कोलकाता । TMC के संस्थापक सदस्य रहे मुकुल रॉय की टीएमसी में घर वापसी हो गई है । बीजेपी में शामिल होने के बाद इन्हें उपाध्यक्ष बनाया गया था । कहा जा रहा है कि ऐसे कई नेता जो विधानसभा चुनाव के पहले बीजेपी में शामिल हुए थे, वे दोबार TMC में वापस लौटना चाहते हैं ।
घर वापसी क्यों करना चाहते हैं TMC के बागी ?
विधानसभा चुनाव के पहले बड़ी संख्या में तृणमूल कांग्रेस के नेता बीजेपी में इस उम्मीद के साथ शामिल हुए थे कि भगवा पार्टी बंगाल की सत्ता में आएगी । लेकिन TMC की बंपर जीत ने इनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया । अब वे जानते हैं कि अगले पांच साल तक ममता बनर्जी ही बंगाल में सबकुछ हैं । इन नेताओं के लिए पांच साल तक सत्ता से दूर रहना मुश्किल है । इतना ही नहीं, बंगाल की राजनीतिक संस्कृति को देखते हुए ये जानते हैं कि TMC से दुश्मनी लेकर वे शांति से नहीं रह सकते ।
बंगाली अस्मिता बनाम हिंदी भाषी बीजेपी
ममता बनर्जी और उनकी पार्टी ने बीजेपी को बाहरी और TMC को बंगाली पार्टी बताया है । बंगाल बनाम अन्य भाषा का विभाजन वहां समाज के अंदर गहरे तक पैठ जमा चुका है । इसके अलावा बंगाली मध्यवर्ग खुद की संस्कृति, कला आदि से लगाव रखता है । इस मामले को लेकर आम बंगाली भाषी लोगों का यूपी और बिहार के हिंदी भाषी लोगों से टकराव रहा है । अब कोई नेता बंगाल में रहकर हिंदी भाषियों की पार्टी बीजेपी के पक्ष में राजनीति कैसे कर सकता है?
बीजेपी के लिए क्या है संकेत?
मोदी-आमित शाह की जोड़ी के राजनीति के केन्द्र में आने के बाद हर चुनाव से पहले भाजपा में बड़े पैमाने पर नेताओं को शामिल कराया जाता रहा है । ये उनकी रणनीति रही है कि विरोधी दलों को तोड़ो । लेकिन इस जोड़-तोड़ के चक्कर में बीजेपी के असली नेता और कार्यकर्ताओं की कहीं न कहीं अनदेखी हो जाती है । ये ऐसे नेता और कार्यकर्ता हैं जो वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध हैं और ये तमाम नाराज़गी के बावजूद किसी दूसरी पार्टी की ओर नहीं देखते ।
वैचारिक रुप से पार्टी से जुड़े लोगों की अनदेखी क्यों?
बंगाल चुनाव से पहले दिलीप घोष जैसे नेता की टिकट बंटवारे में अनदेखी की गई । झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले संघ और मूल कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर बड़े पैमाने पर आयातित लोगों को टिकट दिया गया । बिहार विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने यही रणनीति अपनाई । तीनों राज्यों में बीजेपी की बुरी तरह हार हुई । सुखदेव भगत जैसे नेता जैसे आए थे, वैसे ही वापस चले गए । क्या सचमुच बीजेपी का मूल कार्यकर्ता जीताऊ उम्मीदवार नहीं होता? जिस कार्यकर्ता ने पार्टी को दो सीटों से 200 सीटों तक पहुंचाया ?