नई दिल्ली: भारत की सांस्कृतिक धरोहर को संजोने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार (NAI) ने देश के विभिन्न तीर्थस्थलों में मौजूद वंशावली पुजारियों के अभिलेखों को डिजिटल रूप देने की ऐतिहासिक योजना बनाई है। इस परियोजना का उद्देश्य पीढ़ियों से संरक्षित पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक तकनीक की मदद से स्थायी और सुलभ बनाना है।
उज्जैन से होगी शुरुआत
भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार के महानिदेशक अरुण सिंघल ने इस परियोजना की घोषणा करते हुए बताया कि मध्य प्रदेश के उज्जैन से इसकी शुरुआत की जाएगी। आने वाले वर्षों में इसे काशी, प्रयागराज, गया, बद्रीनाथ, केदारनाथ, जगन्नाथ पुरी और द्वारका सहित देश के अन्य प्रमुख तीर्थ स्थलों तक विस्तार दिया जाएगा।
खो न जाएं सदियों पुराने पारंपरिक दस्तावेज
पीढ़ियों से पंडों और पुजारियों के पास मौजूद ये वंशावली अभिलेख हजारों परिवारों की पीढ़ियों का इतिहास संजोए हुए हैं। तीर्थयात्रा पर जाने वाले भक्तों के आगमन, उनके परिवारों की जानकारी, और ऐतिहासिक संदर्भ इन पोथियों में दर्ज होते आए हैं। लेकिन प्राकृतिक आपदाओं और आधुनिकता के प्रभाव से ये दस्तावेज नष्ट होने के कगार पर हैं। 2013 की केदारनाथ आपदा में ऐसे कई मूल्यवान रिकॉर्ड नष्ट हो गए थे।
30 करोड़ पृष्ठ होंगे डिजिटल
इस महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत दो वर्षों में लगभग 30 करोड़ पृष्ठों को डिजिटल रूप दिया जाएगा। वर्तमान में, ‘अभिलेख पटल’ पोर्टल पर लगभग 8.4 करोड़ पृष्ठों को डिजिटाइज़ किया जा चुका है, और प्रतिदिन 4 लाख नए पृष्ठ स्कैन किए जा रहे हैं। उम्मीद की जा रही है कि अप्रैल 2025 तक 10 करोड़ पृष्ठ पूरे हो जाएंगे।
आधुनिक तकनीक से जुड़ेंगे पारंपरिक अभिलेख
इस पहल से भविष्य की पीढ़ियों को अपने पूर्वजों की वंशावली और इतिहास की जानकारी डिजिटल रूप में उपलब्ध हो सकेगी। इससे न केवल भारत की सांस्कृतिक धरोहर संरक्षित होगी, बल्कि शोधकर्ताओं और इतिहासकारों को भी बहुमूल्य डेटा प्राप्त होगा।
यह पहल उन परिवारों के लिए भी सौगात साबित होगी, जो अपनी वंश परंपरा को जानने की इच्छा रखते हैं। अब उज्जैन के पंडों और पुजारियों के अभिलेख डिजिटल रूप में संरक्षित होंगे, जिससे सदियों पुरानी परंपरा को आधुनिक युग में एक नया जीवन मिलेगा।