Thursday 21st of November 2024 10:40:29 PM

बार

एक हफ्ते के अंदर तीसरी मुलाक़ात

अभी पिछले हफ्ते की ही बात है , कन्हैया कुमार के खिलाफ़ उनकी ही पार्टी ने एक निंदा प्रस्ताव पास किया था…वजह कन्हैया कुमार की अगुवाई में पार्टी के पटना ऑफिस में एक अदने से ऑफिस सेक्रेटरी के साथ बदसलूकी की गयी थी। कन्हैया कुमार से ANI के पत्रकार ने उनका रिएक्शन पूछा तो उन्होंने मुस्कुरा कर कहा-

“वक्त आने पे बता देंगे तुझे हम आसमां, हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है”

बात आई-गई हो गई । लेकिन पिछले एक हफ्ते के अंदर कन्हैया कुमार और नीतीश कुमार के करीबी अशोक चौधरी के बीच एक के बाद एक तीन मुलाक़ात ने राजनीतिक पंडितों की पेशानी पर बल ला दिया है । वे पूछ रहे हैं ” क्या ये संभव है” ?

क्या संभव है ? क्या कन्हैया कुमार अपने लिए जेडीयू में एक बेहतर भविष्य देख रहे हैं? उपेन्द्र कुशवाहा और कन्हैया कुमार के साथ जेडीयू के मूल सोंच में बदलाव नहीं आएगा ? क्या नीतीश कुमार भाजपा को वश में करने के लिए एक बार फिर कुछ नई चाल सोच रहे हैं?

कन्हैया कुमार कम्युनिस्ट हैं । क्या एक घोर कम्युनिस्ट नेता को शामिल करा कर नीतीश कुमार भाजपा के साथ सहज रिश्ते रख सकते हैं? पटना में जेडीयू नेता नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं । जब उदय प्रकाश को यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सम्मानित कर सकते हैं, जब भाजपा महबूबा मुफ्ती के साथ सरकार चला सकती है, जब बंगाल के कम्युनिस्ट नेता और कार्यकर्ता भाजपा का दामन थाम सकते हैं तो कन्हैया कुमार तो बिहार के ही बेटे हैं । वे पढ़े लिखे और संघर्ष करने वाले युवा हैं , वे जेडीयू में क्यों नहीं शामिल हो सकते ?

ये तो जेडीयू की बात है, लेकिन कन्हैया कुमार इस बारे में क्या सोच रहे हैं? क्या कन्हैया अपनी विचारधारा की कीमत पर अपने राजनीतिक करियर बनाना पसंद करेंगे । पटना में भाजपा के एक नेता बताते हैं- “इशरत जहां को सबसे पहले बिहार की बेटी किसने कहा था ?, किसने नरेन्द्र मोदी को खाने का न्योता देकर भोज रद्द किया था ? किसने भाजपा को रोकने के लिए लालू से हाथ मिलाया? ये नीतीश कुमार हैं । अपने मतलब के लिए कुछ भी कर सकते हैं । “

कन्हैया कुमार को सीपीआई का नेतृत्व पसंद नहीं करता

पटना के वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी बताते हैं कि कन्हैया कुमार के रिश्ते सीपीआई के बड़े नेताओं के साथ सहज नहीं हैं । हाल ही में पटना ऑफिस के कार्यालय सचिव के साथ उन्होंने जो मारपीट किया, उसके बाद तो CPI के स्थानीय नेताओं के साथ उनके रिश्ते तनावपूर्ण हो गए हैं । हैदराबाद में पोलित ब्यूरो की बैठक में उनके खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित हो रहा था तो कन्हैया कुमार वहां मौजूद नहीं थे । उधर कन्हैया कुमार को भी लग रहा है कि सीपीआई का बिहार में राजनीतिक भविष्य नहीं है । वे खुद के लिए बड़ा राजनीतिक प्लेटफार्म चाहते हैं ।

Previous article
Next article
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments