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जालसाजी के आरोप में सेंट्रल यूनिवर्सिटी झारखंड के कुलपति प्रो. नंद कुमार यादव इंदु ने छोड़ा पद

फर्जी नोटिफिकेशन के लिए रजिस्ट्रार पर जांच जारी

■ 21 जुलाई को कुलपति प्रो. इंदु के सेवा विस्तार के लिए रजिस्ट्रार प्रो एसएल हरि कुमार ने किया था फर्जी नोटिफिकेशन

■ जानकारी होने पर केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने मामले को गंभीरता से लिया, बनाई जांच कमेटी

■ सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ बिहार के कुलपति प्रो हरिशचंद्र सिंह राठौड़ के नेतृत्व में सीयूजे झारखंड के रजिस्ट्रार के खिलाफ जांच जारी

■ मूल रूप से बिहार के भागलपुर के रहने वाले हैं प्रो. नंद कुमार यादव इंदु

राजीव मिश्र के फेसबुक वाल से साभार

पटना, 24 अगस्त। सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ झारखंड (सीयूजे, रांची) के विवादित कुलपति (वाइस चांसलर) प्रो नंद कुमार यादव इंदु को आखिरकार अपना पद छोड़ना पड़ा। सच तो ये है कि जालसाजी के आरोप में उनसे जबरन पद छोड़वा दिया गया क्योंकि उन्हें बर्खास्त करने की चेतावनी दी जा चुकी थी। मजबूर और लाचार प्रो. इंदु ने दोपहर में  रसायन (केमिस्ट्री) विभाग के प्रो रतन कुमार डे को चार्ज दे दिया। ये प्रो. रतन कुमार वहीं व्यक्ति हैं जिनके समय में जुलाई 2015 में केंद्रीय विश्वविद्यालय में  साइनडाई हुआ था। उस समय रतन कुमार डे ही विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार (कुलसचिव) के चार्ज में थे और साइन डाई लगने के बाद उन्हें हटा दिया गया था। उल्लेखनीय है कि प्रो. नंद कुमार यादव इंदु मूल रूप से बिहार के भागलपुर के रहने वाले हैं। उनकी पत्नी डॉ. रोमा यादव भागलपुर की प्रसिद्ध स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं।

विवादों में रहें हैं प्रो. नंद कुमार इंदु

वस्तुतः प्रो. नंद कुमार इंदु और विवादों का गहरा रिश्ता-नाता रहा है। जिस जालसाजी के आरोप में उन्हें पद छोड़ना पड़ा वह भी पिछले महीने जुलाई का है। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने सेंट्रल यूनिवर्सिटी के कई कुलपतियों को अगले कुलपति की नियुक्ति तक एक्सटेंशन (सेवा विस्तार) दिया था। प्रो इंदु का कार्यकाल 31जुलाई 2020 को समाप्त होना था। लेकिन, सेंट्रल यूनिवर्सिटी झारखंड के कुलपति नंद कुमार यादव इंदू को सेवा विस्तार नहीं मिला था। इसके बावजूद प्रो. इंदू ने रजिस्ट्रार प्रो. एसएल हरि कुमार को अपने प्रभाव में लेकर एक जालसाजी की योजना तैयार की। योजनाबद्ध तरीके से दूसरे केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की सेवा विस्तार वाली चिट्ठी के आधार पर कुछ शब्दों के हेर-फेर के साथ अवैध रूप से प्रो. इंदू ने अपने सेवा विस्तार का पत्र तैयार करवाया। इसके बाद कुलसचिव प्रो. हरि कुमार ने बगैर केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के निर्देश के गलत तरीके से अपनी मर्जी से प्रो. इंदू के कुलपति पद पर एक्सटेंशन का पिछले महीने 21 जुलाई को नोटिफिकेशन कर दिया।  मामले की जानकारी होने के बाद  केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने इस मामले को बहुत ही गंभीरता से लिया और जालसाजी के इस मामले की जांच के लिए कुलसचिव प्रो. एसएल हरि कुमार के खिलाफ सेंट्रल यूनिवर्सिटी साउथ बिहार के कुलपति प्रो. हरिशचंद्र सिंह राठौड़ के नेतृत्व में एक सदस्यीय कमेटी बना दी। अंततः इस दबाव में प्रो. इंदु को पद छोड़ना पड़ा। लेकिन, रजिस्ट्रार प्रो. हरि कुमार के खिलाफ अभी भी जांच जारी है। 

कुछ दिनों पहले ही  पद छोड़ने की मिली थी चेतावनी

विश्वस्त सूत्रों की मानें तो केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने जालसाजी से सेवा विस्तार लेने, केंद्रीय विश्वविद्यालय रांची में विभिन्न पदों पर बहाली सहित कई मामलों को लेकर अक्सर विवादों में रहने वाले वाइस चांसलर प्रो. इंदु को कुछ दिनों पहले ही  पद छोड़ देने का निर्देश दिया गया था। उन्हें स्पष्ट चेतावनी दी गई थी कि अगर आप अपना पद नहीं छोड़ेंगे तो बर्खास्त कर दिया जाएगा।

नहीं बचा पाये मठाधीश पैरवीकार

प्रो. नंद कुमार यादव इंदु को बचाने के लिए पूरी एक लॉबी लगी हुई थी, लेकिन वो भी नहीं बचा पाये। इस लॉबी में वैसे मठाधीश शामिल थे जिनके भाई-भतीजों सहित अन्य संबंधियों की केंद्रीय विश्वविद्यालय झारखंड (रांची) के विभिन्न पदों पर नियुक्ति की गई है। लेकिन, यह मामला खुल चुका था और काफी ऊपर तक बात पहुंच चुकी थी, इस कारण उनकी सेवा विस्तार की पैरवी पर किसी ने तवज्जो नहीं दी और आखिरकार प्रो. इंदु को जालसाजी के आरोप में पद मुक्त होना पड़ा।

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