कौशलेन्द्र कौशल की कलम से…

रांची में मानसून की झमाझम का आनंद छोड़ सूबे के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अचानक दिल्ली की तपीश में झुलसने क्या चले गये, सूबे का सियासी तापमान ही उछाल मारने लग गया । जितनी मुंह उतनी बातें । कोई 12 वें मंत्री पद की रेहड़ी लगाये बैठा है तो कोई बोर्ड निगम के बंटवारे का मसाला पीसे जा रहा है ।
इन सबके बीच मुख्यमंत्री के अनुज और दुमका के विधायक बसंत सोरेन के लोकेशन का तड़का भी लगाया जा रहा है । पत्रकार बिरादरी की बात करूँ तो कोई बसंत सोरेन को दिल्ली में बता रहा है तो कोई उन्हें दुमका के रास्ते में ।
सत्ता सहयोगी कांग्रेस 12 वें मंत्रीपद की हुंकार भर रहा है तो झामुमो संगठन के एकमात्र माउथपीस सुप्रियो भट्टाचार्य झामुमो की दावेदारी का दंभ भर रहे हैं । कुल मिलाकर खिचड़ी वैसी ही पक रही है जिसका स्वाद झारखंड की जनता पृथक झारखंड गठनकाल से लगभग डेढ़ दशक तक चखती रही ।

झारखंड की राजनीतिक अस्थिरता को कुछ इस तरह समझिए कि राज्य में 19 साल में 13 सरकारें बदलीं । इस दौरान यहां राज्य में 3 साल राष्ट्रपति शासन भी रहा ।।
अपने कार्य काल के डेढ़ साल में कोरोना की दो-दो लहरों से दो चार होते हेमंत सोरेन ने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद सरकार की गाड़ी बाखूबी हांकी, इसमें कोई संदेह नहीं । किन्तु कोरोना आपदा की सुस्त होती रफ़्तार के बीच सियासी खींचतान की खबरें अच्छे संकेत तो नहीं ही दे रहीं ।
सियासत में संकेतों की बड़ी अहम भूमिका होती है । झारखंड प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और हेमंत सरकार के वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव का सुबह दिल्ली जाना और देर शाम मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का आनन-फानन में दिल्ली कूच कर जाना सियासी खुराफात की खिचड़ी पकाने वालों को खुराक तो दे ही जाता है ।
खैर, समय रहते मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, उनके मीडिया सलाहकार और झामुमो संगठन ने सियासी सगूफेबाजी को विराम नहीं दिया तो घाव झामुमो को ही लगेंगे ।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )