Friday 22nd of November 2024 01:42:14 AM
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तो असली लड़ाई “नीतीश के बाद कौन” की है ?

जब दो दलों के रणनीतिकारो ने आपस में हाथ मिला लिया?
जब दो दलों के रणनीतिकारो ने आपस में हाथ मिला लिया?

केंद्र में अब आरसीपी सिंह, भूपेन्द्र यादव और नित्यानंद राय की गहरी दोस्ती के चर्चे हैं। इस तिकड़ी से प्रगाढ़ होते रिश्ते से नीतीश बेचैन हैं। उन्होंने उपेन्द्र कुशवाहा को पूरे बिहार का दौरा कर जेडीयू संगठन में आरसीपी के प्रभाव को न्यूट्रलाइज करने को कहा है । दिल्ली में नीतीश कुमार के एक बेहद खास दूत ने कांग्रेस आलाकमान से संपर्क की कोशिश की है। हालांकि इसकी डिटेल्स नहीं मिल सकी ।

कहते हैं नीतीश कुमार को बीजेपी नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह से तो कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव या बिहार बीजेपी अध्यक्ष संजय जायसवाल जैसे नेताओं से डील करना उनको स्तरहीन लग रहा था. वैसे भी जिसकी सुशील मोदी को साल दर साल डिप्टी सीएम बना कर आगे पीछे घुमाते रहने की आदत रही हो, उसके लिए उनसे जूनियर नेताओं से बात करना भी अच्छा तो नहीं ही लगता होगा.

लिहाजा नीतीश कुमार ने मौके की नजाकत को देखते हुए अपने हिसाब से सबसे काबिल और भरोसेमंद आरसीपी सिंह को जेडीयू अध्यक्ष बनाने का फैसला किया – और फिर कमान सौंप दी. बोनस फायदा ये भी रहा कि जो बाद मोदी-शाह के लिए नीतीश कुमार के लिए कहना मुश्किल होता, आरसीपी सिंह एक प्रवक्ता की तरह बोल भी देते और नीतीश कुमार मन ही मन खुशी भी महसूस कर लेते ।

तो क्या आरसीपी ने नीतीश को गच्चा दे दिया?

मोदी कैबिनेट की फेरबदल या विस्तार जो भी कहें, से पहले नीतीश कुमार के पास बीजेपी के एक नेता का फोन आया था । अगर खुद मोदी या शाह ने किया होता तो वो बात भी करते, लेकिन नीतीश कुमार ने फोन पर बोल दिया कि जेडीयू अध्यक्ष आरसीपी सिंह बात कर लेंगे ।

नीतीश कुमार के ब्रीफ करने के बाद जब आरसीपी सिंह ने बीजेपी नेता से संपर्क किया तो अपना प्रस्ताव सामने रख दिया । आरसीपी सिंह ने जेडीयू कोटे के तहत तीन मंत्रियों की तो डिमांड रखी ही, पशुपति कुमार पारस को भी मंत्री बनाने की सलाह दी । समझा जाये तो जेडीयू के कोटे से कैबिनेट और राज्यमंत्री मिलाकर चार चार मंत्री ।

मंत्रीपद को लेकर मोलभाव के साथ ही जेडीयू में तैयारियां भी शुरू हो गयीं. जेडीयू के एक सांसद को फौरन दिल्ली बुला लिया गया – और मंत्री पद के लिए पार्टी की सूची में शामिल दो सांसदों ने जरूरत के हिसाब से आरटीपीसीआर टेस्ट करा कर जल्दी जल्दी रिपोर्ट भी हासिल कर ली – लेकिन इंतजार करते ही रह गये ।

नीतीश कुमार एक अति पिछड़ा वर्ग से और एक कुशवाहा सांसद के साथ साथ अपने करीबी नेता ललन सिंह को कैबिनेट मंत्री बनवाना चाहते थे. 2019 में बीजेपी की सत्ता में वापसी के बाद जब प्रधानमंत्री मोदी मंत्रिमंडल का गठन करने जा रहे थे तब भी नीतीश कुमार करीब करीब ऐसा ही चाहते थे, लेकिन गठबंधन साथियों को एक सीट से ज्यादा न देने के बीजेपी के निश्चय को डिगा नही सके थे ।

भूपेन्द्र यादव ने नीतीश वाला फॉर्मूला, उन्हीं पर अप्लाई कर दिया

नीतीश कुमार ने एक बार चिराग पासवान को समझाया था – ‘कहां दूसरों के चक्कर में पड़े हो, कोई अपना हो तो बोलो मंत्री बना देते हैं’ । ठीक वैसे ही बीजेपी के पास जेडीयू का प्रस्ताव लेकर पहुंचे आरसीपी सिंह से भी कहा गया कि ‘क्यों दूसरों के चक्कर में पड़े हैं?’ – ‘पशुपति कुमार पारस के साथ आप भी बन जाइये, छोड़िये दुनिया भर की चिंता’ ।

ये चाल पटना में मिशन को अंजाम देकर दिल्ली पहुंचे भूपेंद्र यादव की पॉलिटिकल लाइन से मैच भी करती है । भूपेंद्र यादव का ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि कैसे बिहार में काम मिलने के बाद से वो लालू यादव के साथ ही नीतीश कुमार की भी राजनीतिक जमीन के नीचे गड्ढे खोदते आये हैं – और यही वजह है कि अमित शाह भी भूपेंद्र यादव को हद से ज्यादा पसंद करते हैं – और वो प्रधानमंत्री मोदी के भी प्रिय पात्र बन जाते हैं ।

अगर जेडीयू के भीतर उठापटक की जो आहट महसूस की जा रही है, वो तात्कालिक और महज आभासी है तो दलील कमजोर भी नहीं है । निश्चित रूप से केंद्र सरकार में नौकरशाह के रूप में काम कर चुके एक व्यक्ति के लिए मंत्री पद तो सपने के पूरा होने जैसा ही है । लेकिन क्या एक मंत्री पद के लिए वो एक पार्टी से हाथ धो बैठने का फैसला करेगा जिस पर वो खुद राज करता हो – और ये लंबा चलने वाला हो ?

जेडीयू में आरजेडी या एलजेपी की तरह बेटा ही वारिस होगा जैसा कोई पेंच भी तो नहीं है । एक बार नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को उपाध्यक्ष बनाने के बाद जेडीयू का भविष्य जरूर बताया था, लेकिन ये आरसीपी सिंह ही रहे जो ललन सिंह के साथ मिल कर तब तक चैन से नहीं बैठे जब तक कि प्रशांत किशोर बाहर नहीं हो गये ।

प्रशांत किशोर की ही तरफ आरसीपी सिंह के लिए उपेंद्र कुशवाहा लगने लगे थे, लिहाजा ललन सिंह के साथ मिलकर अब उनको ठिकाने लगाने की तैयारी शुरू हो गयी थी । अब बताया जा रहा है कि आरसीपी सिंह के खिलाफ ललन सिंह ने उपेंद्र कुशवाहा से ही हाथ मिला लिया है । हो सकता है ललन सिंह ने ऐसा मौके की नजाकत समझते हुए किया हो । उपेंद्र कुशवाहा कोने कोने में घर को दुरूस्त करने निकले हैं । वो जेडीयू नेताओं से जगह जगह मिल कर संगठन को ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं । उपेंद्र कुशवाहा की कोशिश को आरसीपी सिंह के संभावित प्रभाव को न्यूट्रलाइज करना है, लेकिन नीतीश कुमार कुछ ज्यादा ही चौकन्ने हो गये हैं । उपेंद्र कुशवाहा के हर मूवमेंट की पल पल की रिपोर्ट पेश करने के लिए अपने आदमियों का जगह जगह पहले से ही जाल बिछा रखा है ।

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