झामुमो ने केंद्र से राज्य में जातीय और धार्मिक जनगणना कराये जाने की मांग की है. बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में केंद्रीय प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि केंद्र सरकार ने ओबीसी के निर्धारण की प्रक्रिया का दायित्व वापस राज्य सरकारों को सौंपा है. उनकी पार्टी ने मंगलवार को सदन में इस संविधान संशोधन का स्वागत भी किया. वर्तमान समय में केंद्रीय व्यवस्था पर जो चोट लगातार की जा रही थी, उस पर अल्प विराम लगा है.
केंद्र को चाहिए कि वह राज्य में जातीय जनगणना के साथ-साथ धार्मिक जनगणना भी कराये. दोनों के लिए स्पष्ट तौर पर प्रावधान करे. राज्य में बड़ी संख्या में जनजातीय समाज के लोग रहते हैं.
उनके धार्मिक अनुष्ठान, आस्थाएं दूसरे धर्मों से अलग हैं. उनके लिए सरना धर्म कोड का प्रावधान 2021 की जनगणना में तय हो.
आरक्षण समाप्त करने में लगी केंद्र सरकार
सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि 2011 में जनगणना हुई थी. 2014 में संपूर्ण सूची बन कर तैयार हुई. 2015 में तत्कालीन मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि इसका प्रकाशन शीघ्र करेंगे. 2018 में तत्कालीन सरकार के मंत्री राजनाथ सिंह ने भी इसे दोहराया. लेकिन मामला दब कर रह गया. 2021 की जनगणना प्रारंभ होने जा रही है.
अबकी कॉलम में जाति जनगणना का कोई स्थान ही नहीं दिया गया. धर्म को आधार बनाया गया है. इससे केंद्र की मनुवादी सोच झलकती है. जब जातियों की जनगणना ही नहीं होगी तो यह बेईमानी साबित होगा.
जब पता ही नहीं चलेगा कि किस जाति की संख्या कितनी है तो नौकरी, शिक्षा में उन्हें लाभ कैसे दिया जा सकेगा. केंद्र की मंशा साफ है कि आरक्षण ही समाप्त हो जाये ताकि पिछड़े लोग मुख्य धारा से अलग हो जायें.
खत्म हो 50 फीसदी की सीमा
केंद्र सरकार को 50 प्रतिशत की आरक्षण सीमा को समाप्त करना चाहिए. स्पष्ट तौर पर कहना चाहिए कि राज्य अपने सामाजिक, भौगोलिक बनावट के आधार पर आरक्षण दे. पर केंद्र इसमें घालमेल करने जा रही है.
जातीय जनगणना से केंद्र ने खुद को अलग रखने का फैसला लिया है. लोगों के मन में जिज्ञासा हो रही कि जिस तेजी से सरकारी उपक्रमों का निजीकरण हो रहा, उससे उनके लिये आरक्षण प्रावधानों की उपयोगिता ही संकट में आ जायेगी.
किसानों के लिए 3 काले कानूनों को अध्यादेश के जरिये पास कराया गया. किसानों की हजारों एकड़ जमीन पर गोदाम बन कर तैयार हो गये. इसी तरह अब आरक्षण के मसले पर संकट आ सकता है.