( राजीव मिश्र के फेसबुक वाल से साभार)
रांची । झारखंड की झामुमो-कांग्रेस-राजद की विनम्र सरकार ने महापुरूषों को भी दलीय सीमा में बांध दिया। अपना कर्तव्य भी भूल गई। साथ ही विपक्षी दल भाजपा भी न तो तरीके से राजनीति कर पायी और न ही ठीक से विपक्ष का धर्म ही निभाने आया।
झारखंड के जनक भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की दो दिन पहले दूसरी पुण्यतिथि थी। लेकिन, न्यायिक सेवा से आये झारखंड विधानसभा के सचिव महेंद्र प्रसाद नैतिकता भी भूल गये। झामुमो से चुनाव जीत कर विधानसभा अध्यक्ष बनने वाले रवींद्र बाबू ने भी अपना कर्तव्य नहीं निभाया। कार्यक्रम तो छोड़िए, विधानसभा स्थित अटल जी की प्रतिमा पर एक पुष्प भी अर्पित नहीं हुआ। हद तो तब हो गई जब याद आने पर विपक्षी दल भाजपा के नेता दोपहर में अटल जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने विधानसभा पहुंचे और मार्शल ने उनलोगों को किक आउट कर दिया। कहा, सचिव महोदय ने ऐसा कोई निर्देश नहीं दिया है, इसलिए आपलोगों को माल्यार्पण नहीं करने देंगे। जब उन नेताओं में शामिल इस सदन के पूर्व सदस्य और वर्तमान में राज्य़सभा सांसद समीर उरांव ने विधानसभा अध्यक्ष को फोन किया तो बंद मिला। इसके बाद विधानसभा सचिव महेंद्र प्रसाद को फोन किया तो महेंद्र बाबू ने कहा कि आपलोगों को पहले याद दिलाना चाहिए था कि रविवार (16 अगस्त) को पूर्व प्रधानमंत्री की पुण्यतिथि है।
सोचिए, उस न्याय के मंदिर की क्या स्थिति है जहां राज्य की सवा तीन करोड़ जनता के लिए कानून बनाये जाते हैं। न्यायिक सेवा से आये सचिव महोदय को उनका कर्तव्य भी अब भाजपा वाले याद दिलाएंगे तब वे उसका पालन करेंगे।
लेकिन, इसका दूसरा पहलू भी है। इस मामले को लेकर भाजपा ने एक महत्वपूर्ण अवसर गंवा दिया। उसे न तो तरीके से राजनीति करने आयी और न ही ठीक से विपक्ष का धर्म निभाने आया। आदत के अनुकूल भाजपा के नेता प्रेस कॉन्फ्रेंस और विज्ञप्ति जारी कर अपमानित महसूस करने, सदन का नैतिक दायित्व बताने, सत्तारूढ़ दल पर आरोप लगाने और माफी मांगने की औपचारिकता तक ही सीमित रह गए। इससे आगे प्रदेश संगठन नेतृत्व सोच ही नहीं पाया। लोकसभा और विधासनभा चुनाव की तरह इस बार भी पार्टी का आईटी सेल इस मौके को चूक गया। सोता रहा। दो-चार लोगों को छोड़कर सोशल मीडिया पर भी भाजपा के दिग्गजों ने इस मामले को नहीं परोसा। एक-दो लोगों ने लिखा भी तो पढ़कर आप समझ भी नहीं पायेंगे कि आखिर मामला क्या है। इसके अलावा उस दिन पार्टी के कुछ दिग्गज महेंद्र सिंह धौनी के पक्ष में बयानबाजी करने में मशगूल दिखे तो कुछ घोषित होने वाली भाजयुमो की कार्यसमिति में नाम जोड़-घटाव की चर्चा में।
हर छोटी-छोटी बात पर मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखने वाले अमान्यताप्राप्त नेता प्रतिपक्ष भी चुप रहे तो पूर्व मुख्यमंत्री ने भी दो-दो करोड़ रुपये में झारखंड आंदोलन खरीदने और बेचने का झारखंड मुक्ति मोर्चा पर कटाक्ष कर अपनी ड्यूटी पूरी कर ली। भाजपा के कद्दावर नेता और केंद्रीय मंत्री ने भी कुछ नहीं बोला। यह स्थिति बताती है कि अंदरखाने में सब कुछ वैसा नहीं है जैसा दिख रहा है। लेकिन, इस हालत के लिए न तो पार्टी के प्रवक्ताओं की गलती है, न आईटी सेल की और न ही सोशल मीडिया पर चूक जाने वाले भाजपा के सिपाहियों की, अगर अटल जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करने गये भाजपा नेता विधानसभा परिसर से लौटकर पार्टी कार्यालय में प्रेस-कॉन्फ्रेंस करने की बजाये वहीं विधानसभा के गेट पर अटल जी की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित करने की मांग को लेकर बैठ गये होते और भाजपा का प्रदेश नेतृत्व उनका साथ दे दिया होता तो अभी परिदृश्य ही कुछ और होता।
कांग्रेस की आड़ में अपनी गलतियां छुपाने वाले झामुमो के विनम्र मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष और विधानसभा सचिव को भी वास्तविकता का अहसास हो गया होता और जिस मीडिया को प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए बुलाना पड़ा, वह मीडिया खुद-ब-खुद दौड़ कर उनके पीछे आता और पूरे देश का ध्यान झारखंड विधानसभा सचिवालय की करतूत पर होता। अब तक इस मामले का रंग कुछ और हो चुका होता। साथ ही जनता की निगाह भी सत्ताधारी दलों की करतूत पर पड़ चुकी होती। हालाकि, अगले दिन यानी सोमवार (17 अगस्त ) को पार्टी ने फिर प्रेस कॉन्फ्रेंस और भूल-चूक, लेनी-देनी की तर्ज पर भाजयुमो ने अल्बर्ट एक्का चौक पर पुतला फूंक कर अपने विरोध की रश्म अदायगी कर दी।