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बांग्लादेश में भारतीय सेना की जीत का स्मारक तोड़ा: राजनीतिक और कूटनीतिक प्रभाव

बांग्लादेश में भारतीय सेना की जीत का स्मारक तोड़ा: राजनीतिक और कूटनीतिक प्रभाव

ढाका, 12 अगस्त 2024: बांग्लादेश के मुजीबनगर में स्थित भारतीय सेना की जीत के स्मारक पर हुए हमले ने राजनीतिक और कूटनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। इस स्मारक ने 1971 की भारत-पाकिस्तान जंग में भारतीय और बांग्लादेशी सेनाओं की जीत और पाकिस्तान की हार को सम्मानित किया था।

प्रदर्शन और विवाद:

प्रदर्शनकारियों ने इस स्मारक को क्षतिग्रस्त कर दिया, जिससे इस ऐतिहासिक स्थल का महत्व प्रभावित हुआ है। यह स्मारक भारतीय सेना और मुक्तिवाहिनी की साझा विजय को प्रदर्शित करता है, जिसमें पाकिस्तानी सेना की हार को दर्शाया गया था। 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल ए.ए.के. नियाजी ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था, और यह स्मारक उस ऐतिहासिक पल की याद दिलाता था जब उन्होंने समर्पण दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए थे।

राजनीतिक प्रतिक्रिया:

स्मारक पर हमला होने के बाद, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना से देश लौटने की अपील की है। ब्रिगेडियर जनरल एम सखावत, जो वर्तमान में गृह मंत्रालय के प्रभारी हैं, ने टिप्पणी की कि हसीना की पार्टी को नए नेताओं की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि हसीना को देश से निकाल नहीं दिया गया था; उन्होंने स्वयं देश छोड़ने का निर्णय लिया था। सखावत ने यह सुनिश्चित किया कि हसीना की दिल्ली में मौजूदगी से भारत-बांग्लादेश के रिश्तों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।

स्मारक की सुरक्षा और भविष्य:

स्मारक के नुकसान से बांग्लादेश में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संवेदनाओं पर एक सवाल उठता है। भारतीय सेना की जीत के स्मारक को लेकर स्थानीय भावनाओं और राष्ट्रीय गर्व का सम्मान बनाए रखने की आवश्यकता है। इस घटना ने बांग्लादेशी समाज में विभाजन और ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण की अहमियत को उजागर किया है।

अंतरराष्ट्रीय कूटनीति:

इस घटना के अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक प्रभाव भी हो सकते हैं, खासकर भारत-बांग्लादेश संबंधों पर। दोनों देशों के बीच दोस्ताना और सहयोगात्मक संबंध बनाए रखने के लिए, दोनों सरकारों को इस घटना की गंभीरता को समझना होगा और इसे सुलझाने के लिए एक समानान्तर दृष्टिकोण अपनाना होगा।

बांग्लादेश में इस घटनाक्रम के चलते सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थलों की सुरक्षा पर ध्यान देने की आवश्यकता पर जोर दिया जा रहा है, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचा जा सके।

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