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दहेज परंपरा को ठेंगा दिखा रहा है आदिवासी समाज की शादियां

काल्पनिक फोटो

आदिवासी समाज में आज भी बिना तिलक दहेज के होते है विवाह, वर पक्ष ही कन्या पक्ष को देता है सगुन। सदियों से बिना तिलक दहेज के शादी विवाह करने का परंपरा आज भी आदिवासी समाज में कायम है। अन्य वर्गों के लिए यह समाज प्रेरणा दायक बना हुआ है।

वर पक्ष देता है कन्या पक्ष को सगुन :

आज भी आदिवासी समाज में बिना दहेज के शादी की रस्म पूरी की जाती है। वर पक्ष के द्वारा कन्या पक्ष को 12 रूपए बतौर सगून के रूप में देने की प्रथा कायम है। अन्य समाज को इस समाज की परंपरा से सबक लेने की जरूरत है। समाज में तिलक और दहेज आज भी सिर चढ़कर बोल रहा है और लोग इसे शान और शौकत समझ रहे हैं।

वर पक्ष ही करते है बारातियों के खान पान की व्यवस्था :

आदिवासी समाज की परंपरा के बारे में सिजुआई गांव निवासी संजय बेसरा और तिलैया के गणेश बेसरा खनियापहरि गांव निवासी तालो बेसरा ने बताया कि आदिवासी समाज में अमीर से अमीर घराने में बिना तिलक दहेज का शादी किया जाता है। वर पक्ष जब कन्या वरण के लिए उसके गांव बराती स्वरूप पहुंचते हैं तो वर पक्ष बारातियों को अपने खर्च पर ही खाने पीने की व्यवस्था करते हैं, ताकि कन्या पक्ष को किसी प्रकार की परेशानी न हो।

वर पक्ष कन्या पक्ष को देते है 12 रुपये का सगुन :

वर पक्ष कन्या पक्ष वाले को आज भी मात्र 12 रूपए देकर सगुन करने की परंपरा है। जिससे यह रिस्ता पकका समझी जाए। कहा कि वर पक्ष ही सुयोग्य कन्या को तलाशने जाते हैं। रिश्ता पक्का होने के बाद वर पक्ष द्वारा सगुन दिया जाता है।
वर नौकरी करे या बडे़ घराने से हो लेकिन समाज की मर्यादा का ख्याल रखते हुए उसकी बिना दहेज की ही शादी होती है। सदियों से आदिवासी समाज में यह परंपरा कायम है। आज भी आदिवासी समाज इस परंपरा को कायम रखा है।

अद्भुत होती है शादी विवाह की रस्म :

वर पक्ष बाराती के साथ जब लडकी के गांव पहुंचते हैं तो पेड के नीचे या साधारण सामियाना के नीचे बारातियों का जनवासा होता है। रातभर बाराती जनवासा में रहते है। लडकी वाले के दरवाजे पर दस्तक तक नहीं दिया जाता है। सुबह को अगुवा के द्वारा लडकी वालों को बाराती आने की सूचना दी जाती है। सूचना पाकर शादी के लिए वह लोटा भर पानी लेकर बाराती के समीप आते है। तब समाज के विधि विधान के अनुकुल आगे की रस्म पूरी की जाती है। बताया जाता है कि बांस के बने डाली में कन्या को उठाकर लाने की परंपरा रही है। उसके बाद लडका और लडकी को विवाह के लिए विवाह मंडप पर बैठाया जाता है।

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