देश में यूपीए-1 का शासन था , यूपी में 20 से अधिक सीटें जीताकर राहुल गांधी युवा हृदय सम्राट बन बैठे थे । नोएडा के फार्मूला वन ट्रैक पर राहुल गांधी ने एक तस्वीर पोस्ट की थी जिसे नाम दिया गया था “राहुल गांधी यूथ ब्रिगेड” । उस तस्वीर में राहुल गांधी के अलावा और चार चेहरे थे- ज्योतिरादित्य सिंधिया, जतिन प्रसाद, सचिन पायलट और उमर अब्दुल्ला।
करीब 15 साल बाद…
ज्योतिरादित्य सिंधिया और जतिन प्रसाद अब भाजपा में हैं, सचिन पायलट कब पलटी मारेंगे किसी को नहीं पता और बच गए उमर अब्दुल्ला , जो फिलहाल जम्मू-कश्मीर की राजनीति में खुद को relevant बनाए रखने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। तो क्या राहुल गांधी का यूथ ब्रिगेड पूरी तरह बिखर गया? अपने 17 साल के (दो बार यूपीए और एक बार मोदी का पूर्ण कार्यकाल) संसदीय जीवन में राहुल गांधी ने क्या खोया- क्या पाया । भारत में कितने ऐसे राजनेता हैं जिनको खुद को साबित करने के लिए 17 साल का वक्त मिला ?
जतिन प्रसाद के भाजपा में शामिल से क्या होगा ?
उत्तर प्रदेश में भाजपा के हिन्दू एकता के विरोध में विपक्षी दलों द्वारा जाति कार्ड खेला जाता रहा है। खासकर विकास दूबे जैसे गैंगस्टर के एनकाउन्टर के बाद ये नरेटिव सेट करने की कोशिश की गई कि “राजपूत योगी” ब्राह्मणों के खिलाफ है । समाजवादी पार्टी द्वारा भगवान् विष्णु की विशालकाय मूर्ति लगाने का एलान और परशुराम जयंती मनाने के पीछे भाजपा और समाज के अंदर विभेद पैदा करने की कोशिश थी । अखिलेश जानते हैं कि अगर उनके माई समीकरण में ब्राह्मण वोटों का छौंक लग जाए तो लखनऊ की कुर्सी का रास्ता थोड़ा आसान हो जाएगा।
जतिन प्रसाद उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों का बड़ा चेहरा हैं। इनके पिता जितेन्द्र प्रसाद इतने शक्तिशाली थे कि उन्होंने सोनिया गांधी को भी चैलेंज कर दिया था । लहर चाहे मायावती की हो, समाजवादी पार्टी की या भाजपा की, जतिन प्रसाद उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के टिकट से जीतते रहे हैं। उत्तर प्रदेश में जतिन के चेहरे के सहारे भाजपा एक बार फिर ब्राह्मण वोटों को अपनी ओर एकजुट करने की कोशिश करेगी। अगर उत्तर प्रदेश में ठाकुर और ब्राह्मण बीजेपी की ओर गोलबंद हो गए तो दूसरी सवर्ण जातियों मसलन भूमिहार, कायस्थ आदि भी उसी ओर वोट देते हैं।
भाजपा का यूपी फतह का फार्मूला
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने नारा दिया था -“दो को छोड़ो, सबको जोड़ो” । भाजपा के रणनीतिकार जानते थे कि चाहे कुछ भी हो जाए, मुसलमान बीजेपी को वोट नहीं करेगा। कुछ ऐसा ही हाल मायावती के जाटव वोटरों का भी है । बीजेपी ने इन दोनों को छोड़कर सभी जातियों को गोलबंद करने के लिए अथक प्रयास किए । जी हां, यादवों को भी । तभी तो यादव वोटों का एक बड़ा तबका समाजवादी पार्टी से टूटकर बीजेपी की ओर शिफ्ट हुआ था ?
क्या मायावती भी बीजेपी के साथ आ रही हैं?
लखनऊ और दिल्ली में इस बात की चर्चा बड़ी तेज है कि मायावती एनडीए में शामिल हो रही हैं। उनको राज्यसभा की सीट, केन्द्रीय मंत्री का पद ऑफर किया गया है। अगर यह हो गया तो उत्तर प्रदेश की राजनीति 180 डिग्री घूम जाएगी ।
कुछ और जातियों को जोड़ने की कोशिश
सवर्ण और दलित वोट के साथ कुर्मी, कोयरी, मल्लाह, नाई, कहार, धोबी, राजभर जैसी पिछड़ी और अति-पिछड़ी जातियों का भाजपा की ओर झुकाव होगा । नीतीश कुमार और अनुप्रिया पटेल इसमें बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। इसपर अगर बीजेपी 5-10% यादव वोटों को अपनी तरफ मोड़ने में कामयाब हो जाती है तो यूपी में “महाराज जी” की वापसी तय है ।