झारखंड की हेमंत कैबिनेट ने रघुवर सरकार की नियोजन नीति को बदल दिया है । रघुवर दास की सरकार 2018 में नियोजन नीति लेकर आई थी जिसे हाईकोर्ट ने असंवैधानिक बताते हुए निरस्त कर दिया था ।
क्या थी रघुवर सरकार की नियोजन नीति ?
झारखंड की पिछली सरकार ने 2016 में स्थानीयता नीति लायी थी और उसी के आधार पर राज्य में नियोजन नीति भी बनायी गयी थी। इसी नियोजन नीति के तहत 2016 में ही झारखंड कर्मचारी चयन आयोग द्वारा हाईस्कूलों में शिक्षक नियुक्ति का विज्ञापन निकाला गया था। इस विज्ञापन में झारखंड के कुल 24 जिलों को दो कोटि (13 अनुसूचित जिला व 11 गैर-अनुसूचित जिला) में बांटा गया था। अनुसूचित जिलों के पद उसी जिले के स्थानीय निवासी के लिए 100 प्रतिशत आरक्षित कर दिये गये थे। वहीं गैर-अनुसूचित जिलों में बाहरी अभ्यर्थियों को भी आवेदन करने की अनुमति दी गयी थी।
13 अनुसूचित जिलों में शामिल है- रांची, खूंटी, गुमला, सिमडेगा, लोहरदगा, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां, लातेहार, दुमका, जामताड़ा, पाकुड़ व साहिबगंज। इनमें से लगभग 3684 शिक्षकों की नियुक्ति की गयी थी। ये शिक्षक वर्तमान में स्कूलों में पदस्थापित हैं।
सोनी कुमारी ने हाईकोर्ट में दी थी चुनौती
तत्कालीन झारखंड सरकार की हाईस्कूल शिक्षक नियुक्ति के विज्ञापन को 7 मार्च, 2017 को झारखंड हाईकोर्ट में सोनी कुमारी ने चुनौती दी एवं बाद में संशोधित याचिका दायर कर सरकार की नियोजन नीति को ही चुनौती दे दी। 14 दिसंबर, 2018 को जस्टिस एस चन्द्रशेखर की एकल पीठ ने मामले की गंभीरता को देखते हुए इसे खंडपीठ में भेज दिया। 18 अगस्त, 2019 को खंडपीठ ने राज्य सरकार की अधिसूचना 5938/14.07.2016 के क्रियान्वयन पर अगले आदेश तक के लिए रोक लगा लगाते हुए मामले को लार्जर बेंच में भेज दिया। 21 अगस्त, 2020 को सभी पक्षों की सुनवाई पूरी हुई और तीन सदस्यीय लार्जर बेंच ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। 21 सितंबर को अंततः हाईकोर्ट ने फैसला सुना दिया ।
हाईकोर्ट ने क्या कहा था ?
झारखंड हाईकोर्ट में 21 सितंबर, 2020 को जस्टिस एचसी मिश्र, जस्टिस एस चन्द्रशेखर और जस्टिस दीपक रौशन की अदालत ने फैसला सुनाते हुए राज्य की नियोजन नीति को रद्द कर दिया। तीनों जजों ने सर्वसम्मति से फैसला देते हुए कहा कि सरकार की यह नीति संविधान के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है। इस नीति से एक जिले के सभी पद किसी खास लोगों के लिए आरक्षित हो जा रहे हैं, जबकि शत-प्रतिशत आरक्षण किसी भी चीज में नहीं दिया जा सकता। किसी भी नियोजन में केवल ‘स्थानीयता’ और ‘जन्मस्थान’ के आधार पर 100 प्रतिशत सीटें आरक्षित नहीं की जा सकती है, यह सुप्रीम कोर्ट के ‘इंदिरा साहनी एवं चेबरुलु लीला प्रसाद राव (सुप्रा)’ में पारित आदेश के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पारित किया था कि किसी भी परिस्थिति में आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।