 3:30 बजे औपचारिक वार्ता हुई, जिसके बाद युद्धविराम की घोषणा की गई।
हालांकि रात को पाकिस्तान ने ड्रोन हमले कर युद्धविराम का उल्लंघन किया। रविवार तक किसी क्षेत्र में कोई बड़ी घटना नहीं हुई, लेकिन भारत ने इसे गंभीर उल्लंघन मानते हुए चेतावनी दी है कि इसका करारा जवाब दिया जाएगा।
भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह स्पष्ट कर दिया है कि पाकिस्तान से कोई राजनीतिक बातचीत नहीं होगी। सूत्रों ने कहा, “यदि पाकिस्तान PoK भारत को सौंपना चाहता है, तो सीधे बात करे। आतंकियों को सौंपना है तो सीधे संपर्क करे। किसी तीसरे देश की जरूरत नहीं है।”
यह भी कहा गया कि पाकिस्तान अक्सर यह दिखावा करता है कि वह संवाद चाहता है, लेकिन खुद को भारत का हिस्सा भी नहीं मानता। ऐसे में, भारत विरोध की भावना रखने वाले तत्व जब राष्ट्रवाद की बात करते हैं, तो यह एक बड़ी विडंबना है। यदि वे खुद को भारतीय नहीं मानते, तो फिर भारतीय बनकर बातचीत या अधिकार की मांग करना दोहरा रवैया है — और यही उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक कमजोरी है।