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भारत-पाकिस्तान संघर्ष विराम: श्रीनगर में फिर धमाके, कच्छ में ड्रोन देखे गए; अमेरिका के दबाव में क्यों झुका भारत?

नई दिल्ली: 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच चार दिन तक चली भीषण सैन्य मुठभेड़ के बाद शनिवार को दोनों देशों ने युद्धविराम पर सहमति जताई। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि यह ‘लंबी बातचीत के बाद अमेरिका की मध्यस्थता’ से संभव हुआ, जबकि भारत के विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि यह समझौता दोनों देशों के डायरेक्टर्स जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस (DGMO) के बीच सीधे बातचीत से हुआ।

हालांकि, इस युद्धविराम के कुछ ही घंटों बाद श्रीनगर में फिर से धमाकों की खबरें आईं और गुजरात के कच्छ ज़िले में ड्रोन देखे गए। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सोशल मीडिया पर सवाल उठाया, “सीज़फायर का क्या हुआ? श्रीनगर में फिर धमाके हो रहे हैं!”

क्या पाकिस्तान पर भरोसा किया जा सकता है?

इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान बार-बार शांति की बात कर भारत को धोखा देता रहा है। चाहे 1948 हो, 1965, 1971 या 1999 का कारगिल युद्ध – हर बार पाकिस्तान ने पहले विश्वासघात किया और भारत ने जवाबी कार्रवाई कर अपनी ताकत दिखाई। अब एक बार फिर, जब भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत आतंकवादी ठिकानों पर प्रहार किया और पाकिस्तान की सैन्य क्षमताओं को झटका दिया, तब अमेरिका जैसे देशों ने “शांति” का पाठ पढ़ाना शुरू कर दिया।

भारत को अमेरिका की ‘शांति की शिक्षा’ क्यों स्वीकार करनी चाहिए?

अमेरिका जिसने खुद इराक, सीरिया और अफगानिस्तान जैसे देशों में हमला कर लाखों नागरिकों की जान ली, वही अब भारत को संयम और बातचीत की सलाह दे रहा है। यह वही अमेरिका है जो “फ्रीडम” के नाम पर अरब देशों पर चढ़ दौड़ा था। क्या भारत इतना कमजोर है कि हर बार अपने सैनिकों की शहादत के बाद भी कूटनीति के नाम पर रुक जाए?

भारतीय सेना का प्रहार और पाकिस्तान की हकीकत

भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान के रडार ठिकानों, हथियार डिपो, एयरबेस और नियंत्रण केंद्रों को नष्ट कर दिया। स्कर्दू, सरगोधा, जैकबाबाद, और भोलारी जैसे प्रमुख सैन्य ठिकानों पर हमला कर भारत ने स्पष्ट संदेश दिया है कि आतंकी हमले की कीमत चुकानी होगी। भारत ने हर कार्रवाई में धर्मस्थलों और नागरिक इलाकों को बचाते हुए सिर्फ आतंकियों और सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया।

तो फिर यह संघर्षविराम क्यों?

संघर्षविराम की घोषणा भले ही सैन्य स्तर पर समझदारी लगती हो, लेकिन यह भारत के लिए एक अस्थायी राहत के अलावा कुछ नहीं है। पाकिस्तान जैसे देश, जिसे अमेरिका की कृपा प्राप्त है, फिर किसी नई साजिश के साथ लौटेंगे – जैसे हर बार लौटते हैं। अमेरिका, जो खुद अपने स्वार्थों के लिए दूसरों की संप्रभुता पर हमला करता है, आज भारत को नैतिकता का पाठ पढ़ा रहा है – यह ढोंग नहीं तो और क्या है?

भारत को चाहिए कि वह अपने रुख में सख्ती बनाए रखे और दुनिया को बताए कि भारत अब सिर्फ जवाब नहीं देता, बल्कि दुश्मनों को मिटा देने की ताकत भी रखता है।

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