झारखंड विधानसभा चुनाव 2025 के चार महीने बीत जाने के बाद भी भाजपा अपने विधायक दल के नेता का चयन नहीं कर पाई है। इस देरी के कारण संवैधानिक पदों पर नियुक्तियाँ प्रभावित हो रही हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने भी भाजपा को निर्देश दिया है कि दो सप्ताह के भीतर विधायक दल के नेता का नाम घोषित किया जाए।
तीन प्रमुख नामों पर चर्चा
- बाबूलाल मरांडी:
- झारखंड के पहले मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता।
- पार्टी में अनुभव और लोकप्रियता के आधार पर सबसे मजबूत दावेदार।
- संगठन पर मजबूत पकड़, लेकिन विपक्ष की ओर से कटाक्ष का सामना कर रहे हैं।
- सीपी सिंह:
- पूर्व विधानसभा अध्यक्ष।
- भाजपा के वरिष्ठ नेता और रांची सीट से कई बार विधायक।
- विधानसभा प्रक्रियाओं और संवैधानिक मामलों का गहरा अनुभव।
- डॉ. नीरा यादव:
- पार्टी की महिला नेतृत्व को बढ़ावा देने की संभावना।
- पार्टी में उनकी सक्रियता और पिछड़ा वर्ग से आने का फायदा।
- विपक्ष पर कटाक्ष करने और महिला सशक्तिकरण का उदाहरण पेश करने की रणनीति।
सत्तारूढ़ JMM का हमला
झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि पार्टी विपक्ष में रहकर भी संवैधानिक जिम्मेदारियों को निभाने में विफल हो रही है।
- JMM ने इसे भाजपा की आंतरिक गुटबाजी का परिणाम बताया।
- साथ ही, इसे संवैधानिक प्रक्रियाओं में जानबूझकर देरी करने की कोशिश करार दिया।
संवैधानिक संकट का प्रभाव
- सूचना आयुक्त की नियुक्ति में बाधा:
- समिति में नेता प्रतिपक्ष का शामिल होना आवश्यक है।
- भाजपा के नेता का चयन न होने से सूचना आयुक्तों की नियुक्ति रुकी हुई है।
- भाजपा की साख पर सवाल:
- संवैधानिक प्रक्रियाओं में देरी से विपक्ष को भाजपा की कार्यक्षमता पर सवाल उठाने का अवसर मिला है।
क्या कह रहा है सर्वोच्च न्यायालय?
सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा को सख्त निर्देश देते हुए कहा है कि दो सप्ताह के भीतर विधायक दल का नेता घोषित किया जाए। इस समय सीमा का पालन न करने पर भाजपा को और आलोचना झेलनी पड़ सकती है।
निष्कर्ष
भाजपा के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह जल्द से जल्द विधायक दल के नेता का चयन कर संवैधानिक संकट को खत्म करे। पार्टी के भीतर बाबूलाल मरांडी के नाम पर सहमति बनने की संभावना सबसे ज्यादा है, लेकिन आंतरिक गुटबाजी और रणनीतिक फैसले इस प्रक्रिया में देरी का कारण बन रहे हैं।