Thursday 21st of November 2024 11:09:03 PM
HomeLatest Newsले लोटा…..आप तो कमाल हैं दास जी!

ले लोटा…..आप तो कमाल हैं दास जी!

मेरे एक पुराने मित्र हैं. खांटी संघी. देश के विभिन्न प्रांतों में वर्षों संघ प्रचारक रहे.छात्र जीवन से अव्वल श्रेणी के संगठनकर्ता.
फिलहाल बतौर स्वतंत्र पत्रकार देश विदेश के विभिन्न मीडिया संस्थानों में लिख रहे हैं और झारखंड-बिहार में राष्ट्रवादी संगठनों के सृजन और सृजित संगठनों के दिशा निर्देशन में लगे हैं.

खांटी संघी होने के बावजूद सभी विचारधारा के दलों व जमातों के बीच उनकी स्वीकार्यता के मद्देनजर मैं उन्हें ‘छद्म कामरेड’ संबोधित करता हूँ. मेरे प्रति असीम अनुराग के कारण मेरे व्यंग्यात्मक संबोधन पर वो कभी प्रतिकार नही करते .

किसी भी मुद्दे पर साहित्यिक व वैदिक उद्धरणों में माहिर मेरे उपरोक्त विलक्षण मित्र के साथ पिछले दिनों रांची शहर से बाहर जा रहा था. मोरहाबादी मैदान के पास आंदोलनरत सहायक पुलिसकर्मियों के बीच सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास पहुंचे हुये थे.

गहमागहमी देख मैंने अपनी गाड़ी रोक दी और दास जी का आंदोलनकारी सहायक पुलिसकर्मियों से संवाद देखने- सुनने लगा. रघुबर दास को संवेदना के साथ सहायक पुलिसकर्मियों से संवाद करता देख मुझे आश्चर्य हुआ!

सत्ता में रहने के दौरान रघुबर दास को बतौर मुख्यमंत्री रांची, गढ़वा, हजारीबाग, मुंबई और दिल्ली समेत कई शहरों में नजदीक से देख रखा था. अधिकारियों, उधोगपतियों, स्थानीय निकाय के प्रतिनिधियों व आम लोगों से बातचीत के दौरान दास जी भाषायी मर्यादा तो छोड़िये, मानवीय सहज संवेदनशीलता को भी तार- तार कर दिया करते थे.

मैंने अपने मित्र को संबोधित करते हुये कहा – ले लोटा, रघुबर दास में तो कमाल का बदलाव आ गया भाई जी.कुर्सी से उतरते ही मिज़ाज बदल जाता है क्या❓

मित्रवर ने अपने निराले काव्यउद्धरण अंदाज में कहा – मुन्ना बाबू (मेरा घरेलू नाम), राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने अपनी कालजयी रचना ‘ रश्मिरथी’ में बरसों पहले लिख डाला था …

“प्रण करना है सहज, कठिन है लेकिन उसे निभाना,
सबसे बड़ी जांच है व्रत का अंतिम मोल चुकाना।”
“अंतिम मूल्य न दिया अगर, तो और मूल्य देना क्या?
करने लगे मोह प्राणों का – तो फिर प्रण लेना क्या?”

मैंने कहा -भाई जी, सीधा बोलिये ना. आपका ये काव्य-वेद समझ में नहीं आता. वे बोले – इन आंदोलनरत युवक-युवतियों को दस हजारी नौकरी देकर सुनहरे भविष्य के ख्वाब किसने दिखाये थे?
मैंने कहा – रघुबर दास की सरकार ने नक्सल प्रभावित जिलों के युवक-युवतियों को बतौर सहायक पुलिसकर्मी बड़े ताम-झाम के साथ बहाल किया था भाई जी.

भाईजी बोले- सियासत का यही चेहरा होता है -छल-छद्म और वोट बैंक संयोजन. अब घड़ियाली आंसू बहाकर भी रघुबर दास और भाजपा को कुछ हासिल नहीं होने जा रहा. देख लीजियेगा आप, वर्तमान हेमंत सरकार इन सहायक पुलिसकर्मियों के आंदोलन से निबटने के साथ-साथ रघुबर दास की सियासी लाभोत्सुक संवेदना का भी तिया- पांच कर देगी.

मैंने कहा- ये मामला सुलगा और झारखंड मुक्ति मोर्चा में उपचुनाव व अन्य कारणों से असंतोष पनपा तो पुनः भाजपा सरकार की वापसी हो जायेगी.

वे बोले – जड़ विहीन ठूंठ में कोंपल की बात करते हैं आप.
मुन्ना बाबू, वर्तमान हालात को समझिये. पूरे झारखंड समेत संथाल परगना के दूर-देहात में भाजपा की जड़ें स्थापित कर उन्हें सींचने वाले संघ – संगठन के कार्यकर्ताओं को अपने राजकाल में तिरस्कृत करते रहे रघुबर दास जी की सक्रियता घावों को कुरेदने के अलावा कुछ नहीं करेगी.
एक तो बाबूलाल मरांडी की भाजपा में वापसी देर से हुई और वापसी के उपरांत भी संगठन में हासिये पर. रुटीन राजनीति से सत्ता संधान नहीं हो सकता. अब तक तो दुमका से बाबूलाल मरांडी की उम्मीदवारी घोषित हो जानी चाहिये थी. बेरमो से गठबंधन सहयोगी आजसू के अन्योन्याश्रित रणनीति का क्रियान्वयन भी जमीन पर दिखाई देना चाहिये था. किन्तु हो क्या रहा है भाजपा प्रदेश संगठन में? गुटबन्दी से सियासी ज़मीन उर्वर नहीं होती.

वे आगे बोलते रहे- हेमंत सोरेन के दुमका दौरे और अन्य गतिविधियों का क्रियान्वयन देखकर मुझे तो तय जान पड़ता है कि उपचुनाव में भी झामुमो गठबंधन बाजी मारेगा.

बात आई-गई और हमलोग अन्य विषयों पर वार्तालाप करते आगे बढ़ते रहे. शाम के वक़्त मैंने उन्हें व्हाट्सएप समाचार में जारी विडियो दिखाते हुये कहा- देखिये महाराज, पुलिस बनाम पुलिस हो गया. भारी पड़ेगा हेमंत सोरेन सरकार को सहायक पुलिसकर्मियों पर लाठीचार्ज.

निर्विकार भाव से उन्होंने कहा- प्रशासन ने कोविड प्रोटोकॉल उल्लंघन कर आंदोलन कर रहे सहायक पुलिसकर्मियों को शासन के इकबाल का अहसास मात्र कराया है. आप निश्चिंत रहिये और देखियेगा सरकार संवाद से इस समस्या का समाधान सुनिश्चित कर लेगी.

उन्होंने कहा – मुन्ना बाबू रोजगार को लेकर लोग बीजेपी से नाराज़ हैं, झारखंड मुक्ति मोर्चा से नहीं. ज़मीनी मुद्दों को आप दरकिनार नहीं कर सकते. केन्द्रीय जनादेश इस मुद्दे पर भी लिया गया था कि सालाना 2 करोड़ युवाओं को नौकरी मिलेगी. उस वक्त केन्द्र में मोदी और झारखंड में रघुबर दास की सरकार थी.
प्रदेश भाजपा सोशल मीडिया व अन्य संचार माध्यमों पर हेमंत सोरेन सरकार को रोजगार के मुद्दे पर घेरकर अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मार रही है.

झामुमो गठबंधन के झारखंड में सत्ता में आये 8 महीने भर हुये हैं और बेरोजगारी कोरोनाकाल की देन भी नहीं है, ये पहले से है, जो आंकड़ों के मुताबिक पिछले छह साल में बढ़ी है.
नई नौकरियों का सृजन नहीं हो रहा और पुरानी नौकरियों का संरक्षण सरकार नहीं कर पा रही है.ये स्थिति सीधे तौर पर केन्द्र और झारखंड में सत्तारूढ़ रही रघुबर सरकार की नाकामी है.

बगैर किसी योजना के युवक-युवतियों को सहायक पुलिसकर्मी की नौकरी का झुनझुना रघुबर दास सरकार ने थमाया था. सहायक पुलिसकर्मियों के आंदोलन से यही उजागर हो गया कि रोजगार को लेकर भाजपा की रघुबर दास सरकार के पास कारगर विज़न नहीं था. युवाओं का विरोध इसी नाकामी के खिलाफ है न कि वर्तमान हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ.

हां, ये बात हेमंत सरकार को भी समझनी होगी कि युवाओं के लिये रोजगार सुनिश्चित किये बगैर लंबी पारी मुश्किल है.

राजनीति अपनी जगह है, लेकिन अनंत काल तक दोषारोपण के सहारे युवाओं को बिना नौकरी, बिना रोजगार उलझा नहीं सकते.

समस्याएं सामने हों तो आंखें बंद करने से न तो भाग सकती हैं, न उनका हल निकल सकता है, उनसे जूझना हेमंत सोरेन सरकार को ही होगा.

वर्तमान सरकार में लंबित नौकरियों को लेकर सुगबुगाहट हुई भी है, देखिए आगे क्या होता है.

इतना तय मान लीजिये की पुरानी सूप पीटकर सिर्फ दरिद्रता भगाई जाती है उसके बाद नये सूप से समृद्धि और विकास की नई कहानी लिखी जाती है…

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments