आईएएस अधिकारी और बिहार कर्मचारी चयन आयोग के पूर्व चेयरमैन सुधीर कुमार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व अन्य लोगों के खिलाफ एफआईआर कराने के लिए घंटों थाने में बैठे रहे, लेकिन पुलिस ने इसे दर्ज करने से इनकार कर दिया। सुधीर कुमार ने मीडिया से कहा कि मैं दोपहर 12 बजे से इंतजार कर रहा हूं, लेकिन अभी तक प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है। उन्होंने कहा, ” मुझे केवल थाने से एक रसीद मिली है।
क्या है पूरा मामला ?
यह मामला धोखाधड़ी और फर्जी कागजात बनाने और सीएम नीतीश कुमार और अन्य के खिलाफ सबूतों से संबंधित है।” गौरतलब है कि 2014 में सुधीर कुमार बीएससीसी के चेयरमैन रहे थे। उस दौरान इंटरस्तरीय संयुक्त परीक्षा प्रश्नपत्र लीक मामले में उनकी गिरफ्तारी भी हुई थी और जेल भी गए थे। हालांकि बाद में सुधीर कुमार सुप्रीम कोर्ट तक गये और वहां से उन्हें राहत मिली । अब सुधीर कुमार का कहना है कि सारा फर्जीवाड़ा किया नीतीश ने और उन्हें फंसा दिया । आइएएस सुधीर कुमार का कहना है कि नीतीश कुमार की वजह से उन्हें सामाजिक अपमान जेलना पड़ा, लोग मुझे भ्रष्टाचारी समझने लगे, मेरे परिवार को प्रताड़ना झैलनी पड़ी।
यहां नीतीश के खिलाफ IAS की फरियाद नहीं सुनी जाती, आम आदमी का क्या हाल होगा ?
इस मामले ने अब राजनीतिक रंग ले लिया है। विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि बिहार में सचिव स्तर के अधिकारी की नहीं सुनी जाती, जब उनकी एफआईआर नहीं दर्ज हुई तो आम आदमी की कौन सुनेगा। तेजस्वी ने कहा है कि आज एक आईएएस अधिकारी 5 घंटे से अधिक समय तक थाने में बैठा रहा, लेकिन पुलिस ने उसकी प्राथमिकी दर्ज नहीं की।
उन्होंने कहा,
बिहार के सीएम को आगे आकर सफाई देनी चाहिए। मुख्यमंत्री के खिलाफ एफआईआर क्यों नहीं हो सकती? सीएम नीतीश कुमार अपने पद का दुरुपयोग कर रहे हैं।
लालू ने बिहार सरकार पर निशाना साधा
राजद अध्यक्ष लालू यादव ने राज्य सरकार पर निशाना साधा है। शनिवार को ट्वीट कर आईएएस अधिकारी को एफआईआर करने में हुई परेशानी का हवाला देते हुए कहा है कि सरकार ने बिहार को सर्कस बना दिया है। खबर पढ़कर माथा पकड़िए। सरकार द्वारा अनुसूचित जाति वर्ग के एक अपर मुख्य सचिव के साथ ऐसा सलूक किया जा रहा है। उसका यह आचरण भ्रष्ट अधिकारियों को बचाने के चाल, चरित्र और चेहरे को उजागर करता है।
लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं : चिराग पासवान
लोजपा सांसद चिराग पासवान ने ट्विट कर कहा है कि अपर मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी को अनुसूचित जाति-जानजाति थाने में साक्ष्य प्रस्तुत करने के बाद भी प्राथमिकी दर्ज करने में परेशानी हो रही है। यह लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है।