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हाई कोर्ट जजों के समय पर न बैठने के हैरतंगेज रवैये पर भड़के भावी CJI जस्टिस बी.आर. गवई

समय पर न बैठने की समस्या

हाई कोर्ट जजों के समय पर अदालत में न बैठने की समस्या एक गंभीर मुद्दा बनता जा रहा है। यह देखा गया है कि कुछ जज न्यायालय के निर्धारित समय, जो सुबह 10:30 बजे है, से देर से आते हैं। ऐसे जजों का अदालत में 11:30 बजे या उसके बाद आना, न केवल न्याय प्रक्रिया में देरी का कारण बनता है, बल्कि न्याय के प्रति जनता के विश्वास को भी कमजोर करता है।

समय पर अदालत में न बैठने की यह प्रवृत्ति न्यायिक प्रणाली के लिए हानिकारक है। यह न केवल मामलों के निपटारे में अनावश्यक विलंब का कारण बनती है, बल्कि वादियों और अधिवक्ताओं के समय की भी बर्बादी होती है। इसके परिणामस्वरूप, मामलों का निपटारा लंबित रह जाता है, जिससे न्याय पाने की प्रक्रिया में देरी होती है।

इसके अतिरिक्त, जजों का निर्धारित समय पर अदालत में न बैठना, न्यायालय के प्रशासनिक कार्यों में भी अवरोध उत्पन्न करता है। अधिकांश मामलों में, अदालत के अन्य कर्मचारी समय पर अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, लेकिन जजों के देर से आने के कारण उनकी मेहनत व्यर्थ जाती है। यह स्थिति न केवल वादियों के लिए बल्कि पूरे न्यायिक तंत्र के लिए असंतोषजनक है।

हाई कोर्ट में समय पर न बैठने की समस्या को सुलझाने के लिए आवश्यक है कि न्यायाधीश अपने निर्धारित समय का पालन करें। यह न केवल न्यायिक प्रक्रिया को सुचारू बनाएगा, बल्कि न्याय के प्रति जनता के विश्वास को भी मजबूत करेगा। न्यायाधीशों को यह समझना चाहिए कि उनके समय पर बैठने से न केवल न्यायपालिका की कार्यक्षमता में वृद्धि होगी, बल्कि न्याय की अवधारणा को भी बल मिलेगा।

भावी CJI जस्टिस बी.आर. गवई की प्रतिक्रिया

भावी मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी.आर. गवई ने हाल ही में हाई कोर्ट जजों द्वारा समय पर न बैठने के मामले में अपनी नाराजगी को स्पष्ट रूप से जाहिर किया है। उन्होंने इस रवैये को न्यायपालिका के कार्य और उसके प्रति जनता के विश्वास के लिए हानिकारक बताया। जस्टिस गवई ने कहा कि समय की पाबंदी न्यायालय की गरिमा को बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है और इसका पालन न करना अस्वीकार्य है।

जस्टिस गवई ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए कहा कि न्यायालय एक महत्वपूर्ण संस्था है और इसके संचालन में किसी भी प्रकार की ढील बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि उच्च न्यायालय के जजों का समय पर न बैठना न केवल न्याय प्रक्रिया में देरी का कारण बनता है, बल्कि इससे आम जनता का न्यायपालिका पर से विश्वास भी उठ सकता है। उन्होंने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जजों को इस बात का एहसास होना चाहिए कि उनकी जिम्मेदारी केवल न्याय देने तक सीमित नहीं है, बल्कि न्यायालय की प्रतिष्ठा को बनाए रखना भी उनका कर्तव्य है।

जस्टिस गवई ने इस मामले में कड़ा रूख अपनाते हुए संकेत दिए कि यदि जज समय पर नहीं बैठते हैं, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि इस समस्या के समाधान के लिए एक सख्त नीति बनाई जानी चाहिए, ताकि जजों को समय की पाबंदी का महत्व समझ में आए। भविष्य के मुख्य न्यायाधीश के इस कड़े बयान से यह स्पष्ट होता है कि वे न्यायपालिका के कार्यप्रणाली में अनुशासन और समयबद्धता को प्राथमिकता देंगे।

जजों के देर से आने के प्रभाव

जजों का समय पर अदालत में उपस्थित न होना न्याय प्रक्रिया में अनेक प्रकार की रुकावटें उत्पन्न करता है। सबसे पहले, अदालत की कार्यवाही में देरी होती है, जो न केवल कानूनी प्रक्रियाओं को धीमा करती है, बल्कि वकीलों और पक्षों के समय का भी अपव्यय करती है। जब न्यायाधीश समय पर नहीं आते, तो अदालत की सुनवाई देर से शुरू होती है, जिससे मामलों की गति प्रभावित होती है और उनके निपटारे में अनावश्यक विलंब होता है।

इसके अतिरिक्त, न्यायिक प्रक्रिया में देरी से न्याय प्राप्त करने में देरी होती है, जिससे पीड़ित पक्षों के धैर्य की परीक्षा ली जाती है। न्याय में देरी न्याय के इनकार के समान मानी जाती है, और यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। कई बार, न्यायाधीशों के समय पर न आने के कारण अदालत की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ती है, जिससे मामलों की लंबित संख्या बढ़ जाती है और न्यायिक व्यवस्था पर अनावश्यक दबाव पड़ता है।

समय पर न बैठने का एक और गंभीर प्रभाव जनता के विश्वास पर पड़ता है। न्यायपालिका की विश्वसनीयता और निष्पक्षता पर सवाल उठने लगते हैं, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए हानिकारक है। जनता का विश्वास न्यायपालिका पर बना रहे, इसके लिए न्यायाधीशों का समय पर अदालत में उपस्थित होना अत्यंत आवश्यक है। यदि न्यायपालिका की प्रक्रिया में पारदर्शिता और समयबद्धता नहीं होती, तो लोगों का विश्वास धीरे-धीरे कम होने लगता है, जो न्यायिक प्रणाली के लिए गंभीर चुनौती है।

समाज में न्यायपालिका का एक महत्वपूर्ण स्थान है, और इस संस्था की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए न्यायाधीशों का समय पर अदालत में उपस्थित होना अनिवार्य है। न्याय की प्रक्रिया को समयबद्ध और प्रभावी बनाने के लिए यह आवश्यक है कि सभी न्यायाधीश अपने कर्तव्यों का निर्वहन समय पर और पूर्णतः करें।

समस्या के समाधान के उपाय

उच्च न्यायालयों में जजों के समय पर न बैठने की समस्या एक गम्भीर मुद्दा है, जिसे सुलझाने के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं। सबसे पहले, अनुशासनात्मक कार्रवाई पर जोर दिया जाना चाहिए। जब जज समय पर अदालत में नहीं बैठते, तो उनके खिलाफ आवश्यक अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए। इससे यह स्पष्ट संदेश जाएगा कि समय की पाबंदी एक अपरिहार्य आवश्यकता है।

दूसरे, अदालत की कार्यवाही समय पर शुरू करने के लिए सख्त नियम लागू किए जाने चाहिए। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि दंडात्मक प्रावधान लागू किए जाएं ताकि जजों का समय पर उपस्थित होना अनिवार्य हो। इसके लिए एक मॉनिटरिंग सिस्टम विकसित किया जा सकता है जो हर जज की उपस्थिति को ट्रैक करे और किसी भी प्रकार की देरी को रिकॉर्ड करे।

तीसरे, जजों की जवाबदेही तय करने के लिए ठोस उपायों की आवश्यकता है। इसे सुनिश्चित करने के लिए एक जवाबदेही आयोग की स्थापना की जा सकती है जो समय पर अदालत की कार्यवाही न करने वाले जजों की जांच करे। इस आयोग को स्वतन्त्र और निष्पक्ष होना चाहिए ताकि यह जजों के कार्य, समय प्रबंधन और कार्यशैली की निष्पक्षता से समीक्षा कर सके।

अंत में, इस समस्या के समाधान के लिए एक सांस्थानिक परिवर्तन की आवश्यकता है। न्यायपालिका को एक अधिक पारदर्शी और जवाबदेह प्रणाली अपनानी चाहिए जिसमें जजों के कार्य प्रदर्शन का नियमित मूल्यांकन हो। इससे न्यायालय की प्रक्रिया को अधिक प्रभावी और समयबद्ध बनाया जा सकेगा। इन उपायों के कार्यान्वयन से न केवल अदालत की कार्यवाही समय पर शुरू होगी, बल्कि न्यायिक प्रणाली में जनता का विश्वास भी बढ़ेगा।

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