Thursday, March 28, 2024
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क्या ममता बनर्जी ने “पैनिक बटन” दबा दिया है?

अंतिम चरण की किसी सीट से नामांकन करेंगी ममता दीदी- मोदी
अंतिम चरण की किसी सीट से नामांकन करेंगी ममता दीदी- मोदी

चुनाव perception पर जीते जाते हैं। लोग नेताओं के हाव-भाव से अंदाजा लगाते हैं कि फलां पार्टी जीत रही है या हार रही है। अब बंगाल को ही ले लिजिए। बिना एक भी वोट पड़े पश्चिम बंगाल और देश के लोगों ने मान लिया है कि CPM-Congress और पीरजादा अब्बास का गठबंधन मुकाबले में नहीं है । सब जानते हैं कि बंगाल में कांग्रेस-वामपंथी गठबंधन तीसरे नंबर पर है। बिना एक भी वोट पड़े आखिर लोगों ने ऐसा क्यों मान लिया? क्योंकि कांग्रेस-वामपंथी और पीरजादा अब्बास परशेप्सन की लड़ाई पहले ही हार चुके हैं।

अब आते हैं तृणमूल बनाम BJP के बीच मुकाबले पर । परशेप्सन क्या कहता है।

पिछले तीन दिन की घटनाओं पर गौर करें।

1. ममता बनर्जी का सभी विपक्षी दलों के नेताओं को चिट्ठी लिखी ।

2. TMC का एकमात्र प्रचारक होने के बावजूद सिर्फ नंदीग्राम में डेरा डाल कर बैठना

3. ममता बनर्जी का BJP नेताओं के प्रति अपशब्द, उन्हें “गुंडा” कहना, सीधे प्रधानमंत्री को “साला” कहना, ये कहना कि मैं सबको चेहरे से पहचानती हूँ, चुनाव बाद Central forces बचाने नहीं आएंगे आदि क्या इशारे कर रहे हैं ?

4. प्रशांत किशोर का पहले चरण के चुनाव के बाद ही पंजाब शिफ्ट कर जाना, फिर चंडीगढ़ से ये बयान देना कि “Even if we loose, game is on” ये सब जनता के बीच क्या परशेप्सन दे रहे हैं? Even if we loose का क्या मतलब है ? क्या प्रशांत किशोर ने इशारा दे दिया है ?

5. तृणमूल कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेता सौगत राय चुनाव के बीच में क्यों कह रहे हैं कि अब मैं राजनीति छोड़ दूँगा ?

क्या ये सब TMC कार्यकर्ताओं के उत्साह को बढ़ाने वाला कदम है ? क्या तृणमूल कांग्रेस पहले चरण के चुनाव के बाद ही perception की लड़ाई हारती हुई नहीं दिख रही ?

क्या कहता है तृणमूल का हाव-भाव ?

 

पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और BJP के नेताओं और कार्यकर्ताओं के हाव-भाव पकड़ने की कोशिश करें। ममता बनर्जी के चेहरे और कैंपेन का स्टाइल और नारे के बीच का मर्म समझने की कोशिश करें।

ममता बनर्जी धिक्कार रही हैं, गाली दे रही हैं, खुद की जाति बता रही हैं कि वो ब्राह्मण हैं, शांडिल्य गोत्र की हैं । ममता बनर्जी दुर्गा शप्तशति का पाठ कर रही हैं।

ऐसा लगता है कि ममता बनर्जी का पूरा कैंपेन ही जनता को सफाई देने और बीजेपी को जवाब देने पर चल रहा है। वे खुद एजेंडा सेट नहीं कर पा रहीं, बल्कि BJP के धार्मिक एजेंडे का मकडजाल में उलझ कर रह गई हैं।

ममता के चेहरे का उत्साह कहीं खो सा गया है। वो धमकी देती हैं, लोगों को डराने की कोशिश करती हैं। वो कहती हैं कि केन्द्रीय सुरक्षाबलों के जाने के बाद एक-एक को देख लूंगी ।

Perception ये है कि ममता अकेली पड़ गई हैं। संदेश ये है कि वो देश भर के विपक्षी नेताओं को मदद की गुहार लगा रही हैं। अभी तो सिर्फ दो चरण के चुनाव हुए हैं, अभी से थकी-थकी, बुझी-बुझी सी दिख रही है पार्टी। चेहरे पर मुस्कान गायब है । अभी तो छः चरणों का चुनाव बाकी है।

BJP नेताओं और कार्यकर्ताओं का हाव-भाव क्या कहता है?

 

BJP के पास न पैसे की कमी है, न कार्यकर्ताओं की । बंगाल के अलावा पड़ोसी राज्यों के भाजपा नेता और कार्यकर्ता बंगाल में डेरा डाले हुए हैं। बंगाल के जंगलमहल इलाके में 37 हजार आदिवासी कार्यकर्ता तो सिर्फ झारखंड से गये थे । इसी तरह यूपी-बिहार से भी लगभग हर BJP नेता-कार्यकर्ता की बंगाल में ड्यूटी लगी ही है । 8 चरण के लंबे चुनाव में इस बात का बहुत असर पड़ता है कि आपके पास स्टार प्रचारक कितने हैं, पार्टी के फंड में कितने पैसे हैं और कार्यकर्ताओं में कितना जोश है । इन सब मामलों में BJP तृमूल पर बीस साबित हो रही है ।
सभार- Pankaj Prasoon

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