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झारखण्ड विधानसभा हाउसकिपिंग के टेंडर में नियमों की अनदेखी

आखिर किसके इशारे पर बीडिंग डेट खत्म बाद भी बार-बार बदलते रहे टेंडर की शर्तें ?
आखिर किसके इशारे पर बीडिंग डेट खत्म बाद भी बार-बार बदलते रहे टेंडर की शर्तें ?
  • मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के स्थानीयता नीति को भी लगाया पलिता

रांची । झारखण्ड विधानसभा ने हाउसकिपिंग एजेंसी की नियुक्ति के लिए दिनांक- 05-07-2021 को टेंडर निकाला। इसके बाद करीब 23 एजेंसियों ने हाउसकिपिंग की सर्विस देने के लिए टेंडर भरा। लेकिन इसके बाद जो खेल शुरू हुआ उसे नियमों का खुला उल्लंघन और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के स्थानीयता को प्राथमिकता देने के दावों की हवा निकल गई।

कब-कब बदले गये नियम ?

  1. विधानसभा ने जो सबसे पहले टेंडर निकाला उसमें ये साफ उल्लेख था कि कंपनी के पास कम से कम 125 लोगों का मैनपावर होना चाहिए। उसके लिए कंपनी के लेटरहेड पर कर्मचारियों के नाम, पिता का नाम, पता, उनके मोबाईल नंबर और आधार नंबर मांगे गये।
  2. प्री-बिड मीटिंग के दौरान कई एजेंसी ने सवाल उठाए कि ऐसे तो कोई भी किसी का नाम अपनी कंपनी के लेटरहेड पर लिखकर दे सकता है। इसलिए कर्मचारियों का ईपीएफ/ ईएसआई का चालान लिया जाय। लेटर हेडर पर केवल सेल्फ सर्टिफिकेशन लिया जाय। इसके बावजूद जिन कंपनियों ने इस फॉर्मेट में नाम दिये, उन्हें यही कारण बताते हुए छांट दिया गया कि आपके फॉर्मेट में गड़बड़ी है।
  3. फिर बीडिंग डेट खत्म होने के बाद विधानसभा सचिवालय की ओर से एक शुद्धि पत्र के माध्यम से सभी बिडर्स को मेल भेजा गया कि क्वालिफाई करने के लिए आपको 100 में 80 नंबर लाने जरुरी हैं, जबकि पहले की शर्तों के मुताबिक 100 में 70 मार्क्स ही लाने थे. यहीं पर असली खेल हुआ
  4. दरअसल, बीडिंग डेट खत्म होने के बाद शुद्धि पत्र निकालना नियमों के विरुद्ध है। अब आप हैरान होंगे की आखिर विधानसभा सचिवालय ने ऐसा क्यों किया ?
  5. दरअसल पहले 80 नंबर डॉक्यूमेंट्स के लिए थे और 20 मार्क्स प्रेजेंटेशन के लिए था, लेकिन नये शुद्धि पत्र में डॉक्यूमेंट्स के मार्क्स घटाकर 70 नंबर कर दिए गये। वजह, आप बिडर्स द्वारा जमा किए गये कागजों में हेर-फेर नहीं कर सकते, लेकिन प्रेजेंटेशन के नंबर देना पूरी तरह विधानसभा सचिवालय के हाथों में था।
  6. इतना ही नहीं, उन्होने गड़बड़ी करने के लिए ये शर्त भी लगा दी कि आपको प्रेजेंटेशन में 30 में से 15 नंबर लाना जरूरी है। अब ये पूरी तरह विधानसभा सचिवालय की मर्जी पर हो गया कि वो किसे चुनते हैं और किसे रिजेक्ट कर देते हैं।

फिनांशियल बिड के लिए गई कंपनियों के कागजात पब्लिश नहीं किए गये

विधानसभा सचिवालय ने एक गड़बड़ी और की। नियम कहता है कि किस कंपनी ने टेक्निकल बिड में कितना मार्क्स लाया है, इसकी जानकारी सार्वजनिक करनी होती है। लेकिन यहां सभी एजेंसियों के नंबर अज्ञात कारणों से गुप्त रखे गये। इतना ही नहीं, फिनांशियल बिड के लिए गई कंपनियों के डॉक्यूमेंट्स भी पब्लिश नहीं किये गये जो कि नियमों के विरुद्ध है।

स्थानीयता को भी किया दरकिनार

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बार-बार कहा है कि झारखण्ड प्रोक्यूरमेंट पॉलिसी में स्थानीय कंपनी को 20 प्रतिशत अतिरिक्त मार्क्स मिलेंगे, लेकिन शायद विधानसभा सचिवालय को मुख्यमंत्री के आदेशों की परवाह नहीं ।

विधानसभा सचिव के पीए कर रहे हैं मोलभाव- आरोप

आरोप तो यह भी लग रहे हैं कि विधानसभा सचिव के पीए लक्ष्मी ने कंपनियों/एजेंसियों से रिश्वत की मांग को लेकर मोलभाव किया है। ऐसे कई ऑडियो वायरल हो रहे हैं। हालांकि उज्ज्वल दुनिया इन वायरल ऑडियो की पुष्टि नहीं करता।

सवालः आखिर ऐसा कौन सा कारण था कि 23 कंपनियों में से सिर्फ तीन कंपनियां ही फिनांशियल बिड के लिए क्वालिफाई की । जबकि जिन 20 कंपनियों को छांटा गया उनमें से कुच को संसद भवन और देश की कई विधानसभाओं में काम करने का अनुभव है।

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