स्वामी सहजानंद सरस्वती को बार-बार याद करना, राष्ट्रीय यादव सेना की सक्रिय भागीदारी, चंद्रवंशी समाज द्वारा अन्नपूर्णा देवी का अभिषेक, जैन-बौद्ध-मारवाड़ी समाज द्वारा जगह-जगह जन आशीर्वाद यात्रा का रथ रोक कर स्वागत करना…ये सब कुछ ऐसी झलकियां हैं, जिनसे अन्नपूर्णा देवी की जन आशीर्वाद यात्रा के माहौल का अंदाजा लगाया जा सकता है।
ओबीसी वोट पर नजर
सतही तौर पर ये कहा जा सकता है कि अन्नपूर्णा देवी की जन आशीर्वाद यात्रा का मकसद ओबीसी वोटर्स को भाजपा की ओर गोलबंद करना है। क्या इस मायने में जन आशीर्वाद यात्रा सफल रहा ? झारखण्ड की आबादी मूलतः तीन तरह की है। आदिवासी-मूलवासी और प्रवासी । झामुमो-कांग्रेस जिस तरह की राजनीति कर रहे हैं, उससे प्रवासी वोटरों के पास ज्यादा विकल्प नहीं हैं। आदिवासी वोटर्स बहुत ज्यादा इधर से उधर शिफ्ट नहीं होने वाले…. जन आशीर्वाद यात्रा का लक्ष्य मूलवासी को साधना था जिनकी आबादी लगभग 60 % है। रघुवर दास के कार्यकाल के दौरान और उसके बाद भी भाजपा मूलवासी ( या सदान) वोटरों को केन्द्र में रखकर ही राजनीति करती रही है। जिस तरह की भीड़ जन आशीर्वाद यात्रा के पहले दो दिनों में उमड़ी, उससे तो यही लगता है कि भाजपा बहुत हद तक अपने मकसद में कामयाब रही ।
महिला वोटरों पर कितना असर
प्रधानमंत्री मोदी ने जब अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों को जन आशीर्वाद यात्रा निकालने को कहा तो उनके जेहन में ओबीसी और महिला वोटर सबसे ऊपर थे। इसी के इर्द-गिर्द जन आशीर्वाद यात्रा का पूरा खाका खींचा गया . देश भर में कुल 19 हजार 848 किलोमीटर की इस यात्रा में इन्ही दो वर्गों पर सबसे ज्यादा फोकस है। झारखण्ड में एक ओबीसी महिला को मंत्रिमंडल में जगह देने के पीछे भी यही सोंच रही। अन्नपूर्णा की जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान महिलाओं की अच्छी खासी भागीदारी रही . खासकर हजारीबाग, रामगढ़ और रांची में महिला कार्यकर्ताओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया ।
कुर्मी-महतो साथ, पर आदिवासी दूर क्यों ?
आमतौर पर जो मोटा-मोटी आभास मिलता है, उससे तो यही लगता है कि साव, महतो, कुर्मी, कुड़मी, बनिया, चंद्रवंशी आदि पिछड़ी और अतिपिछड़ी जातियों में भाजपा ने बहुत मेहनत की है और इसका नतीजा भी देखता है । लेकिन ये भी सच है कि सात साल पहले के मुकाबले भाजपा का आदिवासी वोट कम हुआ है। इसका कारण 5 साल का रघुवर राज, जिसमें सीएनटी-एसपीटी विवाद, डोमिसाइल आंदोलन, पत्थलगड़ी, लैंड बैंक और गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री आदि कई कारण हैं। ये भी एक सच्चाई है कि भाजपा को जो आदिवासी वोट मिलते हैं वो संघ और अनुषांगिक ईकाइयों द्वारा किए गये काम की वजह से हैं ।
प्रवासी वोटरों में भाजपा की कैसी हवा है ?
झारखण्ड के मूलवासी (सदान) और प्रवासी को मिलाकर कुल आबादी का लगभग 70 प्रतिशत हो जाता है। भाजपा अगर इनके कुल वोट का 60 % के आसपास भी ले आए तो सीटों की संख्या 35-40 के बीच पहुंच सकती है। लेकिन क्या ऐसा होगा ? झारखण्ड के यादव मतदाता आज भी बिहार की राजनीति से प्रभावित होते हैं। प्रवासियों में अच्छी-खासी जनसंख्या बंगाली समुदाय की भी है, लेकिन क्या भाजपा ने इस समुदाय से किसी नेतृत्व को मौका दिया ? इसके अलावा ज्यादा ओबीसी फोकस की वजह से कहीं सवर्ण मतदाता खुद को उपेक्षित महसूस तो नहीं कर रहे। ब्राह्मण, राजपूत, कायस्त, भूमिहार 12 से 15 विधानसभाओं में परिणाम उलट-पुलट की क्षमता रखते हैं। भारतीय जनता पार्टी को इस पहलू का भी ख्याल करना होगा ।