Sunday 15th of June 2025 11:08:36 AM
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“जिसने बेटा देश पर वार दिया, उसे देश ने बार्डर पर खड़ा कर दिया!

ये कहानी है उस मां की…
जिसके बेटे ने जान दी, तिरंगा ओढ़ा,
और शौर्य चक्र पा गया।
लेकिन उस मां को मिला?
“डिपोर्टेशन ऑर्डर”!


शमीमा अख्तर।
नाम याद रखिए।
वही मां हैं, जिन्हें राष्ट्रपति ने
गले लगाकर शौर्य चक्र सौंपा था।
पीछे प्रधानमंत्री बैठे थे,
रक्षा मंत्री भी थे।
ताली बजी, वीडियो वायरल हुआ,
लेकिन अब… सरहद पार भेजने का आदेश आ गया।


वजह?

क्योंकि उनके बेटे मुदस्सिर अहमद शेख
ने पाकिस्तान से आए आतंकियों से लड़ते हुए
जान गंवाई थी,
और अब उसी पाकिस्तान से आए होने के नाम पर
उनकी मां को पाकिस्तान भेजा जा रहा है।

वाह रे नीति, वाह रे न्याय।


“जो पाकिस्तानी नहीं, वो भी पाकिस्तानी बना दिए गए!”

उनकी भाभी, यानी मुदस्सिर की मां,
45 साल से यहीं रह रही हैं।
कब आईं? 1990 से पहले।
कब ब्याही गईं? PoK से — जो हमारा ही हिस्सा है।

तो क्या अब PoK की शादी को भी
‘घुसपैठ’ माना जाएगा?


“सरकार बताओ — आतंक के खिलाफ हो या इंसानियत के?”

  • आतंकवादियों को मारा गया,
    उसका खामियाजा मां ने भी भुगता।

  • शौर्य चक्र मिला,
    अब वो भी वापिस लेना है क्या?


“जब बेटा वतन पर मिटा, तब मां ‘अपनी’ थी…

अब जिंदा है, तो ‘पराई’?”**

क्या ये है ‘राष्ट्रवाद’?
जहां तिरंगे में लिपटी लाश को अपनाते हैं,
पर उसके खून से जुड़े रिश्तों को सरहद पार फेंक देते हैं?


राजनीति या बदले की भावना?

पहलगाम में हमला हुआ।
बर्बर था, नृशंस था।
लेकिन जवाब में अगर आपने
शहीद की मां तक को देशद्रोही बना दिया,
तो आतंकियों और नीति-निर्माताओं में फर्क क्या रह गया?


🧵 अब सवाल सीधा है:

  • क्या 45 साल की नागरिकता भावनाओं से तय नहीं होती?

  • क्या तिरंगे से ज्यादा ‘वीजा’ का कागज़ मायने रखता है?

  • क्या सरकार को इतना भी नहीं पता कि PoK भारत का हिस्सा है,
    तो वहां से आई बहू ‘विदेशी’ नहीं हो सकती?


🔊 **”मोदी जी, शाह साहब, आप गले लगाकर शौर्य चक्र देते हैं,

और उसी मां को बॉर्डर भेजते हैं?”**

आप आए थे, घर पर।
अमित शाह जी ने दो बार मुलाकात की।
अब परिवार दर-दर की ठोकरें खा रहा है,
क्योंकि आपके आदेश में इंसान नहीं, केवल ‘देश’ लिखा है।


क्या प्रेम अपराध बन गया है?

एक और पाकिस्तानी महिला —
CRPF जवान से शादी की थी।
अब उसे भी भेजा जा रहा है।

“हम आतंकवाद की निंदा करते हैं,” वो कहती है,
“पर परिवार तो रहने दो!”


तो अब तय है:

  • प्यार सरहद नहीं देखता, पर अफसर देखते हैं।

  • बलिदान सरहद नहीं मांगता, पर सरकार मांगती है।

  • शहीद की मां तक अगर ‘डिपोर्ट’ हो सकती है,
    तो देश अब सिर्फ माटी नहीं,
    एक मशीनी फॉर्म बन चुका है।

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