Tuesday 22nd of October 2024 03:45:24 PM
HomeBreaking Newsमुकुल रॉय और उनके बेटे शुभ्राशु की TMC में घर वापसी

मुकुल रॉय और उनके बेटे शुभ्राशु की TMC में घर वापसी

अभिषेक बनर्जी ने मुकुल रॉय को पार्टी का पट्टा पहनाया
अभिषेक बनर्जी ने मुकुल रॉय को पार्टी का पट्टा पहनाया

कोलकाता । TMC के संस्थापक सदस्य रहे मुकुल रॉय की टीएमसी में घर वापसी हो गई है । बीजेपी में शामिल होने के बाद इन्हें उपाध्यक्ष बनाया गया था । कहा जा रहा है कि ऐसे कई नेता जो विधानसभा चुनाव के पहले बीजेपी में शामिल हुए थे, वे दोबार TMC में वापस लौटना चाहते हैं ।

घर वापसी क्यों करना चाहते हैं TMC के बागी ?

विधानसभा चुनाव के पहले बड़ी संख्या में तृणमूल कांग्रेस के नेता बीजेपी में इस उम्मीद के साथ शामिल हुए थे कि भगवा पार्टी बंगाल की सत्ता में आएगी । लेकिन TMC की बंपर जीत ने इनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया । अब वे जानते हैं कि अगले पांच साल तक ममता बनर्जी ही बंगाल में सबकुछ हैं । इन नेताओं के लिए पांच साल तक सत्ता से दूर रहना मुश्किल है । इतना ही नहीं, बंगाल की राजनीतिक संस्कृति को देखते हुए ये जानते हैं कि TMC से दुश्मनी लेकर वे शांति से नहीं रह सकते ।

बंगाली अस्मिता बनाम हिंदी भाषी बीजेपी

ममता बनर्जी और उनकी पार्टी ने बीजेपी को बाहरी और TMC को बंगाली पार्टी बताया है । बंगाल बनाम अन्य भाषा का विभाजन वहां समाज के अंदर गहरे तक पैठ जमा चुका है । इसके अलावा बंगाली मध्यवर्ग खुद की संस्कृति, कला आदि से लगाव रखता है । इस मामले को लेकर आम बंगाली भाषी लोगों का यूपी और बिहार के हिंदी भाषी लोगों से टकराव रहा है । अब कोई नेता बंगाल में रहकर हिंदी भाषियों की पार्टी बीजेपी के पक्ष में राजनीति कैसे कर सकता है?

बीजेपी के लिए क्या है संकेत?

मोदी-आमित शाह की जोड़ी के राजनीति के केन्द्र में आने के बाद हर चुनाव से पहले भाजपा में बड़े पैमाने पर नेताओं को शामिल कराया जाता रहा है । ये उनकी रणनीति रही है कि विरोधी दलों को तोड़ो । लेकिन इस जोड़-तोड़ के चक्कर में बीजेपी के असली नेता और कार्यकर्ताओं की कहीं न कहीं अनदेखी हो जाती है । ये ऐसे नेता और कार्यकर्ता हैं जो वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध हैं और ये तमाम नाराज़गी के बावजूद किसी दूसरी पार्टी की ओर नहीं देखते ।

वैचारिक रुप से पार्टी से जुड़े लोगों की अनदेखी क्यों?

बंगाल चुनाव से पहले दिलीप घोष जैसे नेता की टिकट बंटवारे में अनदेखी की गई । झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले संघ और मूल कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर बड़े पैमाने पर आयातित लोगों को टिकट दिया गया । बिहार विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने यही रणनीति अपनाई । तीनों राज्यों में बीजेपी की बुरी तरह हार हुई । सुखदेव भगत जैसे नेता जैसे आए थे, वैसे ही वापस चले गए । क्या सचमुच बीजेपी का मूल कार्यकर्ता जीताऊ उम्मीदवार नहीं होता? जिस कार्यकर्ता ने पार्टी को दो सीटों से 200 सीटों तक पहुंचाया ?

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments