नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि बेटी को अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए माता-पिता से खर्च प्राप्त करने का मौलिक और कानूनी अधिकार है। यह फैसला 26 साल से अलग रह रहे दंपती के मामले में सुनाया गया, जिसमें बेटी की शिक्षा का मुद्दा मुख्य विषय था।
फैसले के मुख्य बिंदु:
- माता-पिता की जिम्मेदारी: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि माता-पिता अपनी वित्तीय क्षमता के अनुसार बेटी की शिक्षा के लिए आवश्यक धनराशि उपलब्ध कराने के लिए बाध्य हैं।
- 43 लाख रुपये का मुद्दा: कोर्ट ने बताया कि आयरलैंड में पढ़ रही बेटी को उसके पिता द्वारा 43 लाख रुपये दिए गए थे, जो उसकी शिक्षा के लिए थे। पिता ने यह राशि स्वेच्छा से दी थी।
- बेटी का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह राशि बेटी को रखने का पूरा अधिकार है और उसे यह पैसे मां या पिता को लौटाने की आवश्यकता नहीं है। वह इसे अपनी इच्छानुसार खर्च कर सकती है।
मामले का विवरण:
26 साल से अलग रह रहे दंपती के बीच तलाक और बेटी की शिक्षा के खर्च को लेकर विवाद था। कोर्ट ने पिछले साल एक समझौते का हवाला दिया, जिसके तहत पिता ने 73 लाख रुपये देने पर सहमति जताई थी। इसमें से 43 लाख रुपये बेटी की शिक्षा के लिए और 30 लाख रुपये पत्नी के लिए थे। पत्नी को उसका हिस्सा मिल चुका है।
समझौता और तलाक का आदेश:
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत आपसी सहमति से तलाक का आदेश दिया और कहा कि अब दोनों के बीच कोई अदालती विवाद नहीं होना चाहिए। यदि कोई मामला लंबित है, तो उसे समझौते के अनुसार निपटाया जाना चाहिए।
न्याय का संदेश:
इस फैसले से सुप्रीम कोर्ट ने न केवल बेटी के शिक्षा के अधिकार को मजबूत किया, बल्कि यह भी संदेश दिया कि माता-पिता की जिम्मेदारी शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्राथमिकता होनी चाहिए।