आंग्ल भाषा में एक शब्द है – हाइपोथेटिकल । हिन्दी में इसका अर्थ होता है -कल्पित,परिकल्पित आदि. सामान्यतः इस शब्द का प्रयोग विशेषण और संज्ञा के रूप में होता है.हम पत्रकारों का सामना इस शब्द से होता ही रहता है.सियासी महारथी हमारे सवालों को टालने अथवा अपनी सियासी रणनीति को आवरण में रखने के लिये हमारे आकलन जनित प्रश्न को हाइपोथेटिकल करार देते हैं.खैर, बेबाक में उपरोक्त शब्द की विवेचना नहीं करने जा रहा हूँ . बल्कि आप से एक अहम सियासी वार्तालाप साझा करने जा रहा हूँ ।
विगत् शुक्रवार को मुझे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक वरिष्ठ पदधारी रहे पूर्णकालिक स्वयंसेवक और झारखंड भाजपा के एक अन्य वरिष्ठ पदधारी के साथ घंटों सियासी चर्चा का अवसर मिला.
मुझे एक पक्षीय पत्रकारिता का उलाहना देते हुये संघ के उक्त समर्पित वरिष्ठ ने कहा- सूबे में पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास की हठधर्मिता और संघ व भाजपा कार्यकर्ताओं की अनदेखी के कारण झारखंड मुक्ति मोर्चा को सरकार बनाने का मौका मिला,अन्यथा किसी भी सूरत में भाजपा की सरकार नहीं जाती. उन्होंने आगे कहा -एक बात और बता दूँ, सूबे की हेमंत सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं करने जा रही. बस अगामी उपचुनाव के नतीजे आने दीजिये और आपको सूबे का सियासी परिदृश्य परिवर्तित दिखाई देगा.
मैंने प्रतिप्रश्न किया – बगैर बहुमत आंकड़े के आप ये दावा कैसे कर रहे हैं?
श्रीमान जी ने कहा – हम संगठन शक्ति की राजनीति करते हैं . रघुबर दास सरकार में संगठन के समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा के कारण वर्तमान सरकार अस्तित्व में आई है और उसी संगठन सूत्र को पिरो कर भाजपा सरकार की शीघ्र पुनर्वापसी भी होगी.संघ के शीर्षस्थ और भाजपा आलाकमान की मंत्रणा अंतिम चरण में है.दुमका व बेरमो उपचुनाव में आपको मेरी बातों का धरातलीय फलाफल दिखने लगेगा. मैंने उनके दावे पर वर्तमान हालात का उदाहरण देते हुये व्यंग्यात्मक लहजे में पुछा- झाविमो का विलय कराकर बाबूलाल मरांडी को तो आप लोगों ने सुश्री उमा भारती सरीखा नेपथ्य दे ही दिया है. अपने झाविमो को पूरे झारखंड में सांगठनिक तौर पर खड़ा कर बाबूलाल जी कम से कम 08-10 विधायक तो जुटा ही लेते थे. कंघी का विलय कमल में करके भाजपा ने तो अपने बिखरे वोट बैंक को संवारने का जुगाड़ दुरुस्त कर लिया किन्तु बाबूलाल जी को क्या हासिल हुआ?आप लोग उनको अबतक नेता प्रतिपक्ष बनवा ही नहीं पाये और पुनः सरकार बनाने की बात कर रहे हैं? उन्होंने कुपित भाव से कहा- भाईसाहब, राज्यपाल ने विधानसभा अध्यक्ष को एतद् संबंधी सम्मन भेज दिया है, बावजूद इसके सत्ताधारी टालमटोल करते रहेंगे तो उसकी काट भी तैयार है. मैंने कहा- विधानसभा अध्यक्ष का विशेषाधिकार है इस विषय पर निर्णय लेने का. पिछली दफा आप लोग भी तो झाविमो विधायकों के विलय और दलबदल मामले को लंबे समय तक टालते रहे थे? मेरे इस सवाल के जवाब में संघ के पूर्णकालिक ने जो जवाब दिया, उसे सुनकर मेरा सर चकरा गया.जस के तस उनके शब्द बेबाकी से परोस रहा हूँ – भाई साहब, चुनाव आयोग की मंजूरी और राज्यपाल के समन के बावजूद वर्तमान सत्ताधारी बाबूलाल जी को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा देना टाल सकते हैं किन्तु यदि बाबूलाल मरांडी दुमका विधानसभा उपचुनाव भाजपा के टिकट पर जीत के आ गये तो? मेरी जिज्ञासा बढ़ी और मैंने पुछा- पूर्व मंत्री लुईस मरांडी के स्थान पर बाबूलाल मरांडी का दांव क्यों? संघ वाले भाई साहब ने कहा – बाबूलाल जी भले ही कुछ वर्षों के लिये भाजपा से दूर रहे किन्तु संथाल इलाके में उनकी सांगठनिक पकड़ और जन स्वीकार्य छवि नागपुर और दिल्ली दोनों के शीर्ष नेतृत्व को पता है. बाबूलाल जी की घर वापसी और झाविमो का विलय गहन शीर्ष चिंतन और भावी सियासी रणनीति के तहत हुई है भाई साहब. मैं कुछ और पुछता इससे पहले अपना उलाहना दोहराते हुये उन्होंने कहा- हेमंत सोरेन में झारखंड का भविष्य साबित करने की जल्दबाज़ी से परहेज कीजिये,एकांगी क्यों होते हैं? अपने व्यंगबाण से मुझे झकझोर कर वो सज्जन तो विदा हो गये किन्तु मेरा पत्रकार मन व्यग्र हो उठा. एकबारगी लगा कि मेरे माध्यम से संघ के वे वरिष्ठ खबर प्लांट कराने की मंशा से Hypothetical कहानी सुना गये होंगे. फिर लगा ,मैं तो मामूली पत्रकार उन्हें उपरोक्त खबर प्लांट ही करानी होगी तो बड़े-बड़े मीडिया शिरोमणि उनकी कथा छापने-दिखाने को बैठे हैं . मानसिक उथल-पुथल जब नाकाबिले बर्दाश्त हो गया तो मैं झारखंड भाजपा के एक पूर्व वरिष्ठ पदधारी के पास पहुंच गया. इधर उधर की बातें करने के बाद मैंने कहा- नेता जी, ये तो स्पष्ट जान पड़ता है कि झारखंड में भी कोरोना के बीच ही उपचुनाव होगा। इलेक्शन कमीशन ने इसके लिए नई गाइडलाइन भी जारी कर दी है.
गाइडलाइन में उपचुनाव के दौरान बरते जाने वाले एहतियात ,मसलन नामांकन से लेकर चुनाव प्रचार और मतदान तक की रूप रेखा तय हो ही गई है . दुमका और बेरमो के लिए झारखंड भाजपा की क्या तैयारी है ? नेता जी तनिक बिदके अंदाज में बोले- अरे भाई अध्यक्ष जी से पूछिये.हम लोग तो सिपाही हैं ,जैसे निर्देश मिलेंगे वैसे मैदान में डट जायेंगे.मैंने उन्हें कुरेदा- नेता जी, अंदरखाने तैयारी तो चल ही रही होगी? क्या भाजपा दुमका से पुनः डाॅ.लुईस मरांडी और बेरमो से योगेश्वर महतो बाटुल को ही उतारेगी. उन्होंने शंका भाव से मुझे घूरा और कहा- अभी उम्मीदवार के नाम पर निर्णय नहीं हुआ है. प्रतीक्षा कीजिये, नाम की घोषणा हो ही जायेगी. फिलवक्त इतना ही जान लीजिये की भाजपा दोनों सीटों पर विजय की रुप-रेखा तय कर चुकी है. हमें सिर्फ दुमका और बेरमो नहीं जितना है बल्कि संथाल और कोयलांचल में विगत् चुनाव में हुई सांगठनिक चूक भी सुधारनी है. संभव है दोनों सीटों पर कद्दावर चेहरे भी उतारे जा सकते हैं. उन्होंने आगे कहा- कौशलेन्द्र जी, आप तो भाजपा में गुटबाजी और सांगठनिक खींचातानी आदि के साथ-साथ हेमंत सोरेन में झारखंड का भविष्य आदि लिखे चले जा रहे हैं. उपचुनाव की तारीखों का एलान तो होने दीजिये भाई साहब. पिछली दफा कुछेक सांगठनिक व शासनिक चूकों से हम बहुमत का आंकड़ा पार नहीं कर पाये किन्तु उपचुनाव के नतीजे आपकी बेबाकी का रूख बदल देंगे, नोट कर लीजिए. मैंने एक साथ कई प्रश्न दाग दिये- क्या बाबूलाल मरांडी के सियासी आभामंडल तले भाजपा सत्ता में पुनर्वापसी करेगी; यदि हां तो क्या रघुबर दास और अर्जुन मुंडा का सूबे की सियासत में पारी समाप्त मान लिया जाये?
यदि ऐसी ही योजना है तो प्रदेश भाजपा संगठन में रघुबर दास समर्थकों को काबिज कराने के लिये बाबूलाल मरांडी के साथ भाजपा में आये नेताओं को हासिये पर क्यों रखा गया? नेता जी ने लगभग झल्लाते हुये कहा- भाजपा सत्ताधारी झामुमो और उसकी सहयोगी कांग्रेस व राजद की भांति परिवार केन्द्रित दल नहीं है. हमारे यहां संगठन सर्वोच्च होता है. कोई कार्यकर्ता किसी नेता विशेष का नहीं होता.संगठन तय करता है कि किसे क्या भूमिका निभानी है. अर्जुन मुंडा जी केन्द्रीय मंत्री के तौर पर सफलता पूर्वक अपनी भूमिका निभा रहे हैं. संभव है शीघ्र ही रघुबर दास भी भाजपा केन्द्रीय संगठन में अपनी भूमिका निभाते नजर आयें. आप पत्रकार लोग न ,बस अपने आलेखों में गुट गढ़ लेते हैं. भाजपा संगठन समर्पित कार्यकर्ताओं के अनुशासन से चलता है भाई साहब.
सुबह संघ के स्वयंसेवक और शाम में भाजपा के वरिष्ठ नेताजी के उलाहना समाविष्ट दावे से इतना तो तय जान पड़ता है कि सूबे की सियासी हांडी में चौंकाने वाला उबाल आने वाला है. सच कहूँ तो मुझे अब एतबार सा होने लगा है कि सियासत में Hypothetical बयान भी गूढ़ ही होते हैं. आप क्या सोचते हैं ; जरूर अवगत कराइयेगा क्योंकि आपके मंतव्य पर मंथन के उपरांत ही तो जीवंत होते हैं मेरे बेबाक बोल.
(वरिष्ठ पत्रकार कौशलेन्द्र जी के फेसबुक वाल से साभार)