भाजपा
अगर 02 सीट से 80 तक पहुंचना हार है तो भाजपा को ऐसी हार पसंद आनी चाहिए । कर्नाटक के बाद पुडुचेरी दक्षिण भारत का ऐसा दूसरा राज्य बना, जहां बीजेपी की सरकार बनेगी। असम की जीत आसान नहीं थी, खासकर बदरुद्दीन अजमल और बोडो नेशनल फ्रंट के साथ कांग्रेस के महागठबंधन के बाद…केरल और तमिलनाडु में बीजेपी का वैसे भी कुछ दांव पर नहीं लगा था…कुल मिलाकर बीजेपी ने कुछ पाया ही है, गंवाया कुछ नहीं।
कांग्रेस
केरल में हर बार सत्ता बदलती है । उस लिहाज से इस बार कांग्रेस को वहां सरकार बनानी चाहिए थी । लेकिन लेफ्ट ने केरल में लगभग एकतरफा जीत हासिल की। असम कांग्रेस का गढ़ रहा है। एक-दो मौकों को छोड़ दें तो असम में कांग्रेस की ही सरकार रही है। पिछली बार कांग्रेस की हार के बाद कहा गया था कि मुस्लिम वोटों के बंटवारे के कारण कांग्रेस हारी । इस बार बदरुद्दीन अजमल, स्थानीय पार्टियों, लेफ्ट के साथ कांग्रेस ने “महाजोत” बनाया था । भाजपा विरोधी वोटों का बंटवारा नहीं हुआ, इसके बावजूद कांग्रेस नेतृत्व वाला गठबंधन हार गई। कांग्रेस के लिए ये बड़ा झटका है । पुडुचेरी में नारायणसामी लगातार कांग्रेस को जीत दिलाते रहे । लेकिन कांग्रेस ने गोवा के बाद ईसाई बहुल दूसरा राज्य गंवाया है । तमिलनाडु में स्टालिन ने कांग्रेस को खुश होने का मौका दिया है।
तीसरा मोर्चा
आज सबसे ज्यादा खुश अगर किसी को होना चाहिए तो इस देश की क्षेत्रीय पार्टियों को। बंगाल में ममता की जीत उस ट्रेंड को पुख्ता करती है कि जहां बीजेपी के सामने कांग्रेस है, वहां तो भाजपा आसानी से जीत जाती है, लेकिन जैसे ही बीजेपी का मुकाबला क्षेत्रीय दलों से होता है, मोदी-अमित शाह हांफने लगते हैं। केजरीवाल, तेजस्वी यादव, ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, शरद पवार, केसीआर (तेलंगाना), वाई. एस. आर. कांग्रेस, केरल में लेफ्ट आदि ने यही साबित किया है ।
सारांश
अब कांग्रेस को छोड़कर क्षेत्रीय दलों का महागठबंधन बनाने का वक्त आ गया है। कांग्रेस चाहे तो बाद में इस महागठबंधन को बाहर से समर्थन दे सकती है । शरद पवार और लालू प्रसाद यादव जैसे नेता इस भावी महागठबंधन के शिल्पकार हो सकते हैं।