ओबीसी आरक्षण को लेकर मोदी सरकार ने बड़ा दांव चला है। ओबीसी में किन जातियों को शामिल किया जाय और किनको इससे बाहर निकाला जाय, इस बात को लेकर हमेशा से राजनीति होती रही है। अब मोदी सरकार ओबीसी में जातियों को शामिल करने या हटाने का अधिकार राज्य सरकारों को देने जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद बिल लेकर आई मोदी सरकार
दरअसल, तमिलनाडु के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि ओबीसी की लिस्ट तैयार करने का अधिकार केवल केन्द्र सरकार को है। इसपर कई राज्यों की सरकारों ने आपत्ति जताई थी. आपत्ति जताने वालों में ओ़िशा, तमिलनाडु, तेलंगाना की राज्य सरकारें थी। इसके अलावा समाजवादी पार्टी, ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी एवं बिहार के पप्पू यादव की पार्टी जाप ने भी ओबीसी लिस्ट तैयार करने का अधिकार राज्य सरकारों को सौंपने की मांग की थी। इसी कारण केन्द्र की मोदी सरकार एक बिल लेकर आई, जिसमें ओबीसी जातियों की लिस्ट तैयार करने का अधिकार राज्य सरकारों को दिया जा रहा है।
राजनीति पर क्या होगा असर ?
दरअसल, समाजवादी आंदोलन से जुड़ी पार्टियों का आरोप था कि देश में हमेशा कांग्रेस या बीजेपी की सरकारें रही हैं। क्षेत्रीय दल इन दोनों पार्टियों के ओबीसी विरोधी शामिल करने के लिए ये तर्क देते थे कि ओबीसी आरक्षण की लिस्ट तैयार करने का अधिकार तो इन दोनों पार्टियों को ही है। अब केन्द्र की मोदी सरकार ने ये राजनीति ही खत्म कर दी। अब राज्य सरकारें अपने हिसाब से ओबीसी जातियों की लिस्ट तैयार करेगी और केन्द्र सिर्फ उसका अनुमोदन करेगा। अगले साल उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। वहां समाजवादी पार्टी भाजपा के खिलाफ ओबीसी-मुस्लिम समीकरण बनाना चाहती है। अब समाजवादी पार्टी को यादवों के अलावा अन्य ओबीसी जातियों को भी समान तरजीह देनी होगी. इधर, योगी आदित्यनाथ कुछ जातियों को ओबीसी में शामिल करने का आश्वासन देकर उन्हें अपनी ओर मोड़ सकते हैं। मतलब, समाजवादी पार्टी अपनी ही मांग में फंसकर रह गई है। वे इस बिल का विरोध भी नहीं कर सकते, और अगर वो किसी जाति को ओबीसी में शामिल करने की बात करते हैं तो पहले से शामिल जातियों के नाराज होने का खतरा है।