झारखंड कांग्रेस के चार विधायक दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं। आधिकारिक रूप से कहा गया है कि ये पार्टी की मजबूती पर चर्चा करने दिल्ली गए हैं। लेकिन सबको पता है कि मामला इतना साफ और सरल नहीं है।
12 वें मंत्री का मामला भले ही फिलहाल टल गया हो, लेकिन यह लंबे समय तक नहीं खिंच सकता। महागठबंधन सरकार के पांच में से डेढ़ साल निकल चुके हैं । बाकी के साढ़े तीन साल में ही सबकुछ करना है, लिहाजा विधायक थोड़े बेचैन हैं। पता नहीं कब 12 वां मंत्री बनेगा, पता नहीं कब बोर्ड-निगम का गठन होगा, पता नहीं किसे मौका मिलेगा…कुल मिलाकर अधीरता वाली स्थिति है।
कांग्रेस के गैर-आदिवासी विधायकों के हाथ खाली
प्रदीप यादव बहुत उम्मीद लेकर कांग्रेस में आए थे, लेकिन अबतक वे वेटिंग लिस्ट में ही हैं। कांग्रेस के चार महिला विधायकों में से किसी को कुछ नहीं मिला है । दीपिका पांडे सिंह कांग्रेस आलाकमान स्तर से लॉबिंग कर रही थीं, लेकिन कोई फायदा नहीं, अंबा प्रसाद अपनी पार्टी छोड़ सीधे हेमंत सोरेन के नजदीक आने की कोशिश करती कर रही हैं । लेकिन उनके तमाम टैन्ट्रम के बावजूद सिर्फ उनके मां-बाप को राहत मिलने की उम्मीद है, पद मिलने का कोई भरोसा नहीं मिला है। ममता देवी को आरपीएन सिंह से बड़ी उम्मीदें हैं।
बड़बोलेपन विधायकों का क्या होगा?
कांग्रेस के अंदर इस बात की भी चर्चा है कि बड़बोले विधायकों से कांग्रेस नेतृत्व परेशान है । भले ही उनसे कुछ कहा न गया हो, लेकिन उनकी शिकायत उपर तक की गई है। जाहिर है कि इस लिस्ट में इरफान अंसारी और उमाशंकर अकेला का नाम सबसे ऊपर है । ये दोनों विधायक अपने बयानों से पार्टी की किरकिरी करा चुके हैं।
आरपीएन सिंह के प्रभारी रहते राजपूत विधायकों को कुछ नहीं मिला
झरिया विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह और कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे राजेन्द्र सिंह के बेटे जयमंगल सिंह को उम्मीद थी कि राजपूत बिरादरी को इस सरकार में नुमाइंदगी जरुर मिलेगी । ये कुछ उसी तरह है जैसे प्रदीप यादव और उमाशंकर अकेला को लगता है कि यादव कोटे से उनको कुछ मिल सकता है। लेकिन अबतक तो वेटिंग ही चल रहा है।
सभी पद सिर्फ विधायकों को ही क्यों मिले ?
उधर कांग्रेस के पुराने और निष्ठावान कार्यकर्ताओं में ये भी चर्चा हो रही है कि जरूरी नहीं कि सारे पद सिर्फ विधायकों को ही मिले । दूसरे कार्यकर्ताओं को भी बोर्ड-निगम में जगह मिलना चाहिए।