
बचपन से सुनता आ रहा हूँ कि पुराने चावल की बड़ी अहमियत होती है. औषधीय गुण व अनुभव की भट्ठी का पुराना ताप उतराधिकारी पीढ़ी का उर्जा संचरण करता है ऐसा गुणीजनों से बहुत बार सुना है.
किन्तु सूबे में झामुमो- कांग्रेस- राजद व अन्य सहयोगियों के बूते सत्तारूढ़ सरकार में ओल्ड गार्डस के विरोधी तेवर सियासी हांडी के अंदरखाने असंतोष की उबाल के संकेत देते दिख रहे हैं. क्या इसके दुष्परिणाम भी होंगे? यदि होंगे तो उसका सियासी जोर कितना होगा? संभव है कि दुष्परिणाम न भी हों किन्तु इतना तो तय है कि नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी से अबतक दूर बैठी झारखंड भाजपा इकाई को सियासी प्राणवायु मिल जाये.
विगत् कुछ दिनों से सूबे की सियासी गतिविधियों को ताड़ रहा था. नेतृत्व विहीन से दिख रहे प्रतिपक्ष के भोथर वार को धत्ता बताते हुये विगत् 13 माह में विनम्रता के सियासी रथ पर सवार हो सूबे के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुँचे दिसोम गुरु शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत सोरेन निस्संदेह सूबे की दशा और दिशा अपने ढंग से तय करते दिखाई दिये.
किन्तु हालिया घटनाक्रम पर गौर करें तो सूबे की सियासी हांडी में असंतोष की खिचड़ी उबाल लेती दिख रही है और हेमंत जी
मात्र 13 महीने में ही पुराने चावल से परहेज करते दिख रहे हैं.
यदि मेरी टिप्पणी अतिशयोक्तिपूर्ण है तो झामुमो के वरिष्ठ विधायक और गुरु जी शिबू सोरेन के अन्यतम सियासी संगी जेएमएम विधायक लोबिन हेम्ब्रम अपनी ही सरकार में बेचारगी का रोना क्यों रो रहे हैं?
विधानसभा के अंदर मुख्यमंत्री के प्रतिनिधि द्वारा अवैध उत्खनन की चिल्ल-पों और अधिकारियों की अनदेखी का विलाप धरना देकर करते लोबीन बाबू की पहुँच क्या हेमंत जी तक नहीं रही ? विरोध के मुद्दे तलाशते विपक्ष को सत्ता पक्ष के ओल्ड गार्ड से मिल रही खुराक क्या हेमंत सरकार के लिये चुनौती नहीं है?
सियासी गलियारे में एक खबर यह भी तैर रही है कि न सिर्फ लोबीन हेम्ब्रम बल्कि स्टीफन मरांडी और मथुरा महतो जैसे अन्य वरिष्ठ भी अपनी अनदेखी और सरकार के रवैये से रूष्ट हैं.
नाराज भाभी जी के विरोधी सुर का शोर थमा ही था कि ओल्ड गार्डस के प्रतिपक्षी तेवर! हेमंत जी, आपके सियासी कौशल का मैं व्यक्तिगत रूप से कायल हूँ. आपने नि:संदेह तमाम विपरीत परिस्थितियों को झेल-झाल कर झामुमो को सूबे के सत्ता रथ पर सवार कराया किन्तु मात्र 13 माह में ही आपके अपने जेएमएम विधायक लोबिन हेम्ब्रम के तीखे तेवर आखिर सार्वजनिक क्यों? रूठना- मनाना आदि सामान्य मसला उसी वक़्त तक रहता है जबतक वो सार्वजनिक न हो . पब्लिक डोमेन में आने बाद तो वो सियासी मसाला ही बन जाता है. हेमंत बाबू, अपनों के घाव लाईलाज होते हैं, इस सच्चाई से मुंह मत फेरिये.
विगत् दिनों आपकी सलाहकार मंडली के साथ उन कंपनियों को भी देखा जो रघुबर दास सरकार से हाथी उड़वा चुके हैं. बड़ा आश्चर्य हुआ और शंका भी हुई कि क्या आपको भी उसी मंडली ने घेरे में ले लिया है जिसने दास जी की सत्ता से विदाई की पटकथा लिखी थी?
सूबे में विकास की असीमित संभावनाओं से किसी को इन्कार नहीं लेकिन झारखंड की जनता अतीत के लूट प्रयोग से उब चुकी थी और उसी उब का सुपरिणाम बनी आपकी ताजपोशी. कोविड आपदा काल में आपकी संवेदनशील सक्रियता ने जनता की आपके प्रति विश्वास और अपेक्षा को और तीव्र कर दिया. कोई शक नहीं की झामुमो के हाथ सत्ता की बागडोर सौंपने वाले झारखंड के युवाओं, बुजुर्गों और हर वर्ग की आशा की डोर आपसे जुड़ी है और बदलाव की अपेक्षा भी रखती है. किन्तु आप भी पूर्ववर्ती ढर्रे पर चलते दिखेंगे तो पुराने क्या नये चावल में भी असंतोष की उबाल ही आयेगी.
खैर ओल्ड गार्डस के बागी सुर के बीच मधुपुर उपचुनाव की रणभेरी बज चुकी है. मेरे लिये देखना दिलचस्प होगा कि बुजुर्गों की नाराजगी के बीच हाजी साहब की विरासत हेमंत बाबू कैसे सहेजते हैं.
मुख्यमंत्री जी, आपका सियासी सलाहकार तो नहीं हूँ किन्तु आप में मुझे झारखंड का सियासी भविष्य दिखता रहा है. संभव है मेरी बेबाक टिप्पणी आपको रास न आये किन्तु याद रखियेगा अतीत के सियासी सूरमाओं की चूक को दोहरा कर आप अपने सियासी भविष्य पर प्रश्नचिन्ह ही लगाते दिख रहे हैं.