रांचीः महावीर महली ओरमांझी के डहू गांव के निवासी हैं। उनका परिवार परंपरागत रूप से बांस के सामान बनाता है। वे बांस से बने गुलदस्ता, लैंप स्टैंड, दीवार पर सजानेवाले फूलदान, पेन स्टैंड सहित अन्य कलात्मक सामानों को बनाते हैं। महावीर पिछले दस सालों से झारक्राफ्ट से जुड़े हैं। झारक्राफ्ट से जुड़ने के बाद उनके कौशल में और निखार आया। झारक्राफ्ट के माध्यम से उन्हें इन वस्तुओं के निर्माण के अलावा इनकी मार्केटिंग में भी सहायता मिली है। महावीर आज इस कला की बदौलत अपने परिवार का भरण पोषण अच्छी तरह से कर रहे हैं।
झारक्राफ्ट के जरिये हस्तशिल्प को बढावा दे रही सरकार
झारक्राफ्ट के माध्यम से राज्य सरकार झारखंड के हस्तशिल्प उत्पादों को आगे बढ़ाने में लगी है। इन हस्तशिल्पों में कई तरह की चीजें हैं। लाह के सामान, बांस के सामान, डोकरा आर्ट, सोहराई, कोहबर, जादूपटिया पेंटिंग, टेराकोटा आर्ट, जूट के सामान, चमड़े के उत्पाद जिसमें पर्स से लेकर मांदर, नगाड़ा, ढोलक जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्र शामिल हैं। इनके साथ कागज से बनी कुछ अनोखी चीजें जैसे छऊ मुखौटा, मूर्ति जैसी कलात्मक वस्तुओं की कारीगरी को भी यहां प्रोत्साहन मिलता है।
30 हजार हस्तशिल्पी जुड़े हैं झारक्राफ्ट से
सिर्फ हस्तशिल्प की बात करें तो करीब 30 हजार परिवार हैं जो इस पेशे से जुड़े हैं। इन करीगरों को झारक्राफ्ट किसी न किसी माध्यम से मदद कर रहा है। इन कारीगरों को प्रशिक्षण और बाजार से जोड़ने की पहल की गई है। झारक्राफ्ट ने झारखंड के विशिष्ट हस्तशिल्प को संरक्षण और प्रोत्साहन देने का काम किया है।
मिल रहा प्रशिक्षण और स्थानीय हस्तशिल्प को संरक्षण
झारक्राफ्ट ने क्षेत्र विशेष की कला के अनुसार उन्हीं क्षेत्रों में गांवों में जाकर कारीगरों को प्रशिक्षण दिया। इस दौरान उन्हें बाजार की मांग के अनुसार हस्तशिल्प उत्पादों को तैयार करने, बाजार में उत्पादों को उतारने आदि की जानकारी दी गई है। मिसाल के तौर पर रांची में आर्टिस्टिक टेक्सटाइल, जूट और बांस के उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण दिया गया।
हस्तशिल्प की अच्छी है मांग
झारक्राफ्ट से जुड़े कारीगरों के हस्तशिल्प की बिक्री के लिए राज्य के अलावा दूसरे राज्यों में भी इंपोरियम बनाये गये हैं। राज्य में रांची के अलावा धनबाद, हजारीबाग, खरसांवा, बेंगलुरू, कोलकाता, नई दिल्ली और मुंबई में इंपोरियम हैं जहां झारक्राफ्ट के उत्पादों की अच्छी डिमांड है।
“झारक्राफ्ट राज्य की पहचान है। इसके उत्पादों की काफी मांग है, लेकिन बाजार नहीं मिल रहा है। इसे प्रोफेशनल तरीके से चलाने की जरूरत है।“
हेमन्त सोरेन, मुख्यमंत्री, झारखण्ड।