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स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार से कोसो दूर कुकड़ू प्रखंड, चुनावी वादे घोषणा पत्र तक ही सीमित

सरायकेला: सरायकेला जिला के कुकड़ू प्रखंड के लोग अलग प्रखंड का दर्जा मिलने के दशकों बाद भी मुलभूत सुविधाओं से वंचित है। यहां के लोग वर्षों से विकास की रोशनी से वंचित हो अपने को उपेक्षित महसूस करते हैं। प्रखंड के लोग खासकर सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आदि मूलभूत सुविधाओं के लिए लालायित है। कुकड़ू प्रखंड में कूल 44 गांव है, औऱ यहां की आबादी 65 हजार के करीब है। अधिकांश लोग गरीब तबके के हैं, और अधिकतर लोग किसान है, जो खेतीबाड़ी कर अपना घरबार चलाते है। कुकड़ू प्रखंड का सृजन वर्ष 2009 में सरायकेला जिला के नीमडीह प्रखंड के पांच पंचायत और ईचागढ़ प्रखंड के चार पंचायत को अलग कर गठन किया गया है। कुकड़ू प्रखंड बने 11 साल बीत गए, लेकिन, अभी तक यहां स्वास्थ्य,शिक्षा,रोजगार जैसे मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है। वही यहां का युवा वर्ग रोजगार के लिए अन्य राज्य पलायन करने को विवश हैं।

एएनएम के भरोसे स्वास्थ्य व्यवस्था

यदि हम स्वास्थ्य व्यवस्था की बात करे तो पूरे कुकड़ू प्रखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था एएनएम के भरोसे चल रहा है। कुकड़ू प्रखंड क्षेत्र के तिरुलडीह में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र है। वही कुकड़ू में और पारगामा के हाईतिरुल में स्वास्थ्य उपकेंद्र है, जो केवल नाम मात्र के लिए है। जहां भवन तो है। लेकिन, संसाधन नहीं है। न तो जांच की व्यवस्था और न ही डॉक्टर की व्यवस्था है। डॉक्टर के अभाव में लोगों को यहां से स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। इलाज के लिए ग्रामीण जमशेदपुर, रांची,पुरुलिया जाने को विवश हैं। इधर तिरुलडीह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की बात करे, तो यहां एक एएनएम के भरोसे से पूरा स्वास्थ्य केंद्र चल रहा है। यहां मंगलवार एवं बुधवार को और प्रत्येक माह के 9 तरीख को प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के कैम्प के दिन डॉ. बलराम मांझी आते है। बाकी दिनों में कोई डॉक्टर की सुविधा यहां नही है। यदि कोई बड़ी घटना हो तो यहां के मरीजों को ईचागढ़ सीएचसी रेफर किया जाता है। यही हाल पारगामा के हाईतिरुल उप प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का भी है। यहां कोई भी डॉक्टर नही आते है, एएनएम ही अस्पताल चलाती है। तिरुलडीह में प्रसव भी नर्स के द्वारा ही किया जाता है।

रोजगार का नही है कोई साधन, वार्षिक खेती पर निर्भर है लोग

कुकड़ू प्रखंड क्षेत्र के लोगो का रोजगार का कोई साधन नही है। यहां न तो कोई कंपनी है। न ही अन्य कोई रोजगार का साधन। यहां के लोग सिर्फ वार्षिक धान के खेती पर निर्भर रहते है, अन्य दिनों में किसानों के खेत पानी के अभाव में पूरा खाली रहता है। यदि चांडिल डैम से लिफ्ट इरिगेशन के माध्यम से पानी की सुविधा उपलब्ध करा दी जाए तो लोग चारो सीजन में सब्जियां उगा कर लोग अपना आजीविका चला लेंगे और खुद आत्मनिर्भर बन जायेंगे। वर्तमान में कई लोग मनरेगा योजना में कुछ लोगो का जॉब कार्ड जुगाड़ कर मनरेगा में तालाब,डोभा, कूप निर्माण, टीसीवी जैसे योजनाओं में काम लेकर करवाते है। वही यहां के लोगो दूसरा रोजगार का साधन बालू है, लेकिन बालू घाटों की नीलामी नही होने के कारण बालू का कारोबार करके आजीविका चलाने वाले लोग अक्सर पुलिस-प्रशासन से परेशान रहते है। लोग बताते है कि एक ट्रैक्टर में एक ड्राइवर समेत कुल पांच मजदूर कार्य करते है। जिससे एक दिन में एक मजदूर पांच सौ से सात सौ रुपये मजदूरी करके कमा लेते है। वही ट्रैक्टर मालिक भी खुद का परिवार के साथ ट्रैक्टर का स्टॉलमेंट भी भरते है। जिसके वजह से क्षेत्र में क्राइम भी नही होती है। लेकिन, बालू घाटों की नीलामी नही होने के वजह से मजदूर से लेकर ट्रैक्टर मालिक भी पुलिस-प्रशासन से परेशान रहते है और चोरी छिपे बालू का कारोबार करते है। कई बार बालू का कारोबार करने वाले लोगो के साथ-साथ मजदूरों ने भी स्थानीय प्रशासन से लेकर जिला प्रशासन और विधायक, सांसद तक को पंचायतों बालू घाटों का जिम्मा या टोकन सिस्टम लागू करने की मांग कर चुके है, लेकिन प्रशासन या जनप्रतिनिधियों का ध्यान इस ओर नही जाता है। वही राज्य सरकार भी बालू घाटों की नीलामी की और ध्यान नही दे रही है।

शिक्षा व्यवस्था भी है लचर, सड़के है जर्जर

कुकड़ू प्रखंड क्षेत्र में शिक्षा व्यवस्था भी लचर है। यहां प्राथमिक शिक्षा को छोड़कर, सभी उच्च विद्यालयों में शिक्षकों की घोर कमी है, उच्च विद्यालयों तीन से चार ही शिक्षकों ही पदस्थापित है। वही शिक्षक प्लस टू विद्यालयों में भी पढ़ाते है। वही कुकड़ू प्रखंड में न तो डिग्री कॉलेज है, न तो आईटीआई या पॉलीटेक्निक कॉलेज है। हर चुनाव में चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी डिग्री,आईटीआई और पॉलीटेक्निक कॉलेज खोलने की वादे करते है, लेकिन ये सभी मुद्दे घोषणा पत्र तक ही सीमित रह जाती है। यहां के छात्र-छात्राएं डिग्री की पढ़ाई के लिए करीब 40 किलोमीटर दूर चांडिल या अन्य जगह जाते है। वही अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़के और रोजगार देने की वादे की भी यही स्थिति है। ये भी घोषण पत्र तक ही सीमित रह जाती है। यदि हम सड़को की बात करें तो अधिकतर ग्रामीण सड़के जर्जर अवस्था मे है। इसपर कोई जनप्रतिनिधि ध्यान नही देते है। वही लोग बताते है कि चुनाव के समय सभी नेता गांव-गांव वोट मांगने आते है और विकास करने का झूठा आस्वासन देकर चले जाते हैं।

बड़े अधिकारी नही आते क्षेत्र

स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार जैसे मूलभूत सुविधाओ का न होने का मुख्य वजह बड़े अधिकारियों का क्षेत्र भ्रमण में नही आना है। दरअसल पिछड़ा क्षेत्र होने और सड़क काफी जर्जर होने के वजह से जिले डीसी, एसपी, डीडीसी, एसडीओ समेत बड़े अधिकारी क्षेत्र भ्रमण में नही आते है। यदि कोई अधिकारी एक बार आ भी गए तो सड़क जर्जर होने के वजह से दोबारा नही आना चाहते है। वही यदि विधायक, सांसद आते है भी तो आस्वासन या एक दूसरे को आरोप प्रत्यारोप लगाकर चले जाते है। कोई कहता है कि यह काम केंद्र सरकार का है, तो कोई कहता है यह काम राज्य सरकार का है। वही अधिकारियों के क्षेत्र भ्रमण में नही आने और जनप्रतिनिधियों के आस्वासन का खामियाजा आम लोग भुगतते है।

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